त्रिमलचंद: कुमाऊँ के एक शक्तिशाली शासक
लक्ष्मीचंद की मृत्यु के बाद सत्ता संघर्ष
लक्ष्मीचंद की मृत्यु के बाद कुमाऊँ की सत्ता को लेकर संघर्ष की स्थिति बनी रही। उनके उत्तराधिकारी के रूप में त्रिमलचंद के शासन ग्रहण करने से पूर्व दिलीपचंद और विजयचंद के शासन के प्रमाण मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग तीन-चार वर्ष तक दिलीपचंद ने शासन किया, उसके बाद विजयचंद ने एक-दो वर्षों तक राज्य किया।

विजयचंद के शासनकाल से संबंधित एक महत्वपूर्ण ताम्रपत्र पिथौरागढ़ जनपद के पाभै से प्राप्त हुआ है, जिसमें उल्लेख मिलता है कि उन्होंने बसु पुरोहित को चंपावत जनपद में पंचौली नामक व्यक्ति की भूमि प्रदत्त की थी। ब्रिटिश इतिहासकार एटकिन्सन के अनुसार, विजयचंद ने वर्तमान बुलंदशहर के अनूपशहर की बड़गूजर वंश की राजकुमारी से विवाह किया था। यह विवाह चंद राजवंश की सामाजिक परंपराओं के अनुकूल नहीं था, जिसके कारण राज्य में व्यापक विरोध उत्पन्न हुआ।
त्रिमलचंद का सत्ता पर अधिकार
राज्य में व्याप्त अशांति और आंतरिक विद्रोहों के बीच त्रिमलचंद ने उचित अवसर देखते हुए विजयचंद को समाप्त कर दिया और स्वयं कुमाऊँ की गद्दी पर बैठ गए। सत्ता ग्रहण करने के बाद उन्होंने सर्वप्रथम उन लोगों को दंडित किया, जिन्होंने विजयचंद के षड्यंत्र में सहयोग दिया था।
सुखराम कार्की की हत्या करवा दी गई।
विनायक भट्ट की आँखें निकलवा दी गईं।
पीरूलाला को देश से निष्कासित कर दिया गया।
षड्यंत्र में संलिप्त रसोइयों और सेवकों को पदमुक्त कर दिया गया।
रसोई से संबंधित कुछ नए नियम बनाए गए, जिससे भविष्य में षड्यंत्र की पुनरावृत्ति न हो।
प्रशासनिक और सैन्य नीतियाँ
त्रिमलचंद को गड्यूडा ताम्रपत्र में 'महाराज कुमार' कहा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अपने पिता के शासनकाल में प्रशासनिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे थे। उन्हें शासन चलाने का अच्छा अनुभव था और उन्होंने अपने पिता के गढ़वाल अभियान में भी भाग लिया था।
शासनकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबाया, जिनमें प्रमुख थे:
छखाता के खसों का विद्रोह: कुमाऊँ के छखाता क्षेत्र में विद्रोही गतिविधियों को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए गए।
ध्यानीरौ के विद्रोह: इस विद्रोह को समाप्त कर राज्य में स्थिरता स्थापित की गई।
त्रिमलचंद के शासनकाल में कुमाऊँ में राजनीतिक स्थिरता आई और चंद वंश की सत्ता और अधिक संगठित हुई। उन्होंने शासन व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ बनाया तथा अपने विरोधियों को समाप्त कर अपनी स्थिति को मजबूत किया।
त्रिमलचंद: कुमाऊँ का शक्तिशाली शासक
लक्ष्मीचंद की मृत्यु के बाद कुमाऊँ के सिंहासन पर बैठने की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। त्रिमलचंद के शासन संभालने से पहले, दिलीपचंद और विजयचंद ने कुछ समय तक शासन किया। ऐतिहासिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि पहले तीन-चार वर्षों तक दिलीपचंद ने शासन किया और फिर विजयचंद ने एक-दो वर्षों तक राज किया। विजयचंद का एक ताम्रपत्र पाभै (वर्तमान पिथौरागढ़ जनपद) में प्राप्त हुआ है, जिसके अनुसार उसने बसु पुरोहित को चौकी (चंपावत जनपद) में पंचौली नामक व्यक्ति की भूमि प्रदान की थी।
विजयचंद और राज्य में उत्पन्न अशांति
इतिहासकार एटकिन्सन के अनुसार, विजयचंद ने वर्तमान बुलंदशहर के अनूपशहर में बड़गूजर की पुत्री से विवाह किया था। सामाजिक मान्यताओं के अनुसार, चंद वंश के शासकों का विवाह गुर्जर समुदाय में नहीं हो सकता था। इस विवाह से राज्य में भारी विरोध उत्पन्न हुआ, जिससे अशांति और अराजकता फैल गई। इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर योग्य राजकुमार त्रिमलचंद ने सत्ता प्राप्त करने का प्रयास किया और विजयचंद को हटाकर स्वयं गद्दी पर बैठ गया।
षड्यंत्र और सत्ता सुदृढ़ीकरण
गद्दी पर बैठने के बाद, त्रिमलचंद ने उन सभी लोगों का नाश कर दिया, जिन्होंने सत्ता संघर्ष में बाधा उत्पन्न की थी। उसने षड्यंत्रकारी सुखराम कार्की की हत्या करवा दी, विनायक भट्ट की आँखें निकलवा दीं और पीरूलाला को देश से निष्कासित कर दिया। इसके अतिरिक्त, उसने रसोईघर में कार्यरत सभी पुराने रसोइयों और सेवकों को बदलकर अपने विश्वासपात्र लोगों को नियुक्त किया और नए नियम बनाए।
प्रशासनिक योग्यता और युद्ध नीति
त्रिमलचंद को गड्यूड़ा ताम्रपत्र में 'महाराज कुमार' कहा गया है। वह अपने पिता के शासनकाल के दौरान प्रशासनिक कार्यों में अनुभव प्राप्त कर चुका था। उसने अपने पिता लक्ष्मीचंद के गढ़वाल अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया था और युद्धकला में निपुण था।
त्रिमलचंद ने शासन संभालने के बाद कुमाऊँ के विभिन्न विद्रोहों को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने छखाता और ध्यानीरौ क्षेत्र के खसों के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाया।
निष्कर्ष
त्रिमलचंद एक शक्तिशाली और रणनीतिक शासक थे, जिन्होंने राजनीतिक चतुराई और कठोर निर्णयों के माध्यम से कुमाऊँ की सत्ता को सुरक्षित किया। उनकी शासन नीतियाँ प्रशासनिक दक्षता और सैन्य कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। कुमाऊँ के इतिहास में उनका शासन एक महत्वपूर्ण युग के रूप में दर्ज किया जाता है।
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