लालुकाथल की तरफ गाज्यो (कटीली घास) काटने जा रही चार - पाँच सखी - सहेलियों

 बेठे ठाले ........


.         .            लालुकाथल की तरफ गाज्यो (कटीली घास) काटने जा रही चार - पाँच सखी - सहेलियों में से किसी एक ने पूछा है ..... ला दिदि , जगज्यू 'ल बेई तुमन थैं कि कौ उ " पियार - सियार " सब बाद में होल् कै .... इनन् ले बतै दिनाँ धैं (अरे दीदी, जगदीश 'जी ने कल तुसमे वो पियार - सियार क्या कहा था , इनको भी बताना तो )...... कितुलि भाभी को समझते देर न लगी कि माल् बजेरी की रंभा ने यह सवाल उनसे ही किया है ..... मैं थैं किलै कौल जग्गू .... उँ त बतूँण लागि रौछी कि आब् मन लगै बेरि पढ़ाइ करुँन कै और त्यार ख्वार् तस बजर पड़ि रौ ( मुझसे क्यों कहेगें जगदीश ? वे तो बता रहे थे कि अब मन लगा कर पढाई करूँगा और तेरे दिमाग में उल्टी बात घुस रही है )


 ...... सुनते ही सब खिलखिला पड़ीं । कितुलि भाभी को जाने क्यों लगा जैसे चोरी पकड़ी गई है । अभी वे और सफाई देतीं लेकिन तब तक पार्वती बोल पड़ी .....  हमैरि बोज्यू ले जास् - कास् जि भ्या ! तुम कि समच्छा , पियार - सियार न जाणन् कै ....... ब्या बाद एक साथ भटिंडा रई छन । वां दाज्यू ' नां दिगा इनैलि संगम , मुगलेआजम , मेला , कतुकुप पिक्चर देखी भ्या (हमारी भाभी कोई ऐसी वैसी नहीं हैं । तुम लोग क्या समझते हो कि प्यार व्यार नहीं समझतीं हैं ? ... शादी के बाद एक साल भटिंडा रहीं हैं । वहाँ दादा के साथ इन्होंने संगम ,मुगलेआजम , मेला , ओर भी बहुत सारी फिल्में देखीं हैं )...... द्अ~~~ ना्नज्यू , तुम ले गजब छौ ! बुड्याकाव आ्ब योई बच्चिचौछै (लो जी ननदी , तुम भी गजब हो । बुढ़ापे में अब यही बाकी है ) ...... कितुलि को खुद पर हँसी आई या इन सब की बातों पर , यह तो वे ही जानें लेकिन उनकी सत्यनिष्ठा पर किसी को संदेह नहीं रह गया था क्योंकि बिरादरी में देरानी लगी रंभा भी अब कहने लगी थी कि मैं तो यों ही दीदी से मजाक कर रही थी । थोड़ा टैमपास और चार पु गाज्यो भी सपड़ जाएगा करके । ...... वैसे, जग 'दा हुए तो रंगीन मिजा़ज वाले , गजब गा दिया हो ...... बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं । मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना बल ..... मैं भी कम जो क्या ठैरी ! मुख पे ही कचका दिया ...... जै लिजी गैंण लागि रौछा नै , उ लखनौ पन मर्रि रैन्हेलि , यां जि कि छ ( जिसके लिए गा रहे हो न , वह लखनऊ में कहीं होगी , यहाँ थोड़ी है ..) ...... तभी कव् (कौआ),  पता नहीं कहाँ से आ गया और का  का  का ..... करने लगा । जगज्यू बोले ..... तुम नि समझला बोज्यू ! (तुम नहीं समझोगी , भाभी )  ..... ततु बुद्दू ले नि भयाँ हो ! अरे , शहर नि देख् त, तैक मतलब यो नि भै कि तुमैरि ट्वाँ - ट्वां , टीं टीं ले न समझनां कै (इतने बुद्धु भी नहीं हैं । शहर नहीं देखा तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारी ट्वाँ - ट्वां , टीं- टीं भी नहीं समझते हैं )..... रंभा कल की बातें सभी को रस लेकर बताने लगी कि पार्वती बोल पड़ी ..... हमा्र जग ' दा माउथहार्गन सुँणि बेरि तुम लोग सब रणीं गोछा तबै पु बादण में ले सतनरैणै काथ् जै चली भै ..... ( हमारे जग 'दा का माउथहार्गन सुनकर तुम सब लोग वशीभूत हो गई हो , इसीलिए घास के गट्ठर बाँधने में भी सत्यनारायण की कथा जैसी चल रही है )। अब रंभा भी क्या बोलती ! कितुलि को फसाने के चक्कर में एक - एक कर सभी उलझती जा रही थीं ।

        . कितुलि , रंभा , पार्वती , नीरा , साबुलि ...... और भी कई ननद , भौजाई और बहनें हैं जो गोड़ाई , निराई और जंगल जाते हुए ऐसे ही मनोरंजन कर तृप्त हो लेतीं हैं । कुछ के सपने पल रहे हैं और कुछ सपने देखतीं हैं ...... दिन के उजाले में कोई सपने देखता है भला ? जी हाँ , पहाड़ों में दिनचर्या ऐसी है कि सपनों की रात होती ही नहीं ! वहाँ सभी कुछ प्रकृति को समर्पित है .... यहाँ तक कि तन और मन भी , इसीलिए हँसी , ठठोली में अपनों से दूरी पता ही नहीं चलती । जिन्दगी के सफर का एक बड़ा भाग जब जुग्नुओं के सहारे गुजर जाए तो शुक्लपक्ष या कृष्णपक्ष के फिर कोई मायने नहीं रह जाते ....... बहुत दिनों से उनकी कोई कुशल बात नहीं मिली है । कितुलि ने चिट्ठी लिखकर लिफाफे में रखने से पूर्व कई बार फाड़ दी ! क्या करे ! चिट्ठी में बार - बार " पहाड़ " जो बन जा रहा है , इसलिए किसी और लिखाने का विचार आया है । सहेलियों से लिखा नहीं सकती , बच्चे क्या लिखेंगे ...... शब्दों और विचारों को क्रमबद्ध करके चिट्ठी रुप देना भी सरल नहीं होता ! इसलिए चाचा ने लिखाने का विचार आया है और आदतन शाम को ,  आज - कल में जब भी वे चाय पीने या हालचाल लेने आयेंगें तो आमा के सामने कहा जाएगा ..... जगज्यू , एक भली भलि चिट्ठी उनन तैं लेखण छी । तुमन टैम छै ,  लिख देला के ? ( जगदीश जी , एक अच्छी सी चिट्ठी उनके लिए लिखनी है । आपके पास समय है , लिख देंगे ? ) 

   .            . लुटाणि (त्रिशंकु के आकार में रखा पुवाल का ढेर)से पुवाल लाने गए चाचा को जाने क्या सूझी कि पिछवाड़े लगे तिमुल के पेड़ पर बैठ गये हैं और "  जिन्दगी एक सफर है सुहाना - कल क्या हो किसने जाना " ....... धुन छेड़ दी है । ढलानों से उतरते धुँधलके में घर लौट रही घस्यारिनों को समझ आ रहा कि कहीं जगदीश माउथहार्गन बजा रहें हैं । जो गीत के बोल समझ पा रहीं हैं उन्हें यह नहीं समझ आ रहा कि जिन्दगी के सफर को सुहाना कहें भी तो कहें कैसे ? जब कि कल क्या होगा ..... यह कोई नहीं जानता ! बाकी के लिए तो यह धुन भी वैसी ही है ...... घुघूती न बासा आमै की डाई मां ! उधर आमा सोच रही है जग्गू से दो पु (गाँठ) पराल लाने को कहा था , बहुत देर हो गई , आया नहीं ......  कै दिगा पत्याड़ 'न लागि रौन्होयोल ( किसके साथ बकवास में लगा होगा ) ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Most Popular

केदारनाथ स्टेटस हिंदी में 2 लाइन(kedarnath status in hindi 2 line) something
जी रया जागी रया लिखित में , | हरेला पर्व की शुभकामनायें  (Ji Raya Jagi Raya in writing, | Happy Harela Festival )
हिमाचल प्रदेश पर शायरी स्टेटस कोट्स इन हिंदी(Shayari Status Quotes on Himachal Pradesh in Hindi)
 हिमाचल प्रदेश की वादियां शायरी 2 Line( Himachal Pradesh Ki Vadiyan Shayari )
महाकाल महादेव शिव शायरी दो लाइन स्टेटस इन हिंदी (Mahadev Status | Mahakal Status)
हिमाचल प्रदेश पर शायरी (Shayari on Himachal Pradesh )
गढ़वाली लोक साहित्य का इतिहास एवं स्वरूप (History and nature of Garhwali folk literature)
श्री बद्रीनाथ स्तुति (Shri Badrinath Stuti) Badrinath Quotes in Sanskrit
150+ उत्तराखंड सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर हिंदी में | Gk in Hindi - 150 +  Uttarakhand GK Question Answers in Hindi | Gk in hindi
Pahadi A Cappella 2 || Gothar Da Bakam Bham || गोठरदा बकम भम || MGV DIGITAL