फूल छो जू सबसे प्यारू - एक सुंदर Garhwali कविता | Basant Poem in Garhwali

🌸 फूल छो जू सबसे प्यारू – एक गढ़वाली कविता में बसंत की प्रीत

गढ़वाल की धरती पर हर ऋतु अपनी अलग छाप छोड़ती है, लेकिन बसंत का मौसम एक अलग ही सौंदर्य और भावनात्मकता लेकर आता है। इस ब्लॉग में हम एक सुंदर गढ़वाली कविता के माध्यम से उस भावुकता, स्मृति और प्रकृति की मधुरता को महसूस करेंगे।


कविता: फूल छो जू सबसे प्यारू

मेरा गौ का डांडी काठ्र्यों को हयू गोयी गे,
हवा जु लगङी छे पेली अती सुर-सुरी,
वू भी व्हेगी छे जरा अब गुन-गुनी।

इन पंक्तियों से शुरुआत होती है एक पुरानी याद की, जहां गांव की डांडी (ढलान) और ठंडी हवाएं मन को छू जाती हैं। अब वही हवा बसंत में गर्माहट से भरी हुई है।

ऐगी छे पंचमी बसंत की,
हर तरफ सारयो मा फ्यूली खिली गेनी।
मी बी हरची गी मेरा बालापन मा,
याद ऐगी फूल वू, जु छो अति पसंद मीतें।

बसंत पंचमी के आगमन के साथ ही फ्यूली (बासंती फूल) चारों ओर खिल जाते हैं। इस दृश्य को देखकर कवि को अपना बचपन याद आ जाता है – वो मासूम पल, वो खिलखिलाती फिजाएं।


🌿 प्रकृति और स्मृतियों का संगम

द्वी डायी छे घोर मू चोक का ओर पोर,
लगदा छां जे पर अति सवादी फल।
जने ह्यून लगनु छो,
डाली मुरझे जानी।
जने यू बसंत आयी,
तने फिर खिल जानी।

प्रकृति की शक्ति यहाँ स्पष्ट होती है – कैसे मुरझाई डालियां फिर से बसंत में जीवन पा जाती हैं। यह जीवन का प्रतीक है – हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत देता है।

कोपल आयी, हर तरफ हरियाली छायी,
फिर दिखण बैठीगे यू स्वाणी कलियाँ ।
यू फूल छो मेंतें सबसे प्यारो,
हिवांयी जन रंग च,
कानों की बाली जन दिखण मा,
खुशबु वेगी अति भली,
सुन्दरता भरमान्दी छे।

इन पंक्तियों में कवि ने फूल को गहनों की तरह देखा है – जैसे कानों की बालियाँ। फूल की खुशबू, उसका रंग, उसकी नाजुकता, सब कुछ प्रेम से भरा है।


🏞️ गांव की स्मृतियाँ और एक भावुक अंत

वू छे डायी ओरू की,
जू लदी गे छव्टा छव्टा फूलों से।
अगाज छो यू बसंत को,
कती स्वांणा फूल खिली ग्येना।

बसंत का आगाज यानी नई उमंग और प्रकृति का उत्सव। पुराने पेड़ भी फिर से निखर जाते हैं।

यू फूल छो मेंतें सबसे प्यारो,
जू मेंतें बालपन याद दिलाणू छो।
अब सूखीगें दॄवी डावा हमारा,
जनि फाल्गुन को रस कखी हरची गेनी।

कविता अब भावनात्मक हो जाती है – कवि बताता है कि अब वे बचपन की पगडंडियाँ सूख गई हैं, जहां कभी फाल्गुन के रस से जीवन रंगीन होता था।

गौं की पुराणीं यादा,
बस यादू मा ही बच गेनी।

गांव की वो मधुर यादें अब केवल यादों में ही बची हैं – एक हल्का सा दर्द, एक मीठी स्मृति।


❤️ निष्कर्ष:

"फूल छो जू सबसे प्यारू" सिर्फ एक कविता नहीं, गढ़वाल की मिट्टी, हवा, और बचपन की यादों का सजीव चित्र है। यह कविता हमें सिखाती है कि प्रकृति और स्मृतियां जब मिलती हैं, तो भावनाओं का एक सुंदर संगम बनता है।

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