जय माँ अनुसुया देवी – 45 साल बाद देवरा यात्रा पर जाएगी माँ अनुसुया
माँ अनुसुया देवी, जिनकी पूजा पूरे मंडल घाटी में विशेष श्रद्धा से की जाती है, एक बार फिर अपने भक्तों पर आशीर्वाद बरसाने के लिए यात्रा पर निकलेंगी। इस साल विजयदशमी के पावन पर्व पर, 8 अक्टूबर को माँ अनुसुया की देवरा यात्रा शुरू होगी, जो 45 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद हो रही है। यह यात्रा आगामी नौ महीने तक चलेगी और माँ अनुसुया अपने भक्तों से मिलने के लिए कई गांवों का दौरा करेंगी।
माँ अनुसुया देवी के मंदिर और उनकी यात्रा की विशेषता
माँ अनुसुया की यात्रा विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह यात्रा 45 वर्षों के बाद हो रही है। यह यात्रा चमोली जनपद की मंडल घाटी के नौ से अधिक गांवों के लिए एक ऐतिहासिक पल है। इन गांवों में खल्ला, मंडल, सिरोली, कोटेश्वर, बणद्वारा, बैरागना, भदाकोटी, कुनकुली, मंडोली और अनुसूया गांव शामिल हैं। इस यात्रा में माँ अनुसुया की उत्सव डोली केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर भी जाएगी।
माँ अनुसुया का पौराणिक महत्व और उनके मंदिर की कथा
माँ अनुसुया को सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है, और उन्हें विशेष रूप से पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिदेवों ने माँ अनुसुया के सतीत्व की परीक्षा ली थी। महर्षि नारद ने त्रिदेवियों से कहा था कि तीनों लोकों में अनसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है, जिसके बाद त्रिदेवों ने साधु रूप में माँ अनुसुया के पास आने का निश्चय किया और उन्हें बिना वस्त्रों के भोजन देने का आग्रह किया। माँ अनुसुया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवताओं को शिशु रूप में परिवर्तित कर स्तनपान कराया, और अंततः त्रिदेवों को उनके वास्तविक रूप में प्रकट कर दिया। तब से उन्हें पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।
माँ अनुसुया के मंदिर का इतिहास
माँ अनुसुया का मंदिर प्राचीन काल से ही श्रद्धालुओं के बीच प्रतिष्ठित रहा है। पहले यहां एक छोटा सा मंदिर था, जिसे सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने भव्य रूप से बनवाया था। हालांकि, अठारहवीं सदी में एक विनाशकारी भूकंप ने इस मंदिर को तबाह कर दिया था। इसके बाद, संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर का निर्माण स्थानीय पत्थरों से किया गया था और यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया है।
माँ अनुसुया के मंदिर में विशेष पूजा और मेला
माँ अनुसुया के मंदिर में हर साल नवरात्रि के दौरान नौ दिन तक पूजा होती है, और इस दौरान मंडल घाटी के ग्रामीण श्रद्धा से माँ का पूजन करते हैं। इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहाँ बलि प्रथा का कोई स्थान नहीं है। श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है, जो स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे से तैयार किया जाता है।
माँ अनुसुया के मंदिर में आयोजित होने वाला मार्गशीष पूर्णिमा का मेला और रक्षाबंधन पर होने वाला ऋषितर्पणी मेला क्षेत्र के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण मेलों में से एक है। इन मेलों में हजारों श्रद्धालु शिरकत करते हैं और माँ अनुसुया से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
समाप्ति
माँ अनुसुया देवी की यात्रा और मंदिर की पूजा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस यात्रा के दौरान गाँवों के लोग सामूहिक रूप से भाग लेते हैं, जिससे यह एक बड़े सामाजिक आयोजन का रूप लेता है। इस साल की यात्रा को लेकर मंडल घाटी में जोरदार तैयारियाँ हो रही हैं, और स्थानीय लोग इस ऐतिहासिक घटना का हिस्सा बनने के लिए बेहद उत्साहित हैं।
जय माँ अनुसुया देवी
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