उत्तराखण्ड का इतिहास – एक पौराणिक, मध्यकालीन और आधुनिक यात्रा - A mythological, medieval, and modern journey

उत्तराखण्ड का इतिहास – एक पौराणिक, मध्यकालीन और आधुनिक यात्रा

उत्तराखण्ड का इतिहास – एक पौराणिक, मध्यकालीन और आधुनिक यात्रा - A mythological, medieval, and modern journey

उत्तराखण्ड, जिसे आज हम "देवभूमि" के नाम से जानते हैं, न केवल आध्यात्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि इसका इतिहास भी उतना ही गौरवपूर्ण और प्रेरणादायक है। इस क्षेत्र का इतिहास पौराणिक काल से शुरू होकर मध्यकालीन राजवंशों, ब्रिटिश शासन और फिर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक फैला हुआ है। आइए इस दिव्य प्रदेश की ऐतिहासिक यात्रा पर एक दृष्टि डालते हैं।

उत्तराखण्ड का इतिहास, गढ़वाल का इतिहास, कुमाऊँ का इतिहास, उत्तराखण्ड में गोरखा शासन, उत्तराखण्ड में स्वतंत्रता संग्राम, देवभूमि का इतिहास


पौराणिक काल का उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड का नाम प्रारंभिक हिन्दू ग्रंथों में मिलता है। स्कंद पुराण में इसे दो भागों में बाँटा गया है –

  • गढ़वाल क्षेत्र को केदारखण्ड

  • कुमाऊँ क्षेत्र को मानसखण्ड

यह क्षेत्र ऋषियों, मुनियों और देवताओं की तपोभूमि रहा है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे चारधाम और पंच प्रयाग इसकी पवित्रता को दर्शाते हैं। "उत्तराखण्ड" शब्द का अर्थ ही "उत्तरी प्रदेश" होता है और इसे "हिमालय का हृदय" भी कहा जाता है।


गढ़वाल और कुमाऊँ की उत्पत्ति

गढ़वाल शब्द की उत्पत्ति "गढ़" यानी किलों से हुई। लगभग 1500 ई. में इस क्षेत्र में 52 ठकुरी गढ़ों का अस्तित्व था, जिसका उल्लेख पं. हरिकृष्ण रतूड़ी ने किया है।
कुमाऊँ को पहले कुर्मांचल के नाम से जाना जाता था, और चंद राजाओं के समय से यह नाम प्रचलन में आया।


राजवंश और साम्राज्य

उत्तराखण्ड में कई राजवंशों ने शासन किया:

  • कत्युरी वंश (प्राचीनतम साम्राज्य)

  • चंद वंश (कुमाऊँ में)

  • पंवार वंश (गढ़वाल में)

  • पाल, परमार, रायक, पयाल वंश

  • इसके अलावा गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों ही क्षेत्र गोरखा शासन और फिर ब्रिटिश शासन के अधीन आए।


गोरखा शासन और अंग्रेजों का आगमन

  • सन 1790 में गोरखा सेना ने कुमाऊँ और 1803 में गढ़वाल पर अधिकार किया।

  • 1815 में अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराया और कुमाऊँ तथा पूर्वी गढ़वाल को अपने अधीन ले लिया।

  • गढ़वाल का शेष भाग (टिहरी और उत्तरकाशी क्षेत्र) महाराजा सुदर्शन शाह को सौंपा गया।

  • टिहरी को राजधानी बनाया गया और बाद में नरेन्द्र नगर की स्थापना की गई।


ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता संग्राम

  • उत्तराखण्ड 1815 से 1857 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन रहा, जिसे "ब्रिटिश गढ़वाल" कहा गया।

  • 1856–1884 तक हेनरी रैम्जे का शासन रहा, जिसने शांति बनाए रखी।

  • 1868 में "समय विनोद" और 1871 में "अल्मोड़ा अख़बार" की शुरुआत हुई।

  • 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में उत्तराखण्ड में भी आंदोलन शुरू हुआ।

  • 1913 में अनुसूचित जातियों के लिए टम्टा सुधारिणी सभा और 1916 में कुमाऊँ परिषद की स्थापना हुई।

  • 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलय हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

  • गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविन्द पंत, बदरी दत्त पाण्डे, मुकुन्दीलाल जैसे नेता स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे।

  • 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में गोविंद बल्लभ पंत पर अंग्रेजों द्वारा लाठियाँ चलाई गईं।

  • 1949 में टिहरी राज्य का भारत में विलय हुआ और यह उत्तर प्रदेश का भाग बन गया।


नवीन उत्तराखण्ड और जिला गठन

  • 1960 में भारत-चीन युद्ध के बाद सीमावर्ती सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ को जिला बनाया गया।

  • यह विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण निर्णय रहा।


मध्यकालीन उत्तराखण्ड – कत्युरी काल

कत्युरी वंश के राजा वीर देव के बाद साम्राज्य कई भागों में विभाजित हो गया।
गढ़वाल और कुमाऊँ के विभिन्न हिस्सों पर अलग-अलग कबीले और छोटे राजा शासन करने लगे।
इसी काल में चंद वंश ने कुमाऊँ में अपनी सत्ता स्थापित की और अल्मोड़ा को राजधानी बनाया।


निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखण्ड का इतिहास एक समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक विरासत को समेटे हुए है। यहाँ के पर्वतों में जहां ऋषियों ने तप किया, वहीं वीरों ने देश के लिए बलिदान भी दिया। यह इतिहास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है कि वे भी इस भूमि की गरिमा को बनाए रखें।

टिप्पणियाँ

upcoming to download post