कविता - हूं राज्यपुष्प उत्तराखण्ड का

 हूं राज्यपुष्प उत्तराखण्ड का

मैं नहीं प्रियतम कमल पुष्प,

      जो कीचड़ में खिल जाता है।

      हूं मां नंदा की चरण धूरी,

      ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।।



   गुण हैं औषधि मुझ में भरपूर,

   मानव मेरे शोषण में चूर।।

   अब कौन इन्हें समझाएगा,

    हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का,

    ब्रह्म कमल कहलाता हूं ।।



  बर्गनदतोगेस भी नाम मेरा,

 तो हिमाचल में दुधाफूल ,

कश्मीर में नाम है गलगल,

 हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का ,

ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।।


आस्था विश्वास की परम झलक ,                      

केदारधाम पर चढ़ता हूं,

आस्था रूपी हूं देवपुष्प ,

हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का 

ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।।


निवेदक बनकर मांग रहा,

अपने, अस्तित्व की अमिट धरा,

मेरा ,नाम कहां ले पाओगे,

यदि ,धरा पर ही ना रहा ।।

क्यों व्यापार को मेरे हो आतुर,

हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का,

ब्रह्मकमल कहलाता हूं।।

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