उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार पत्रों की भूमिका (The role of newspapers in the freedom struggle of Uttarakhand.)
उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार पत्रों की भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का विशेष योगदान रहा। उत्तराखंड में भी कई पत्र-पत्रिकाओं ने स्वतंत्रता संग्राम की चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें प्रमुख रूप से 'क्षत्रिय वीर', 'तरूण कुमाऊँ', 'अभय', 'स्वाधीन प्रजा' जैसे समाचार पत्र शामिल थे।

1. क्षत्रिय वीर (1922 ई.)
'विशाल कीर्ति' के बाद पौड़ी से प्रकाशित होने वाला यह दूसरा समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 15 जनवरी 1922 को प्रारंभ हुआ। यह एक जातिवादी समाचार पत्र था, जिसका उद्देश्य क्षत्रिय जाति की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति को उजागर करना था। शुरुआत में इसका संपादन प्रताप सिंह नेगी ने किया, फिर 1938 तक इसका संपादन एडवोकेट कोतवाल सिंह नेगी और शंकर सिंह नेगी ने किया।
इस पत्र के संस्थापक रायबहादुर जोध सिंह नेगी थे, जो ग्राम सूला, असवालस्यूं पट्टी, गढ़वाल से थे। यह पत्र मुख्य रूप से क्षत्रिय समाज से जुड़ी खबरों को प्रकाशित करता था, जिसके कारण इस पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप भी लगे।
2. कुमाऊँ कुमुद (1922 ई.)
यह पत्र उत्तराखंड में लगभग ढाई दशक तक नियमित रूप से प्रकाशित होता रहा। इसे 1922 में बसंत कुमार जोशी द्वारा अल्मोड़ा से प्रकाशित किया गया था। यह समाचार पत्र राष्ट्रीय विचारधारा का समर्थक था और इसमें सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन से जुड़े लेख प्रकाशित होते थे। हालांकि, इस पर सरकार समर्थक होने के भी आरोप लगे। इसे 'बाजार समाचार' भी कहा जाता था और यह लोकभाषी रचनाकारों को प्रोत्साहित करता था।
3. तरूण कुमाऊँ (1922-23 ई.)
बैरिस्टर मुकुंदी लाल द्वारा 1922 में लैंसडौन से प्रकाशित यह साप्ताहिक पत्र उनके राष्ट्रवादी और प्रगतिशील विचारों को व्यक्त करता था। इसका नाम उन्होंने मैजनी के 'यंग इटली' की तर्ज पर रखा था। 1923 में बैरिस्टर मुकुंदी लाल काउंसिल के लिए चुने गए, जिसके बाद यह पत्र बंद हो गया।
4. अभय (1928 ई.)
स्वामी विचारानंद सरस्वती द्वारा 1928 में देहरादून से प्रकाशित यह समाचार पत्र स्वाधीनता संग्राम की प्रेरणा देता था। वे अपने आश्रम में रहते हुए 'अभय' नामक प्रिंटिंग प्रेस भी चलाते थे। यह पत्र कई वर्षों तक प्रकाशित हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. पुरुषार्थ (1917-21 ई.)
'गढ़वाल सरकार' के बंद होने के बाद गिरिजा दत्त नैथानी ने 1917 में 'पुरुषार्थ' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन किया। इसका मुद्रण बिजनौर में होता था और प्रकाशन कभी दुगड्डा से तो कभी उनके पैतृक गांव नैथाणा से किया जाता था। बाद में यह पत्र बंद हो गया, लेकिन 1921 में नैथाणा से पुनः प्रकाशित किया गया।
6. स्वाधीन प्रजा (साप्ताहिक, 1930 ई.)
यह पत्र कुमाऊँ क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला तीसरा महत्वपूर्ण समाचार पत्र था। इसका संपादन मोहन जोशी ने किया, जो कुमाऊँ के प्रमुख कांग्रेसी नेता थे। 1 जनवरी 1930 को इस पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ। यह पत्र स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेज सरकार के खिलाफ मुखर था।
10 मई 1930 को इस पत्र से 6000 रुपये की जमानत मांगी गई, जो उस समय तक की सर्वाधिक जमानत थी। इस पत्र ने भगत सिंह की फांसी को 'सरकार का गुंडापन' बताया, जिसके कारण इसका प्रकाशन रोक दिया गया। बाद में अक्टूबर 1930 में यह पत्र फिर से प्रकाशित हुआ और 1932 तक नियमित रूप से चलता रहा।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के इन समाचार पत्रों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनता को जागरूक करने और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई। ये पत्र भले ही अल्पकालिक रहे हों, लेकिन इन्होंने समाज में गहरी छाप छोड़ी और स्वतंत्रता संग्राम की लौ को प्रज्वलित रखा।
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