वे भी क्या दिन थे चार पत्थरो के खेल में खुद को भुला😌 देना,

वे भी क्या दिन थे चार पत्थरो के खेल में खुद को भुला😌 देना, बस  एक दूजे की बातों में दुनिया  से बेखबर😌 हो जाना, खेल का आनंद भरी दोपहरी के #घाम मे भी भाव बिभोर कर देता, यह मोह भंग 😳🤭तब ही होता जब गाय बकरियां किसी की खेतों की फसलों को  खा आनंदित😊 हो रहे होते, और दूर से हो-हल्ले और डाट डपट की आवाजें आती


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