रूद्रचंद का ज्येष्ठ पुत्र शक्ति जन्मांध: लक्ष्मीचंद का शासनकाल (Rudrachand's eldest son Shakti, the blind ruler Lakshmichand's reign.)

रूद्रचंद का ज्येष्ठ पुत्र शक्ति जन्मांध: लक्ष्मीचंद का शासनकाल

रूद्रचंद का ज्येष्ठ पुत्र शक्ति जन्मांध था, इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका दूसरा पुत्र लक्ष्मीचंद गद्दी पर बैठा। ऐतिहासिक स्रोतों में लक्ष्मीचंद को विभिन्न नामों से उल्लेखित किया गया है—सीरा से प्राप्त चंद वंशावली में इसे 'लक्षिमीचंद', भूनाकोट ताम्रपात्र में 'लछिमनचंद' तथा मानोदय काव्य में 'लक्ष्मण' नाम से वर्णित किया गया है।

प्रशासनिक सुधार एवं संगठन

लक्ष्मीचंद के शासनकाल में उनके बड़े भाई की प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने जन्मांध होते हुए भी लक्ष्मीचंद के प्रशासन को सुदृढ़ करने में सहायता की। शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने हेतु कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए:

  • दारमघाटी की पुनर्व्यवस्था: शौका समुदाय के कर्तव्य एवं अधिकार नियत कर दिए गए। इस व्यवस्था के तहत शौका समुदाय ने तिब्बती वस्तुओं को राजदरबार तक पहुँचाने का करार किया।

  • राजधानी में कार्यालय की स्थापना: यह कार्यालय बंदोबस्त से संबंधित कार्यों की देखरेख करता था।

  • सीमाओं का निर्धारण: सीमाओं पर सीमा-सूचक पत्थर लगवाए गए।

  • राजस्व प्रणाली का सुधार: सिरती एवं राजकर की दरें निर्धारित कर दी गईं।

  • न्याय व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण: न्योवली और बिष्टाली नामक दो न्यायालयों की स्थापना की गई। न्योवली न्यायालय संभवतः दीवानी मामलों की सुनवाई करता था, जबकि बिष्टाली न्यायालय फौजदारी मामलों के लिए था।

  • राज्य कर्मचारियों की श्रेणियाँ:

    1. सरदार – परगने की शासन व्यवस्था देखते थे।

    2. फौजदार – सैनिक पदाधिकारी थे।

    3. नेगी – छोटे कर्मचारी, जो नागरिक प्रशासन की जिम्मेदारी संभालते थे और इन्हें कार्य के बदले 'नेग' (दस्तूर) प्राप्त होता था।

निर्माण कार्य एवं योगदान

लक्ष्मीचंद को एक कुशल निर्माता के रूप में भी याद किया जाता है। उन्होंने कई बाग-बगीचों का निर्माण करवाया, जिनमें प्रमुख हैं:

  • नरसिंह बाड़ी

  • पांडेखोला

  • कबीना

  • लक्ष्मीश्वर बगीचा

उन्होंने 1602 में बागेश्वर के बैद्यनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और शिवलिंग में तांबे की नई शक्ति लगाई। इस कार्य से उनकी धार्मिक निष्ठा और संरचनात्मक योगदान स्पष्ट होता है।

निष्कर्ष

लक्ष्मीचंद का शासनकाल प्रशासनिक सुधारों, राजस्व प्रणाली के पुनर्गठन, न्यायिक सुधारों और निर्माण कार्यों के लिए जाना जाता है। उन्होंने कुशलता से शासन किया और अपने राज्य को एक संगठित स्वरूप प्रदान किया। उनके शासनकाल में किए गए सुधारों का प्रभाव आने वाले वर्षों तक उत्तराखंड के प्रशासन पर पड़ा।

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