गढ़वाली और कुमाऊंनी मुहावरे और उनका अर्थ
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अग्ने कि जगि मुछळी पैथरि आंदी। |
गढ़वाली मुहावरे:
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जख बिलि नी तख मूसा नचणु।
जहां बिल्ली नहीं, वहाँ चूहे नाच रहे हैं।
भावार्थ: जहां नियंत्रण नहीं होता, वहां हम गलत कार्य कर सकते हैं। -
थोडि जगा गिलो आटो।
थोड़ी सी जगह और आटा गीला
भावार्थ: कंगाली में आटा गीला। हालात बाद से बदतर होने पर। -
जखि देखि तवा-परात, वखि बिताई सारी रात।
जहां देखा तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
भावार्थ: अपनी सुविधानुसार स्वार्थ सिद्ध करना। -
खाली हथ मुखमा नी जांदु।
खाली हाथ मुँह में नहीं जाता।
भावार्थ: बिना पैसे के कोई काम नहीं करता। -
अफू चलदन रीता, हैका पढोंदन गीता।
अपने आप चलते खाली, दूसरों को पढ़ाते गीता।
भावार्थ: स्वयं ज्ञान न होने पर भी दूसरों को ज्ञान बाँटना।
कुमाऊंनी मुहावरे:
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हुने छा: एक सपक, ना हुने छा: सो सपक।
बनने वाला मट्ठा एक बार में ही बन जाता है और ना बनने वाला सो बार में भी नहीं
भावार्थ: होने वाला काम एक बार में ही हो जाता है। -
जे खुट त्याढ़ ह्वाल वो भयो पडल।
जिसके पाँव टेड़े होते हैं वो गड्ढे में ही गिरेगा।
भावार्थ: जो जैसा होगा वैसा ही फल पायेगा। -
न ग्ये अल्माड, ना लाग गलमाड।
घर से बाहर जाकर ही हकीकत पता लगती है। -
कयो बीज लेन लगाय, चेल खान खाने आय।
छोटे से काम को भी लापरवाही से करना।
भावार्थ: लापरवाही के लिए यह मुहावरा प्रयोग किया जाता है। -
सौ ज्यू गुड़ खावौ लेख लेख लेख।
सर जी गुड़ खाओ, लिख, लिख, लिख देना।
भावार्थ: यह कहावत बनियों/व्यापारियों के लिए है जो प्यार से बुलाते हैं, लेकिन अपने मुनीम को कहते हैं कि जो खाया, सब लिख दो हिसाब में।
गढ़वाली कहावतें:
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"जख बिलि नी तख मूसा नचणु"
जहां बिल्ली नहीं, वहाँ चूहे नाच रहे हैं।
भावार्थ: जहां कोई नियंत्रण नहीं होता, वहाँ हम गलत कार्य कर सकते हैं। -
"जखि देखि तवा-परात, वखि बिताई सारी रात।"
जहां देखा तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
भावार्थ: अपनी सुविधानुसार स्वार्थ सिद्ध करना। -
"खाली हथ मुखमा नी जांदु"
खाली हाथ मुँह में नहीं जाता।
भावार्थ: बिना पैसे के कोई काम नहीं करता। -
"तिमला-तिमलो खत्या, नंग्या-नन्गी द्यख्या।"
सारे तिमला [एक फल] भी गिर गए, नंगे भी दिख गए।
भावार्थ: हानि के साथ-साथ सम्मान भी खो देना। -
"अफू चलदन रीता, हैका पढोंदन गीता।"
अपने आप चलते खाली, दूसरों को पढ़ाते गीता।
भावार्थ: स्वयं ज्ञान न होने पर भी दूसरों को ज्ञान बाँटना।
कुमाऊंनी कहावतें:
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"हुने छा: एक सपक, ना होने छा: सो सपक"
बनने वाला मट्ठा (छा: छ) एक बार में ही बन जाता है और ना बनने वाला सो बार में भी नहीं।
भावार्थ: होने वाला काम एक बार में ही हो जाता है। -
"जे खुट त्याढ़ ह्वाल वो भयो पडल।"
जिसके पाँव टेड़े होते हैं, वह गड्ढे में ही गिरेगा।
भावार्थ: जो जैसा होगा, वैसा ही फल पायेगा। -
"कयो बीज लेन लगाय, चेल खान खाने आय।"
क्यो (छोटा मटर) का बीज लेने बच्चे को भेजा तो वह बीज को खाते-खाते आया।
भावार्थ: "लापरवाही" के लिए यह मुहावरा प्रयोग किया जाता है। -
"लेखो पल पल को लिजी जालो"
पल-पल का किया लिखा जाता है।
भावार्थ: भगवान का न्याय हर कार्य पर होता है। -
"सौ ज्यू गुड़ खावौ लेख लेख लेख"
सर जी गुड खाओ, लिख, लिख, लिख देना
भावार्थ: यह कहावत व्यापारी जीवन से जुड़ी हुई है, जहां प्यार से बुलाकर खाना खिलाया जाता है, लेकिन हिसाब के लिए ध्यान रखा जाता है।
निष्कर्ष:
यह मुहावरों की सूची गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं में प्रचलित चतुराई और जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाती है। ये मुहावरे न केवल इन भाषाओं के सांस्कृतिक पक्ष को प्रकट करते हैं, बल्कि समाज की चाल-ढाल और उसके रिवाजों को भी उजागर करते हैं। इन मुहावरों के माध्यम से जीवन की सच्चाईयों, कठिनाइयों, और उन पर काबू पाने की कला को व्यक्त किया जाता है।
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