पहाड़ी लोक गीतों का अद्भुत संसार
हमारी पहाड़ी संस्कृति की विविधता में लोक गीतों की एक विशेष भूमिका होती है। ये गीत हमारी भावनाओं, संघर्षों और जीवन के अनुभवों को दर्शाते हैं। प्रस्तुत हैं कुछ लोक गीतों के अंश, जो पहाड़ी जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं।
लोक गीतों के अंश
फसल और खेतों का सौंदर्य
माछी लै फटक मारौ, बलुवा रेतमा।
तू होंसिया छाजी रए, हरिया खेतमा।इस गीत में फसलों की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है, जो पहाड़ी जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

पहाड़ी प्रेम और मातृभूमि
गाड़ तरी गधेरी तरी को रौली तरुलो,
पहाड़ जनम मेरो को देशा मरुलो।यह पंक्ति पहाड़ के प्रति प्रेम और उसके महत्व को दर्शाती है। यह हमें अपनी मातृभूमि से जोड़े रखती है।
भेंट और संबंध
आस्यारी क रेट भागी आस्यारी क रेट।
ऊनै रौला दिन मांसा हुनै रौली भेंट।यहां पर रिश्तों की गहराई और महत्व को उजागर किया गया है, जो पहाड़ी जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
पानी और जीवन
पानी को मशीक सुवा पानी को मशीक।
तु भुलना भूली जाली, मैं भूलूँ कशिक।इस गीत में पानी के महत्व और उसके जीवनदायिनी गुणों का वर्णन किया गया है।
खेती और फसल
एक क्यारी में धणियां बोयौ, एक क्यारी में मेथी…
म्यर कैंलै नि हुनी सुवा यौ पहाड़ै खेती…।यह पंक्ति खेती और कृषि जीवन के प्रति प्रेम को व्यक्त करती है।

प्राकृतिक सौंदर्य
फूली रोछ कांस बल फूली रोछ कांस,
यो दानी उमर बल नि ऊन साँस !!यहां पर पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है, जो लोगों के जीवन में विशेष महत्व रखता है।
समय की अनिश्चितता
ध्न्याली को दाना घट खुलो बान,
क्या नै हुनी मयादरा खड्यूनी क्या नै हुनी बाना,
क्या नै हुनी बाना बखते बेमान दाज्यू नै गुड़ नै ज्ञाना…यह पंक्ति समय की अनिश्चितता और जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है।
जिंदगी का सफर
मुलि जुलि रैया भागी चारदइनक कि जिंदगी …
इस अंतिम पंक्ति में जीवन के सफर और उसके अनुभवों का उल्लेख किया गया है।

निष्कर्ष
ये लोक गीत हमारी पहाड़ी संस्कृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। वे न केवल हमारी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, बल्कि हमारे अतीत और संस्कृति की गहराई को भी उजागर करते हैं।
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