उत्तराखंड में जगतचंद का शासन: कुमाऊँ का स्वर्ण काल (The reign of Jagat Chand in Uttarakhand: The Golden Age of Kumaon.)

उत्तराखंड में जगतचंद का शासन: कुमाऊँ का स्वर्ण काल

उत्तराखंड के इतिहास में जगतचंद का शासनकाल अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। अपने अल्प शासनकाल में ही उन्होंने इतनी लोकप्रियता अर्जित की, जो अन्य चंद नरेशों को नसीब नहीं हुई। उनका शासनकाल कुमाऊँ के आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक था, जिसे इतिहासकारों ने 'कुमाऊँ का स्वर्ण काल' कहा है।

आर्थिक और प्रशासनिक समृद्धि

जगतचंद के शासनकाल में राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत थी। राजा स्वयं प्रजा हितैषी थे और उन्होंने कई लोकहितकारी कार्य किए, जिससे राज्य में समृद्धि आई। उन्होंने कृषि, व्यापार और मंदिरों के निर्माण को बढ़ावा दिया, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली।

गढ़वाल राज्य के विरुद्ध सैन्य अभियान

जगतचंद अपने पिता के काल में ही गढ़वाल राज्य के विरुद्ध युद्ध में भाग ले चुके थे। ऐतिहासिक बरम ताम्रपत्र से यह ज्ञात होता है कि उनके पिता ज्ञानचंद को बाधानगढ़ जीतने में सफलता वीरश्वर जोशी वैधकुड़ी की जासूसी के कारण मिली थी। इसी कारण ज्ञानचंद ने उसे रौत में भूमि प्रदान की थी। बाद में, अग्निकांड में ताम्रपत्र नष्ट हो जाने पर, जगतचंद ने वीरश्वर जोशी के पुत्रों को पुनः ताम्रपत्र निर्गत किया।

गढ़राज्य पर विजय

अपने राज्याभिषेक के प्रथम वर्ष में ही जगतचंद ने गढ़राज्य के लोहबागढ़ और बधानगढ़ पर सफल आक्रमण किया। इसके पश्चात उन्होंने गढ़राज्य की राजधानी श्रीनगर की ओर कूच किया। श्रीनगर के इस भयंकर युद्ध में गढ़नरेश फतेहशाह पराजित हुआ। युद्ध के उपरांत श्रीनगर पर अधिकार कर जगतचंद ने भयंकर लूटपाट की और अपने एक प्रतिनिधि को श्रीनगर का शासन सौंपकर वापस लौट गए।

गढ़नरेश फतेहशाह का प्रतिउत्तर

जगतचंद की विजय के बाद, गढ़नरेश फतेशाह ने अपनी शक्ति को पुनः संगठित किया और जगतचंद के प्रतिनिधि को हराकर श्रीनगर पर पुनः अधिकार कर लिया। इसके बाद, एक बड़ी सेना के साथ फतेहशाह ने कत्यूर घाटी पर आक्रमण किया। उन्होंने गरुड़ और बैजनाथ घाटी पर भी कब्जा कर लिया और गरसार ग्राम को बद्रीनाथ मंदिर को दान में दे दिया।

मुगलों से मैत्रीपूर्ण संबंध

जगतचंद के समकालीन मुगल बादशाह से उनके मैत्रीपूर्ण संबंध थे। वे नियमित रूप से दिल्ली दरबार में भेंट भेजते थे, जिससे उनकी स्थिति और अधिक सुदृढ़ बनी रही। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने न केवल गढ़वाल राज्य से संघर्ष किया, बल्कि मुगल सत्ता से अपने कूटनीतिक संबंध भी बनाए रखे।

दुखद अंत

इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है कि जगतचंद का निधन चेचक के कारण हुआ। उनका जीवन और शासन कुमाऊँ के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में दर्ज है, जिसने राज्य की शक्ति, आर्थिक समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

निष्कर्ष

जगतचंद न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक दूरदर्शी शासक भी थे। उन्होंने कुमाऊँ को एक समृद्ध और संगठित राज्य बनाया और अपने कार्यों से चंद राजवंश की महत्ता को बढ़ाया। उनका शासन कुमाऊँ के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण विरासत छोड़ी।

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