गढ़वाल के वीर राजा: महीपतशाह
गढ़वाल के इतिहास में राजा महीपतशाह (संवत् 1624) का नाम वीरता और अदम्य साहस के लिए जाना जाता है। वे अपने शत्रुओं को पराजित करने के कारण 'गर्वभंजन' की उपाधि से प्रसिद्ध हुए। उनके शासनकाल में गढ़वाल ने कई महत्त्वपूर्ण युद्ध देखे, विशेष रूप से तिब्बत के विरुद्ध अभियान, जिसमें वे तीन बार लड़े।

राजगद्दी पर आरोहण
गढ़वाल नरेश श्यामशाह निःसंतान थे, अतः उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके चाचा महीपतशाह को गद्दी मिली। महीपतशाह ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक आक्रमणों का सामना किया और अपने राज्य की रक्षा की। वे एक योद्धा राजा थे, जिन्होंने अपने शासन को सुदृढ़ बनाया।
तिब्बत अभियान और युद्ध कौशल
सी. वैसल्स द्वारा लिखित "अर्ली जैसूइट ट्रेवल्स इन सेंट्रल एशिया" में एनड्राडे महोदय के विवरण में महीपतशाह के तिब्बत अभियान का विस्तृत वर्णन मिलता है।
प्रथम अभियान में उन्होंने 11,000 बंदूकधारी और 20 तोपों की टुकड़ियों के साथ आक्रमण किया।
द्वितीय अभियान में उनकी सेना 20,000 सैनिकों तक बढ़ गई थी।
तृतीय अभियान में अपेक्षाकृत कम सैनिक थे।
इन अभियानों में उन्हें कठिन प्राकृतिक परिस्थितियों और भारी हिमपात का सामना करना पड़ा। तिब्बतवासियों के कठोर प्रतिरोध के कारण महीपतशाह को असफलता मिली, जिससे दोनों राज्यों के बीच संधि करनी पड़ी।
जहांगीर से संबंध
1624 ई. में एनड्राडे महोदय माना स्थल को छोड़कर आगरा आ गए। इस विवरण से यह सिद्ध होता है कि महीपतशाह के काल में गढ़राज्य स्वतंत्र सत्ता के रूप में स्थापित था। जहांगीर द्वारा एनड्राडे को एक फरमान जारी करने के बावजूद, महीपतशाह ने उनके साथ कठोर व्यवहार किया, जो उनकी सुदृढ़ राजशक्ति को दर्शाता है।
अन्य अभियानों में सफलता
डॉ. डबराल के अनुसार महीपतशाह ने सिरमौर के डाकुओं के आतंक को समाप्त किया। हरिकृष्ण रतुड़ी के अनुसार उन्होंने 'दापा' (ढाबा) में अद्वितीय विजय प्राप्त की।
उनके शासनकाल की तिथि पर विद्वानों में मतभेद है:
डॉ. डबराल: 1631-1635 ई.
राहुल: 1625-1664 ई.
कुछ स्रोतों के अनुसार, वे 1622 ई. में राजा बने और 1631 ई. में उनकी मृत्यु हुई।
यूरोपीय लेखकों के विवरण
सी. वैसल्स की पुस्तक में अजेवेड़ो महोदय के यात्रावृत्तांत के अनुसार, 28 जून 1631 ई. को वे आगरा से चले और जुलाई 1631 में महीपतशाह की अंत्येष्टि में श्रीनगर में उपस्थित थे। इससे महीपतशाह की मृत्यु 1631 ई. में होना सिद्ध होता है।
महान सेनापति
महीपतशाह के शासनकाल में उनके तीन महान सेनापति थे:
माधोसिंह भंडारी - जिन्होंने कई अभियानों में अपनी वीरता दिखाई।
रिखोला लोदी - जिनकी रणकुशलता अद्वितीय थी।
बनवारीदास - जो महीपतशाह के महत्वपूर्ण अभियानों में सम्मिलित रहे।
निष्कर्ष
महीपतशाह गढ़वाल के इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण शासक थे, जिन्होंने अपनी वीरता, युद्धकौशल और निडरता से गढ़राज्य की स्वतंत्रता को बनाए रखा। उनके नेतृत्व में गढ़वाल ने बाहरी आक्रमणकारियों को कड़ी चुनौती दी और स्वतंत्रता की भावना को जीवंत रखा। उनका शासनकाल गढ़वाल के स्वर्णिम इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है।
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