उत्तराखंड और दिल्ली सल्तनत के राजनैतिक संबंध (Political relations between Uttarakhand and the Delhi Sultanate.)

उत्तराखंड और दिल्ली सल्तनत के राजनैतिक संबंध

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र और मैदानी क्षेत्रों के बीच प्राचीनकाल से ही दौत्य संबंध रहे हैं। किंतु मध्यकाल के बाद उत्तराखंड और भारत की केंद्रीय शक्ति (दिल्ली सल्तनत) के बीच स्पष्ट राजनैतिक पृथक्करण दिखाई देने लगा। दिल्ली सल्तनत के शासकों ने उत्तराखंड के गढ़राज्यों के प्रति अधिक रुचि नहीं दिखाई, संभवतः इसके दुर्गम भूगोल और बिखरी हुई राजनीतिक संरचना के कारण। अधिकांश सल्तनत काल में यह क्षेत्र कई छोटे-छोटे गढ़ों में विभक्त था, और कोई भी गढ़पति अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान स्थापित करने में सफल नहीं हुआ।

दिल्ली सल्तनत से उत्तराखंड के संबंध

1. सल्तनत काल के प्रारंभिक संदर्भ

सल्तनत काल के इतिहासकारों ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को 'शिवालिक' तथा 'उत्तर पर्वतों की तलहटी' के रूप में वर्णित किया है। मिन्हाज-उस-सिराज द्वारा लिखित 'तबकात-ए-नासिरी' में सिरमूर पर्वत का उल्लेख मिलता है, जो कि गढ़वाल क्षेत्र के पश्चिमी छोर पर स्थित था। चौदहवीं शताब्दी में कुमाऊं के राजाओं का भी संदर्भ आता है। फ़रिश्ता के अनुसार, गंगा और यमुना नदियों का स्रोत इसी क्षेत्र में था, जिससे स्पष्ट होता है कि तुर्क इतिहासकार पूरे गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र को 'कुमाऊं पर्वत' के नाम से जानते थे।

2. बदायूं और संभल की सीमाएँ

दिल्ली सल्तनत के दो महत्वपूर्ण इक्ते - बदायूं और संभल - उत्तराखंड की सीमा से लगे थे और हरिद्वार क्षेत्र सल्तनत के अधीन था। हालाँकि, सल्तनत की सीमाएँ उत्तराखंड की तलहटी तक ही सीमित रहीं, क्योंकि पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक कठिनाइयाँ और स्थानीय शासकों की प्रतिरोधी नीति दिल्ली के सुल्तानों के लिए चुनौती बनी रही।

3. सिरमूर क्षेत्र में शरणार्थी विद्रोही

दिल्ली के कई विद्रोहियों ने सिरमूर पर्वतीय क्षेत्र में शरण ली। रज़िया सुल्तान के वजीर मुहम्मद जुनैदी और सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के सौतेले भाई जलालुद्दीन मसूदशाह ने भी सिरमूर में शरण ली थी। सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद ने 1254 ई. में सिरमूर और बिजनौर की तलहटियों तक सैन्य अभियान चलाया था। इसी दौरान बलबन के नेतृत्व में शाही सेना भी सिरमूर क्षेत्र तक पहुँची थी, लेकिन पहाड़ी इलाकों में प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने में असफल रही।

4. खिलजी और तुगलक शासनकाल में संपर्क

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में मंगोलों ने शिवालिक पहाड़ियों के माध्यम से अमरोहा पर आक्रमण किया। इस दौरान उत्तराखंड के घने जंगलों का उपयोग शिकार स्थल के रूप में किया जाने लगा। अमीर खुसरो के अनुसार, यह क्षेत्र इतना समृद्ध था कि एक तीर से दस हिरण मारे जा सकते थे।

मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का पहला सुल्तान था, जिसने उत्तराखंड की ओर गंभीरता से ध्यान दिया। उसने नगरकोट और कराचल (संभावित रूप से गढ़वाल-कुमाऊं) क्षेत्र में सैन्य अभियान चलाया। इब्नबतूता के अनुसार, यह क्षेत्र दिल्ली से दस दिनों की यात्रा दूरी पर था और यहाँ का राजा अत्यधिक शक्तिशाली था। हालाँकि, तुगलक की सेना इस अभियान में पूरी तरह विफल रही, और उसके अधिकांश सैनिक मारे गए।

5. फिरोज तुगलक और उत्तराखंड

फिरोज तुगलक के शासनकाल में सल्तनत ने सिरमूर-सहारनपुर क्षेत्र से राजस्व प्राप्त करना शुरू किया। उसने यमुनातट स्थित तोबरा गाँव से प्राप्त अशोक स्तंभ को दिल्ली स्थानांतरित कराया। कटेहर क्षेत्र के राजा खड़कु को दंडित करने के लिए उसने सैन्य अभियान किया, लेकिन कठोर पहाड़ी परिस्थितियों के कारण सल्तनत की सेना को अधिक सफलता नहीं मिली।

निष्कर्ष

दिल्ली सल्तनत और उत्तराखंड के गढ़राज्यों के बीच संबंध सीमित रहे। सल्तनत के शासक इस क्षेत्र को संपूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं कर पाए, और उत्तराखंड के राजा भी स्वतंत्र रहे। हालाँकि, सीमावर्ती क्षेत्रों पर सल्तनत का प्रभाव था, लेकिन दुर्गम भूगोल और स्थानीय प्रतिरोध ने उत्तराखंड को स्वतंत्र राजनीतिक इकाई बनाए रखा।

टिप्पणियाँ

upcoming to download post