ऐड़ीधुरा_धाम ऐड़ी ने तुर्क आक़मणकारी को जिसे माल का भराडा कहते है

 ऐड़ीधुरा_धाम  ऐड़ी ने तुर्क आक़मणकारी को जिसे माल का भराडा कहते है



ऐड़ीधुरा_धाम  ऐड़ी ने तुर्क आक़मणकारी को जिसे माल का भराडा कहते है को रोका पांडवो ने व्यानधुरा में अज्ञातवास के समय भगवती की आराधना की ओर अस्त्र् शस्त्रों को इसी स्थान पर छिपाया भीम ने कीचक का वद्य भी इसी क्षेत्र् मे किया था दस क्षेत्र् में मुगल कालीन लेख भी मिला है ऐड़ी  राजांशी देव के रूप में पूजयनीय है और न्याय के प्रतीक माने जाते है, जन मानस में ऐड़ी की बहु चर्चित महिमा बहुत रही है, यह ऐड़ी धाम आस्था का केन्द्र और विभिन्न प्रकार के वन्य जन्तुओं से भी भरा पूरा रहता है यह मंदिर मनोहारी सौन्दर्य से चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य हर तरफ काफी पेड़ पौधे और हरा भरा जंगल है ! समुद्रतल से लगभग कई हजार फीट कि ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ पर बना है जिसकी प्रधान पीठों में गणना की जाती है इस ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित ऐड़ी का मंदिर नवरात्रियों मैं देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों देवस्थलों में दैवीय-शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र बने ऐड़ी धाम की विशेषता ही कुछ और है। जहां अपनी मनोकामना लेकर लाखों लोग बिना किसी नियोजित प्रचार व आमंत्रण के उमड़ पड़ते हैं, जिसकी उपमा किसी भी लघु-कुंभ से दी जा सकती है। इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरो से भिन्न है और इस मंदिर मैं 


धनुश-वाण,त्रीशूल इकठठे और कई बड़ी-बड़ी घंटिया भी है नवरात्री के समय इन घंटियों कि धव्नि से भक्तो मैं चार चाँद लग जाते है, और भक्तों के बीच एक अलिखित अनुबंध की साक्षी ये सफेत रंग के ( लिसान ) आस्था की महिमा का बखान करते हैं।
#ऐड़ीधुरा_धाम_लुवाकोट(चंपावत) यह ऐड़ीधुरा धाम तीन गाँव रैघाव, लुवाकोट, बैड़ा और पाडासो सेरा के लोगो का बहुत बड़ा धाम माना जाता है वैसे तो यहाँ कई गाँव से लोग आकर मन्नते मांगते है और पूजा अर्चना करते है, बहुत लम्बे अरसे से चली आ रही पर्था के अनुसार रैघाव, लुवाकोट, बैड़ा और पाडासो सेरा वाले मिलकर नवरात्री के। नवमी को डोल ले जाते है जिसमे ( जिनको ऐड़ी का रूप माना जाता है ) ऐड़ी के डांगर को ले जाया जाता है नवरात्री के। नवमी के शाम को ये तीन- चार गाँव के लोग मिलकर डोल के साथ ऐड़ीधुरा धाम पहुचंते है फिर वहा रात भर जागर गाया जाता और ढोल नगाड़े बजते है और साथ-साथ आग जलाई जाती है जिसको ( धूनी ) कहा जाता है फिर ढोल बजा कर देव डांगर ( धूनी ) के चारो तरफ चक्कर लगाते है कई लोगो का दुख, दर्द, पीड़ा दूर करते है और ये ऐड़ी अपने आप मैं न्याय के प्रतीक माने जाते है यह ऐड़ी मंदिर ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ के ऊपर बना सबको अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई-सभी एड़ी की महिमा को मन से स्वीकार करते हैं। देवभूमि उत्तराखंड कुमाऊं के देश के चारों दिशाओं में स्थित ऐड़ी का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है कहा जाता है कि जो भक्त यहाँ सच्ची आस्था लेकर ऐड़ी की दरबार में आता है, कुछ दुख, दर्द तो वैसे ही दूर हो जाता है और उनकी मनोकामना जरुर साकार होती है अगर मनोकामना पूरी होने पर फिर मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने भक्त-गड़ दुबारा दर्शन के लिए आने कि मान्यता भी है। जब ऐड़ी धाम मैं भक्त-गड़ समूह ( डोल ) लेकर लंबी कतार मैं चिंता किए बिना जोर-जोर से जयकारे लगाते लोगों की श्रध्दा व आध्यात्मिक अनुशासन की अद्भुत मिसाल यहां बस देखते ही बनती है। कुछ जंगल में मंगल सा अनोखा दृश्य उपस्थित करते हैं। पूरी रात मंदिर में अद्भुत दृश्य के साथ अपनी मन्नते मागी जाती है I



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