गढ़वाल के 52 गढ़ों का इतिहास और सांस्कृतिक महत्व (History and Cultural Significance of 52 Garhwal Strongholds)
गढ़वाल के 52 गढ़ों का इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र अपनी ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विविधताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के 52 गढ़, जो विभिन्न जातियों और परिवारों के राज्य हुआ करते थे, आज भी स्थानीय समुदायों में गर्व के साथ याद किए जाते हैं। इन गढ़ों का महत्व न केवल इतिहास में बल्कि स्थानीय लोगों की पहचान में भी झलकता है। बचपन से ही इन गढ़ों के नाम और उनके साथ जुड़ी किवदंतियाँ सुनते आए हैं। आइए, जानते हैं गढ़वाल के 52 गढ़ों के बारे में संक्षिप्त विवरण:
इन गढ़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
1. नागपुर गढ़
यह गढ़ जौनपुर परगना में स्थित था। यहां नागदेवता का मंदिर था, और यहां का अंतिम राजा भजनसिंह था।
2. कोल्ली गढ़
यह बछवाण बिष्ट जाति का गढ़ था।
3. रवाणगढ़
यह बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित था और इसका नाम रवाणी जाति से जुड़ा था।
4. फल्याण गढ़
फल्दकोट स्थित यह गढ़ फल्याण जाति के ब्राह्मणों का गढ़ था। इस गढ़ को पहले राजपूत जाति ने नियंत्रित किया था।
5. वागर गढ़
यह गढ़ नागवंशी राणा जाति का था। इतिहास में इसे घिरवाण खसिया जाति ने भी कब्जा किया था।
6. कुईली गढ़
सजवाण जाति का यह गढ़ जौरासी गढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
7. भरपूर गढ़
यह भी सजवाण जाति का गढ़ था, और यहां का अंतिम थोकदार गोविंद सिंह सजवाण था।
8. कुजणी गढ़
यह गढ़ सजवाण जाति से जुड़ा था और यहां का आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह था।
9. सिलगढ़
यह गढ़ सजवाण जाति का था और इसका अंतिम राजा सवलसिंह था।
10. मुंगरा गढ़
रवाई में स्थित यह गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे।
11. रैका गढ़
यह गढ़ रमोला जाति का था।
12. मोल्या गढ़
रमोली स्थित यह गढ़ भी रमोला जाति का था।
13. उपुगढ़
उद्येपुर स्थित यह गढ़ चौहान जाति का था।
14. नालागढ़
देहरादून जिले में स्थित यह गढ़ बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना गया।
15. सांकरीगढ़
रवाईं में स्थित यह गढ़ राणा जाति का था।
16. रामी गढ़
यह गढ़ शिमला क्षेत्र से जुड़ा था और यह रावत जाति का गढ़ था।
17. बिराल्टा गढ़
रावत जाति का यह गढ़ जौनपुर में स्थित था और इसका अंतिम थोकदार भूपसिंह था।
18. चांदपुर गढ़
यह गढ़ सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का था और इसे पवांर वंश के राजा कनकपाल ने कब्जा किया था।
19. चौंडा गढ़
यह गढ़ चौंडाल जाति का था और शीली चांदपुर में स्थित था।
20. तोप गढ़
यह गढ़ तोपाल जाति का था, और इसका नाम तोप बनाने के कारण पड़ा था।
21. राणी गढ़
यह खासी जाति का गढ़ था और इसे एक रानी ने स्थापित किया था।
22. श्रीगुरूगढ़
सलाण स्थित यह गढ़ पडियार जाति का था, जिनका नाम अब परिहार जाति में बदल चुका है।
23. बधाणगढ़
यह बधाणी जाति का गढ़ पिंडर नदी के ऊपर स्थित था।
24. लोहबागढ़
यह गढ़ नेगी जाति का था और लोहबागढ़ के नाम से प्रसिद्ध था।
25. दशोलीगढ़
यह गढ़ दशोली में स्थित था और यहां के राजा मानवर ने इसे प्रसिद्ध किया था।
26. कंडारागढ़
यह गढ़ कंडारी जाति का था और इसका अंतिम राजा नरवीर सिंह था, जो पराजित हो गया था।
27. धौनागढ़
यह गढ़ इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का था।
28. रतनगढ़
यह गढ़ कुंजणी में स्थित था और धमादा जाति का था।
29. एरासूगढ़
यह गढ़ श्रीनगर के ऊपर स्थित था।
30. इडिया गढ़
यह गढ़ रवाई बड़कोट में स्थित था और इडिया जाति का था।
31. लंगूरगढ़
यह गढ़ लंगूरपट्टी में स्थित था और यहां भैरों का प्रसिद्ध मंदिर है।
32. बाग गढ़
यह गढ़ बागूणी नेगी जाति का था और गंगा सलाण में स्थित था।
33. गढ़कोट गढ़
यह गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था और मल्ला ढांगू में स्थित था।
34. गड़तांग गढ़
यह गढ़ भोटिया जाति का था और टकनौर में स्थित था।
35. वनगढ़ गढ़
यह गढ़ अलकनंदा के दक्षिण में स्थित था।
36. भरदार गढ़
यह गढ़ वनगढ़ के पास स्थित था।
37. चौंदकोट गढ़
यह गढ़ पौड़ी जिले में स्थित था और यहां के लोग अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई के लिए प्रसिद्ध थे।
38. नयाल गढ़
यह गढ़ कटुलस्यूं में स्थित था और नयाल जाति का था।
39. अजमीर गढ़
यह गढ़ पयाल जाति का था।
40. कांडा गढ़
यह गढ़ रावतस्यूं में स्थित था और रावत जाति का था।
41. सावलीगढ़
यह गढ़ सबली खाटली में स्थित था।
42. बदलपुर गढ़
यह गढ़ पौड़ी जिले के बदलपुर में स्थित था।
43. संगेलागढ़
यह गढ़ संगेला बिष्ट जाति का था और नैल चामी में स्थित था।
44. गुजड़ूगढ़
यह गढ़ गुजड़ू परगने में स्थित था।
45. जौंटगढ़
यह गढ़ जौनपुर परगना में स्थित था।
46. देवलगढ़
यह गढ़ देवलगढ़ परगने में स्थित था और इसे देवलराजा ने बनाया था।
47. लोदगढ़
यह गढ़ लोदी जाति का था।
48. जौंलपुर गढ़
यह गढ़ जौनपुर परगना में स्थित था।
49. चम्पा गढ़
यह गढ़ चम्पा क्षेत्र में स्थित था।
50. डोडराकांरा गढ़
यह गढ़ डोडरा कंठ क्षेत्र में स्थित था।
51. भुवना गढ़
यह गढ़ भुवना क्षेत्र में स्थित था।
52. लोदन गढ़
यह गढ़ लोदन क्षेत्र में स्थित था।
निष्कर्ष:
गढ़वाल के इन 52 गढ़ों का इतिहास न केवल गढ़वाल के सांस्कृतिक और सामाजिक विकास की कहानी है, बल्कि यह क्षेत्र की धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। इन गढ़ों का उल्लेख आज भी गर्व और सम्मान के साथ किया जाता है, और इनकी किवदंतियाँ और अवशेष स्थानीय लोगों के दिलों में जीवित हैं।
(FAQ)
1. गढ़वाल के 52 गढ़ों का महत्व क्या है?
गढ़वाल के 52 गढ़ों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। ये गढ़ विभिन्न जातियों और परिवारों के राज्य थे, जो गढ़वाल के इतिहास और परंपराओं का हिस्सा रहे हैं। इन गढ़ों का नाम आज भी क्षेत्रीय पहचान और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा हुआ है।
2. नागपुर गढ़ का इतिहास क्या है?
नागपुर गढ़ जौनपुर परगना में स्थित था और यहां नागदेवता का मंदिर है। इस गढ़ का अंतिम राजा भजनसिंह था। यह गढ़ अब भी क्षेत्रीय लोगों द्वारा सम्मान के साथ याद किया जाता है।
3. रवाणगढ़ गढ़ क्यों प्रसिद्ध है?
रवाणगढ़ बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है और यह रवाणी जाति के लोगों का गढ़ था। इसका नाम रवाणगढ़ इसीलिए पड़ा क्योंकि इस गढ़ में रहने वाले लोग रवाणी जाति से थे।
4. फल्याण गढ़ का इतिहास क्या है?
फल्याण गढ़ फल्दकोट में स्थित था और यह फल्याण जाति के ब्राह्मणों का गढ़ था। कहा जाता है कि पहले यह गढ़ किसी राजपूत जाति के अधीन था, जिसे बाद में ब्राह्मणों को दान कर दिया गया।
5. वागर गढ़ की विशेषता क्या थी?
वागर गढ़ नागवंशी राणा जाति का गढ़ था। इस गढ़ पर एक समय में घिरवाण खसिया जाति ने भी अधिकार किया था, जिससे इसका इतिहास और भी दिलचस्प हो जाता है।
6. कुईली गढ़ का क्या महत्व है?
कुईली गढ़, जिसे जौरासी गढ़ भी कहते हैं, यह सजवाण जाति का गढ़ था। यह गढ़ विशेष रूप से सजवाण जाति के लोगों की ऐतिहासिक पहचान को दर्शाता है।
7. मुंगरा गढ़ किस जाति का था?
मुंगरा गढ़ रवाई क्षेत्र में स्थित था और यह रावत जाति का गढ़ था। यहां रौतेले लोग रहते थे और यह गढ़ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
8. गढ़वाल के 52 गढ़ों का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
इन गढ़ों का सांस्कृतिक महत्व गढ़वाल की जनसंख्या और क्षेत्रीय पहचान से जुड़ा हुआ है। प्रत्येक गढ़ की अपनी विशेषता और इतिहास है, जो आज भी स्थानीय लोगों के लिए गर्व का कारण है।
9. गढ़वाल के गढ़ों के नाम कैसे रखे गए थे?
गढ़वाल के गढ़ों के नाम स्थानीय जातियों, घटनाओं और क्षेत्रीय परिवेश के आधार पर रखे गए थे। कई गढ़ों के नाम जाति के नाम पर, कुछ के नाम वहां के प्रमुखों या घटनाओं से जुड़े थे।
10. क्या इन गढ़ों की यादें आज भी जीवित हैं?
जी हां, इन गढ़ों की यादें आज भी स्थानीय लोगों के दिलों में जीवित हैं। कई गढ़ों के अवशेष और किवदंतियाँ आज भी गढ़वाल क्षेत्र के लोगों द्वारा संरक्षित और याद की जाती हैं।
टिप्पणियाँ