जमीन पर सूखी घास के पुओं(गट्ठर) को समेटकर बनाया जाता है वो 'कुस्योल' 'खुमा' 'लुट को पुलकुंड, थुव्वा' बोल जाता है
उत्तराखंड में सूखी घास और पुवाल का ढेर (थपुड़)। विधिवत बना ढेर लुट कहलाता है #लुट। #थुपुड़ कोई भी लगा सकता है, #लुट लगाना एक कला है। ज़मीन पर ऐसे कि पानी से न सड़े। पेड़ पर हो तो तेज हवा से न बिखरे। #गढ़वाल में लुट को पुलकुंड, थुव्वा कहा जाता है। मैदानों में माचा, बोऊ सुना है।
जो जमीन पर सूखी घास के पुओं(गट्ठर) को समेटकर बनाया जाता है वो 'कुस्योल' कहलाता है और जो पेड़ों पर पराल(धान का तना), नऊ (तना - मड़ू, झूंगर आदि) को एकत्रित/व्यवस्थित करने बनाया जाता है 'लुट' कहलाता है।
मध्य उत्तरप्रदेश से बिहार के सीमा तक इसे "खरही" और कहीं खरहा भी कहते है|
मैदानी इलाकों में इसे कूप या कुर्री कहा जाता है। यह फूंस से बनी दृढ़ बेलनाकार संरचना के ऊपर शंक्वाकार रचना होती है जो इस के भीतर भरे गए भूसे की तेज हवा और वर्षा से सुरक्षा करती है।
दक्षिणीपूर्वी नेपालकी तराईके लोग सालभरके चारेके लिए पुवाल (पुवार) की बनाईहुई ढेरको “टाल” कहते हैं। “पुवारके टालमें साँप घुस्कल रहै।” या फिर “पुवालेर टालखानत साँप घुस्काल छिल्गी।”
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