गढ़वाली और कुमाऊंनी मुहावरे और उनका अर्थ

गढ़वाली और कुमाऊंनी मुहावरे और उनका अर्थ

अग्ने कि जगि मुछळी पैथरि आंदी। 

गढ़वाली मुहावरे:

  1. जख बिलि नी तख मूसा नचणु।
    जहां बिल्ली नहीं, वहाँ चूहे नाच रहे हैं।
    भावार्थ: जहां नियंत्रण नहीं होता, वहां हम गलत कार्य कर सकते हैं।

  2. थोडि जगा गिलो आटो।
    थोड़ी सी जगह और आटा गीला
    भावार्थ: कंगाली में आटा गीला। हालात बाद से बदतर होने पर।

  3. जखि देखि तवा-परात, वखि बिताई सारी रात।
    जहां देखा तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
    भावार्थ: अपनी सुविधानुसार स्वार्थ सिद्ध करना।

  4. खाली हथ मुखमा नी जांदु।
    खाली हाथ मुँह में नहीं जाता।
    भावार्थ: बिना पैसे के कोई काम नहीं करता।

  5. अफू चलदन रीता, हैका पढोंदन गीता।
    अपने आप चलते खाली, दूसरों को पढ़ाते गीता।
    भावार्थ: स्वयं ज्ञान न होने पर भी दूसरों को ज्ञान बाँटना।


कुमाऊंनी मुहावरे:

  1. हुने छा: एक सपक, ना हुने छा: सो सपक।
    बनने वाला मट्ठा एक बार में ही बन जाता है और ना बनने वाला सो बार में भी नहीं
    भावार्थ: होने वाला काम एक बार में ही हो जाता है।

  2. जे खुट त्याढ़ ह्वाल वो भयो पडल।
    जिसके पाँव टेड़े होते हैं वो गड्ढे में ही गिरेगा।
    भावार्थ: जो जैसा होगा वैसा ही फल पायेगा।

  3. न ग्ये अल्माड, ना लाग गलमाड।
    घर से बाहर जाकर ही हकीकत पता लगती है।

  4. कयो बीज लेन लगाय, चेल खान खाने आय।
    छोटे से काम को भी लापरवाही से करना।
    भावार्थ: लापरवाही के लिए यह मुहावरा प्रयोग किया जाता है।

  5. सौ ज्यू गुड़ खावौ लेख लेख लेख।
    सर जी गुड़ खाओ, लिख, लिख, लिख देना।
    भावार्थ: यह कहावत बनियों/व्यापारियों के लिए है जो प्यार से बुलाते हैं, लेकिन अपने मुनीम को कहते हैं कि जो खाया, सब लिख दो हिसाब में।


गढ़वाली कहावतें:

  1. "जख बिलि नी तख मूसा नचणु"
    जहां बिल्ली नहीं, वहाँ चूहे नाच रहे हैं।
    भावार्थ: जहां कोई नियंत्रण नहीं होता, वहाँ हम गलत कार्य कर सकते हैं।

  2. "जखि देखि तवा-परात, वखि बिताई सारी रात।"
    जहां देखा तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
    भावार्थ: अपनी सुविधानुसार स्वार्थ सिद्ध करना।

  3. "खाली हथ मुखमा नी जांदु"
    खाली हाथ मुँह में नहीं जाता।
    भावार्थ: बिना पैसे के कोई काम नहीं करता।

  4. "तिमला-तिमलो खत्या, नंग्या-नन्गी द्यख्या।"
    सारे तिमला [एक फल] भी गिर गए, नंगे भी दिख गए।
    भावार्थ: हानि के साथ-साथ सम्मान भी खो देना।

  5. "अफू चलदन रीता, हैका पढोंदन गीता।"
    अपने आप चलते खाली, दूसरों को पढ़ाते गीता।
    भावार्थ: स्वयं ज्ञान न होने पर भी दूसरों को ज्ञान बाँटना।


कुमाऊंनी कहावतें:

  1. "हुने छा: एक सपक, ना होने छा: सो सपक"
    बनने वाला मट्ठा (छा: छ) एक बार में ही बन जाता है और ना बनने वाला सो बार में भी नहीं।
    भावार्थ: होने वाला काम एक बार में ही हो जाता है।

  2. "जे खुट त्याढ़ ह्वाल वो भयो पडल।"
    जिसके पाँव टेड़े होते हैं, वह गड्ढे में ही गिरेगा।
    भावार्थ: जो जैसा होगा, वैसा ही फल पायेगा।

  3. "कयो बीज लेन लगाय, चेल खान खाने आय।"
    क्यो (छोटा मटर) का बीज लेने बच्चे को भेजा तो वह बीज को खाते-खाते आया।
    भावार्थ: "लापरवाही" के लिए यह मुहावरा प्रयोग किया जाता है।

  4. "लेखो पल पल को लिजी जालो"
    पल-पल का किया लिखा जाता है।
    भावार्थ: भगवान का न्याय हर कार्य पर होता है।

  5. "सौ ज्यू गुड़ खावौ लेख लेख लेख"
    सर जी गुड खाओ, लिख, लिख, लिख देना
    भावार्थ: यह कहावत व्यापारी जीवन से जुड़ी हुई है, जहां प्यार से बुलाकर खाना खिलाया जाता है, लेकिन हिसाब के लिए ध्यान रखा जाता है।


निष्कर्ष:

यह मुहावरों की सूची गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं में प्रचलित चतुराई और जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाती है। ये मुहावरे न केवल इन भाषाओं के सांस्कृतिक पक्ष को प्रकट करते हैं, बल्कि समाज की चाल-ढाल और उसके रिवाजों को भी उजागर करते हैं। इन मुहावरों के माध्यम से जीवन की सच्चाईयों, कठिनाइयों, और उन पर काबू पाने की कला को व्यक्त किया जाता है।

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