परगट ह्वै जान, परगट ह्वै जान,
परगट ह्वै जान, पाँच भाई पांडौं।
परगट ह्वै जान कोन्ती माता,
परगट ह्वै जान राणी द्रोपता।
कोन्ती माता होली पंडौं की माता,
नंगों कू बस्तर देदी, भूकर को अन्न।
नंगों देखीक वस्त्र नी लांदी,
भूलेख देखीक खाणू नी खाँदी।
कोन्ती माता होली धर्म्याली माता
बार वर्षों तँ करदी रै दुर्बासा की सेवा
तब रिषि दुर्बासा परसन्न ह्वैन,
कोन्तीं माता तं पुत्र बरदान दीने
तेरा पाँच बेटा होला छेतरी माल,
कटीक नी कटोन मारीक नी करोन।
तब पांच मंत्र रिषीन दीन्या,
रण लैग कोन्ती तब मैत घर।
एक दिन धर्म्याली तीर्थ नवेन्दी,
सूरज तान वा पटनी चढ़ौंदी।
मंत्र जाप करे तब वीन-
प्रभु की लीला छाई, कर्ण पैदा ह्वैगे!
बार साल पढ़ेमतान धर्म मंत्र,
धर्म मंत्र पढ़े हवै गैन धर्मराज!
बार साल पढ़ते हुए वातावरण मंत्र,
पैदा ह्वेन तब बली भीमसन!
बार साल करे मंतन इन्द्र को जाप,
पैदा ह्वै गैन हाँ जी, अजुन धनुर्धारी!
तब तक बार पढ़े मंथन पाँडु मंत्र,
त पैदा हवन नकुल कुँवर!
बार साल पढ़े माता ने ब्रह्म मंत्र,
पाठ कनो ह्वैगे सहदेव ब्रह्म!
पांच पुत्र पंडौ ध कुन्ती का,
धरती की शोभा छैया, देवतौं माण्यं!
धर्मराज युधिष्ठिर होला धर्म का ज्ञानी,
जौन गरीब नी संतायो, बुरो नी मपायो!
बंध्या रैन जु धर्म की डोरी,
धर्मराज होला सत का पुजारी!
अर्जुन राजा होलू बीर भारी,
कृष्ण सारथी जैका रैन!
वैका बाण बैरियों का काल,
वैको एंग्रीदड़ी को ज्यान!
कानो होलो स्यो वीर विष्णुशरण,
सौ मन की गदा होली नौ मन की ढाल!
आगी को खेड़ी होलो बीर,
ऐड़ी हत्यारी को लेवारी!
जंगल जंगल भाबर, भाबर-
होईन बीरु, तुम प्यारा हो
बार मास राई, बनवासी जोगी,
कंद-मूल खाक, दिन रहना।
दुरजोधन छ्यो, कौरव राजा,
हस्तिनापुर को राज, पंडौं नी देन्दू।
लोरा-छापर-सी, फिर पंडोउन,
बानु-बानु रीड़दा छा, लूकी-लुकीक।
ऊँक तँ धाम नी छौ, नी छौ पटनी,
पेट की नी छै, रुड़ी सी बँघग,
कम नी छै, तीस ऊँकू।
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