जय श्रीराम: श्रीराम के भजनों और आरतियों से मिलें भक्तिरस का अनुभव (The confluence of devotion and faith resides in the hymns of Ram.)

राम के भजनों में बसी भक्ति और आस्था का संगम

भगवान श्रीराम के भजनों और आरतियों में बसी भक्ति और आस्था से जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है। इस पोस्ट में प्रस्तुत श्रीराम के भजनों से जुड़ी शांति और आशीर्वाद की अनुभूति को महसूस करें। श्रीराम के भजनों और आरतियों में छुपी है दिव्य शक्तियों और आशीर्वाद की अमूल्य धारा। इस पोस्ट में पढ़ें श्रीराम की महिमा और उनके भजनों के माध्यम से उन्हें अपने हृदय में बसाएं।

1. भगवान श्रीराम की आरती

"भगवान श्रीराम हरति सब आरती, आरती रामको।
दहन दुख-दोष निरमूलिनी कामकी॥
सुभग सौरभ धूप दीपबर मालिका,
उड़त अघ-बिहँग सुनि ताल करतालिका॥
भक्त-हदि-भवन अज्ञान-तम-हारिनी,
बिमल बखिग्यानमय तेजबिस्तारिनी॥
मोह-मद-कोह-कलि-कंज-हिम-जामिनी,
मुक्तिकी दूतिका, देह-दुति दामिनी॥
प्रनत-जन-कुमुद-बन-इंदु-कर-जालिका,
तुलसि अभिमानमहिषेस बहु कालिका॥
जय श्रीराम!"

यह आरती भगवान श्रीराम के उन गुणों का वर्णन करती है जो भक्तों के जीवन से दुख, दोष और संकट को दूर करते हैं। भगवान के दिव्य रूप का गुणगान किया गया है, और उनके भक्तों के प्रति असीम करुणा का निरूपण हुआ है।

2. श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन

"श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन, हरण भव भय दारुणम्।
नवकंजलोचन, कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणम्॥
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील नीरद सुंदरम्।
पटपीत मानहु तड़ित रुचि, शुचि नौमि जनक सुता वरम्॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव, दैत्यवंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंदकंद, कोशलचंद दशरथ नंदनम्॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु, उदार अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्॥
इति वदति तुलसीदास, शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्।
मम हदय कंज निवास कुरु, कामादि-खल-दल-गंजनम्॥"

यह भजन भगवान श्रीराम की कृपा, शरणागत वत्सलता, और रघुकुल के अद्भुत रूप का गान करता है। इसमें भगवान के रूप, गुण और कार्यों का वर्णन किया गया है जो भक्तों के जीवन से भय और दुख को समाप्त करते हैं।

3. गृह गृह आगन होत त्रधाई

"गृह गृह आगन होत त्रधाई।
श्रीरामचंद्र सिंहासन तौले चाप! छत्र हुराई॥
मंगल साज लिएँ सल्ल सुंदरि, जत्र नृतन सजि आई।
तिलक क्तिएँ यत्र अंकुर सिर धरि, आरति करत सुहाई॥
जय-जयकार भयो त्रिभुवन, दुंदुभि देख खजाई।
सुर नर मुनिजन मुदित, पुष्प घरसाथत अंग्रर छाई॥
चिर जीयो अबिच्चल रजध्रानी, भकतनके सुखदाई।
श्रीरघुनाथ चरन-पंकज-रज, रामदास निधि 'पाई॥"

यह भजन भगवान श्रीराम के स्वागत और उनके दिव्य राज्य की स्थापना के बारे में है। इसे सुनकर भक्तों का मन प्रसन्न हो जाता है और वे भगवान के दर्शन की इच्छा रखते हैं।


निष्कर्ष:

ये भजन और आरतियाँ न केवल भक्तों को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करती हैं, बल्कि भगवान श्रीराम के प्रति श्रद्धा और भक्ति को भी प्रेरित करती हैं। भगवान श्रीराम के प्रति इन भजनों में गाई गई भावनाओं और आराधना का अनुभव जीवन को शांति और सुख से भर देता है।

"जय श्रीराम!"

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