बैरासकुण्ड: रावण की तपस्थली और एक पौराणिक तीर्थ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNkDPXr4XvY-a7D67T8TZeTTyBCemQTe2IXBlfqRI4qfx5EOdF2SW_qB2e7culYs9dxe0jb7g6KNTkgDDpjSPpoUATx957xUZ2hGKo0Xn-q7W-vIz20WJ3pGNFxVm_0_Adw3R0VEiN4V9bA1jzq5oVp97Jbpe74yhbtD-2NSpx9u-QHKbe58dIal6qm_SL/w640-h288-rw/Bairaskund-Temple%201.1.jpg)
बैरासकुण्ड, उत्तराखंड के चमोली जिले के दशोली परगने में स्थित एक प्राचीन तीर्थ स्थल है, जो नंदप्रयाग से लगभग 10 किलोमीटर की चढ़ाई पर स्थित है। इस स्थान का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है। माना जाता है कि यही वह स्थान है, जहाँ लंकाधिपति रावण ने अपने नौ सिरों की आहुति देकर पितामह ब्रह्मा को प्रसन्न किया था। बैरासकुण्ड न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी प्रसिद्ध है।
बैरासकुण्ड का अर्थ और व्युत्पत्ति
'बैरासकुण्ड' शब्द का उल्लेख किसी भी प्राचीन ग्रंथ या पुराण में सीधे तौर पर नहीं मिलता। यह शब्द तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- वैर: शत्रुता या वैरभाव
- आश्र: अश्रु (आंसू)
- कुण्ड: छोटा जलाशय या यज्ञ के लिए खोदा गया गड्ढा
इस प्रकार, बैरासकुण्ड का अर्थ है "वह स्थान जहाँ शत्रुओं के अश्रु जलाशय में परिवर्तित हो गए।" किंवदंती के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ ने यहाँ तपस्या के दौरान मानव जीवन के वैरभाव जैसे दोषों की आहुति दी थी, जिससे यज्ञकुंड एक जलाशय में परिवर्तित हो गया।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiR2I3ND-PKAGN2HNjFALVLUF7SnK9r0a8RHBX4s-1p_zfkbo4xVRyiYimbxdX3n3t-kxabVv-CBFRWu6p9lEHwR39_8xDFA9fkreMrSbkmrVX500LjSX2EqBK4w8xIgPOf4N0z0WLv3ROgn1lW-ZrQbdQ15RE8Xj4fJ4FrRoWOFVZmZRTkj23ws9Z-WvD/w640-h480-rw/87541543_605841963329520_5605653390454423552_o-1-1024x768.jpg)
पौराणिक कथा और रावण की तपस्या
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण ने नंदनवन में दस हजार दिव्य वर्षों तक तपस्या की। प्रत्येक हजार वर्ष के पूरा होने पर, उसने अपना एक सिर यज्ञकुंड में हवन कर दिया। नौ सिरों की आहुति के बाद, जब वह दसवां सिर अर्पित करने को तैयार हुआ, तब पितामह ब्रह्मा प्रकट हुए और उसे वरदान देने के लिए सहमत हुए।
रावण ने ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन यह संभव न होने के कारण उसने अन्य प्राणियों से अवध्य होने का वर प्राप्त किया। यह स्थान रावण की घोर तपस्या का साक्षी बना और आज भी यहाँ वह चौरस पत्थर देखा जा सकता है, जहाँ रावण तप करता था।
महर्षि वशिष्ठ और वसिष्ठेश्वर लिंग
महर्षि वशिष्ठ ने अपनी पत्नी अरुंधती के साथ इस स्थान पर सहस्त्रों वर्षों तक तपस्या की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वसिष्ठेश्वर लिंग के रूप में दर्शन दिए। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस लिंग का उल्लेख मिलता है। आज यह स्थल भगवान शिव के वसिष्ठेश्वर स्वरूप की पूजा-अर्चना का केंद्र है।
भौतिक साक्ष्य और स्थानीय मान्यताएँ
बैरासकुण्ड क्षेत्र में रावण की तपस्या के कई भौतिक प्रमाण मिलते हैं:
- तपस्थली का पत्थर: बैरासकुण्ड मंदिर से 100 मीटर दूर एक चौरस पत्थर है, जिस पर रावण के बैठने के चिह्न हैं।
- क्वैलाख: कहा जाता है कि रावण यहाँ प्रतिदिन नया कुआँ खोदता था। इस कारण इस क्षेत्र का नाम "कई लाख कुआँ" पड़ा, जो कालांतर में "क्वैलाख" बन गया।
- चार कुण्ड: बैरासकुण्ड मंदिर के आसपास चार प्रमुख कुण्ड हैं: नागकुण्डी, भोगजल कुण्डी, अभिषेक जल कुण्डी, और मुख्य बैरासकुण्ड।
दशमौलिंगढ़: क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व
यह क्षेत्र रावण की तपस्या के कारण दशमौलिंगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। यह माना जाता है कि रावण ने अपने राज्य की उत्तरी सीमा यहीं निर्धारित की थी। दशोली परगना का नाम भी इसी दशमौलिंगढ़ से जुड़ा है।
बैरासकुण्ड यात्रा और प्राकृतिक सौंदर्य
बैरासकुण्ड की यात्रा दो मार्गों से की जा सकती है:
- नंदप्रयाग मार्ग: लगभग 10 किलोमीटर की चढ़ाई।
- थिरपाक-गंडासू मार्ग: लगभग 7 किलोमीटर की चढ़ाई।
समुद्र तल से यह स्थान 6500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इसके आसपास पंचजूनी पर्वत और देवांग्नी पर्वत की प्राकृतिक छटा मनमोहक है। जंगलों की तलहटी में वन देवियों और ऐड़ी-आच्छरी जैसे वन देवताओं का वास माना जाता है।
निष्कर्ष
बैरासकुण्ड न केवल एक धार्मिक तीर्थ है, बल्कि यह तप और त्याग की पौराणिक गाथाओं का जीवंत प्रमाण भी है। यह स्थान ऋषि-मुनियों और रावण जैसे महान तपस्वियों की साधना का केंद्र रहा है। आज यह तीर्थ शोधकर्ताओं, भक्तों और प्रकृति प्रेमियों के लिए समान रूप से आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
क्या आपने बैरासकुण्ड की यात्रा की है? यदि नहीं, तो उत्तराखंड की यह पौराणिक भूमि आपके स्वागत के लिए तत्पर है।
टिप्पणियाँ