सुमित्रानंदन पंत जी की पहाड़ी कविता ब्रांच के प्रति लिखी हुई

 सुमित्रानंदन पंत जी की पहाड़ी कविता जो उन्होंने बुरांश पर लिखी थी इस तरह तो उत्तराखंड पर कहीं कविताएं लिखी जा चुकी हैं लेकिन कुछ खास कविताएं इस तरह जोकि उत्तराखंड की पारंपारिक चीजों को दर्शाती हैं उन कविताओं का अनुवाद अगर सरल भाषा में की जाए तो उन कविताओं का अर्थ से जो सुकून मिलता है .........




सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,

फुलन छै के बुरूंश! जंगल जस जलि जां।


सल्ल छ, दयार छ, पई अयांर छ,

सबनाक फाडन में पुडनक भार छ,

पै त्वि में दिलैकि आग, त्वि में छ ज्वानिक फाग,

रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ।


सारि दुनि में मेरी सू ज, लै क्वे न्हां,

मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ।


काफल कुसुम्यारु छ, आरु छ, अखोड़ छ,

हिसालु, किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ ,

पै त्वि में जीवन छ, मस्ती छ, पागलपन छ,

फूलि बुंरुश! त्योर जंगल में को जोड़ छ?


सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,

मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा॥


~ सुमित्रानंदन पंत

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