गढ़वाल के 52 गढ़ — एक ऐतिहासिक परिचय
गढ़वाल को कभी "52 गढ़ों का देश" कहा जाता था। इसका कारण यह था कि गढ़वाल क्षेत्र में पहले 52 स्वतंत्र राजाओं का शासन था। ये राजाओं के अलग-अलग छोटे-छोटे राज्य थे और सभी स्वतंत्र थे। इन 52 गढ़ों के अलावा कुछ छोटे-छोटे गढ़ भी थे, जो सरदार या थोकदारों के अधीन थे। ये गढ़ और उनके राजाओं का इतिहास गढ़वाल की संस्कृति और विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं।
गढ़वाल के 52 गढ़ों का इतिहास
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छठी शताब्दी में भारत की यात्रा के दौरान इन गढ़ों का उल्लेख किया था। लगभग नौवीं शताब्दी तक यह स्थिति लगभग 250 वर्षों तक बनी रही। उस समय गढ़वाल के राजा आपस में लगातार लड़ते रहते थे। बाद में पवांर वंश के राजा अजयपाल सिंह ने इन सभी गढ़ों को परास्त कर गढ़वाल का एकीकृत नक्शा तैयार किया। उन्होंने तमाम राजाओं को हराकर 15वीं सदी तक गढ़वाल पर पवांर वंश का शासन स्थापित किया।

आज भी गढ़वाल के लोग अपने-अपने क्षेत्रों को इन गढ़ों से जोड़कर गर्व महसूस करते हैं। गढ़ों के नाम और उनके इतिहास के साथ उनकी जनजातियों की पहचान भी जुड़ी हुई है।
गढ़वाल के 52 गढ़ों का संक्षिप्त विवरण
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नागपुर गढ़ – जौनपुर परगना में था। यहाँ नागदेवता का मंदिर है। अंतिम राजा भजनसिंह था।
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कोल्ली गढ़ – बछवाण बिष्ट जाति का गढ़।
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रवाणगढ़ – बद्रीनाथ मार्ग में, रवाणी जाति का।
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फल्याण गढ़ – फल्दकोट में, फल्याण ब्राह्मणों का गढ़। पहले राजपूतों का था।
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वागर गढ़ – नागवंशी राणा जाति का, घिरवाण खसिया जाति ने भी अधिकार जमाया था।
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कुईली गढ़ – सजवाण जाति का, जौरासी गढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
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भरपूर गढ़ – सजवाण जाति का, अंतिम थोकदार गोविंद सिंह।
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कुजणी गढ़ – सजवाण जाति का, अंतिम थोकदार सुल्तान सिंह।
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सिलगढ़ – सजवाण जाति का, अंतिम राजा सवलसिंह।
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मुंगरा गढ़ – रवाई में, रावत जाति का।
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रैका गढ़ – रमोला जाति का।
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मोल्या गढ़ – रमोली स्थित, रमोला जाति का।
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उपुगढ़ – उद्येपुर में, चौहान जाति का।
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नालागढ़ – देहरादून में, बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना गया।
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सांकरीगढ़ – रवाईं में, राणा जाति का।
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रामी गढ़ – शिमला से सम्बंधित, रावत जाति का।
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बिराल्टा गढ़ – जौनपुर में, रावत जाति का, अंतिम थोकदार भूपसिंह।
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चांदपुर गढ़ – तैली चांदपुर में, सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का।
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चौंडा गढ़ – शीली चांदपुर में, चौंडाल जाति का।
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तोप गढ़ – तोपाल जाति का, तुलसिंह ने तोप बनायी थी।
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राणी गढ़ – खासी जाति का, रानी द्वारा स्थापित।
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श्रीगुरूगढ़ – सलाण में पडियार जाति का, अंतिम राजा विनोद सिंह।
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बधाणगढ़ – बधाणी जाति का, पिंडर नदी के ऊपर।
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लोहबागढ़ – लोहबाल नेगी जाति का, वीर और साहसी राजा दिलेवर सिंह और प्रमोद सिंह।
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दशोलीगढ़ – दशोली में, राजा मानवर द्वारा प्रसिद्ध।
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कंडारागढ़ – कंडारी जाति का, अंतिम राजा नरवीर सिंह।
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धौनागढ़ – इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का।
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रतनगढ़ – कुंजणी में धमादा जाति का।
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एरासूगढ़ – श्रीनगर के ऊपर।
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इडिया गढ़ – रवाई बड़कोट में इडिया जाति का, तहस-नहस किया गया।
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लंगूरगढ़ – लंगूरपट्टी में, भैरों का मंदिर।
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बाग गढ़ – बागूणी नेगी जाति का, गंगा सलाण में।
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गढ़कोट गढ़ – मल्ला ढांगू में बगड़वाल बिष्ट जाति का।
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गड़तांग गढ़ – भोटिया जाति का, टकनौर में।
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वनगढ़ गढ़ – अलकनंदा के दक्षिण में बनगढ़।
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भरदार गढ़ – वनगढ़ के पास।
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चौंदकोट गढ़ – पौड़ी जिले में, बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध।
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नयाल गढ़ – कटुलस्यूं में नयाल जाति का, अंतिम सरदार भग्गु।
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अजमीर गढ़ – पयाल जाति का।
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कांडा गढ़ – रावत जाति का, रावतस्यूं में।
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सावलीगढ़ – सबली खाटली में।
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बदलपुर गढ़ – पौड़ी जिले में।
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संगेलागढ़ – संगेला बिष्ट जाति का, नैल चामी में।
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गुजड़ूगढ़ – गुजड़ू परगने में।
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जौंटगढ़ – जौनपुर परगना में।
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देवलगढ़ – देवलगढ़ परगने में, देवलराजा द्वारा बनाया गया।
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लोदगढ़ – लोदी जाति का।
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जौंलपुर गढ़
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चम्पा गढ़
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डोडराकांरा गढ़
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भुवना गढ़
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लोदन गढ़
निष्कर्ष
गढ़वाल के ये 52 गढ़ न केवल इतिहास की गवाही देते हैं, बल्कि गढ़वाल की संस्कृति, समाज और लोगों की पहचान का भी आधार हैं। हर गढ़ के अपने खास राजा, जाति और इतिहास हैं, जो आज भी लोगों की स्मृतियों और कहानियों में जीवित हैं।
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