उत्तराखंड के राजा ज्ञानचंद: संघर्ष और धार्मिक विरासत (King Gyan Chand of Uttarakhand: Struggle and Religious Heritage)

उत्तराखंड के राजा ज्ञानचंद: संघर्ष और धार्मिक विरासत

परिचय

उत्तराखंड के इतिहास में चंद वंश के शासकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हीं में से एक राजा ज्ञानचंद थे, जिनका शासनकाल संघर्षों और धार्मिक गतिविधियों से भरा हुआ था। उनका पूरा जीवन गढ़वाल और डोटी राज्य के साथ युद्धों में बीता। उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को मजबूत करने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

ज्ञानचंद का शासनकाल और युद्ध

गद्दी पर बैठने के बाद प्रारंभिक अभियान

1698 ई. में ज्ञानचंद का राज्याभिषेक हुआ, जिसकी पुष्टि उस समय के निर्गत ताम्रपत्रों से होती है। राज्य प्राप्त करते ही उन्होंने अपने सैन्य अभियानों की शुरुआत की। उनका पहला आक्रमण पिंडर घाटी पर हुआ, जहां उन्होंने थराली तक के उपजाऊ क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया।

बद्रीनाथ मंदिर से नंदादेवी की प्रतिमा लाना

1699 ई. में ज्ञानचंद ने बधानगढ़ी पर आक्रमण किया और वहां से नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा को अपने साथ ले गए। बाद में उन्होंने इस प्रतिमा को अल्मोड़ा स्थित नंदादेवी मंदिर में पुनः स्थापित करवाया। यह घटना उनके धार्मिक झुकाव को दर्शाती है।

रामगंगा पार विजय अभियान

1700 ई. में ज्ञानचंद ने रामगंगा नदी पार कर मल्ला सलाण स्थित साबलीगढ़, खाटलीगढ़ और सैंजधार ग्रामों तक अपना सैन्य अभियान चलाया। ये वे क्षेत्र थे, जो प्रसिद्ध वीरांगना तीलू रौतेली की मृत्यु के बाद पुनः गढ़वाल राज्य के अधीन हो गए थे। ज्ञानचंद के इस आक्रमण के प्रतिउत्तर में गढ़वाल नरेश फतेहशाह ने 1701 ई. में चंद राज्य के पाली परगने के गिवाड और चौकोट क्षेत्रों में हमला किया, जिससे ये क्षेत्र लगभग वीरान हो गए।

डोटी राज्य पर आक्रमण और असफलता

1704 ई. में ज्ञानचंद ने अपने पिता उद्योतचंद की हार का प्रतिशोध लेने के लिए डोटी पर आक्रमण किया। हालांकि, यह संघर्ष कुमाऊँ की सीमा पर स्थित मलेरिया ग्रस्त भाबर क्षेत्र में हुआ। डोटी नरेश तो भाग गया, लेकिन ज्ञानचंद की सेना मलेरिया का शिकार हो गई, जिससे उन्हें यह युद्ध अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ा।

धार्मिक गतिविधियाँ और सांस्कृतिक योगदान

ज्ञानचंद केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि धार्मिक प्रवृत्ति के शासक भी थे। उनके शासनकाल में कई मंदिरों का निर्माण हुआ। डोटी अभियान के दौरान, उद्योतचंद और ज्ञानचंद द्वारा निर्मित सोर और सीरा क्षेत्र के मंदिरों को ‘देवल’ या ‘द्यौल’ कहा जाता था। इन मंदिरों में देवस्थल के चोपता, नकुलेश्वर, कासनी और मर्सोली के चंदशैली के भव्य मंदिर शामिल हैं।

निष्कर्ष

राजा ज्ञानचंद का शासनकाल युद्धों, सैन्य अभियानों और धार्मिक कार्यों का मिश्रण था। उन्होंने कुमाऊँ की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया, लेकिन कुछ युद्धों में असफलता भी झेली। साथ ही, उन्होंने मंदिरों का निर्माण कर राज्य की सांस्कृतिक विरासत को भी समृद्ध किया। उनकी वीरता और धार्मिक प्रवृत्ति उन्हें उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण शासक के रूप में स्थापित करती है।

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