एक उत्तराखंड ने निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से मना कर दिया था उन को 20 साल की सजा और वेतन पेंशन सब छीन लिया गया था
जो पेशावर विद्रोह के बाद भारत छोड़ो आंदोलन में भी उतरे और जेल गए।
जिन्हें पेशावर विद्रोह में कालापनी (20 साल) की सजा हुई।
जिनका अवशेष वेतन, पेंशन और रैंक अंग्रेजों ने छीन लिए थे।
जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में दो बार में कुल 9 साल की सजा हुई।
जिनका हौसला अंग्रेजों की 9 जेलें भी न तोड़ सकी .......
जिन्हें कलापानी सहित 29 साल की सजा हुई।
जिन्होंने 13 साल अंग्रेजों की जेलों में बिताए।
जिन्हें जेल से रिहा करने के बाद भी गृह क्षेत्र गढ़वाल प्रवेश पर रोक लगाई गई।
जो इन 9 जेलों में रहे .......
एबटाबाद, डेरा इस्माइलखां, बरेली, नैनी, लखनऊ, अल्मोड़ा, देहरादून, मिर्जापुर, बनारस। लखनऊ जेल में तीन बार और अल्मोड़ा जेल में दो बार।
जो जेल से बाहर 11 साल बाद पत्नी से और 17 साल बाद पिता से मिल पाए। जेल में 7 साल बाद मिले थे।
जिनके लिए गांधीजी ने कहा था कि "मुझे एक चन्द्र सिंह गढ़वाली और मिल जाता तो देश पहले ही आजाद हो जाता"।
जो पत्नी को चिट्ठी में यह लिख कर टिहरी रियासत की क्रांति में शामिल होने चल दिए थे कि शायद वे वापस नहीं लौट पाएंगे।
जिनके बारे में और भी बहुत कुछ है, जानने के लिए। अविश्वसनीय और रोमांचक।
हमारी आजादी के आंदोलन में ऐसे अकेले अजेय योद्धा ने आज ही के दिन 25 दिसंबर 1891 को गढ़वाल में जन्म लिया था।
आइए, 129 वीं जयंती पर इस अजेय महान योद्धा को याद करें ................
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