जानाए हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा के बारे मैं

 हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा 

चमोली, उत्तराखण्ड 

हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा

हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा


नीती तथा माणा भारतवर्ष के उत्तर में सीमान्त गॉंवों के नाम हैं। ये दोनों गॉंव उत्तराखण्ड प्रदेश के चमोली नामक जिले के उत्तरी क्षेत्र में स्थित हैं। भारत के अन्तिम गॉंव तथा देवभूमि की रमणीक हिमालयी प्राकृतिक विरासत के लिये प्रसिद्ध हैं।


ऐतिहासिक पृष्टभूमि

नीती व माणा भारत के अन्तिम और प्राचीन गॉंव होने के कारण इन दोनों गॉंवों का इतिहास भी प्राचीनतम है। यह दोनों गॉंव [[तिब्बत (चीन) के मुख्य दर्रे पर हैं। नीती माणा क्षेत्र प्राचीन भारत की आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक व रक्षा-सुरक्षा समेत कई अन्य गूढ़ रहस्यों से समाविष्ट है। यह दोनों गॉंव तिब्बत (चीन) के प्राचीन मुख्य दर्रे होने के कारण महत्वपूर्ण व्यापारिक क्षेत्र रहा है, जिनकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि विस्तृत है।


भौगोलिक स्थिति

नीती माणा नामक दोनों गॉंव, जिन्हें भारत के अन्तिम गॉंव कहते हैं, भारत के उत्तरी छोर पर हैं। समुद्र सतह से क्रमश: 3600 तथा 3134 मीटर की ऊँचाई पर सरस्वती नदी के समीप स्थित हैं। अत्यन्त दुर्गम व हिमाच्छादित पहाडि़यों के कारण एक गॉंव से दूसरे गॉंव की दूरी लगभग 130 किलोमीटर है। यहॉं के निवासियों को भारत, तिब्बत तथा मंगोलिया से आये मिश्रित लोगों का वंशज माना जाता है। दोनों गॉंवों में माणा तिब्बत (चीन) के मुख्य दर्रे तथा राजमार्ग बन जाने के कारण बहुपरिचित है, जबकि नीती मुख्य दर्रे से दूर तथा अधिक संवेदनशील व प्रकृति के ओत-प्रोत है।

हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा

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तापमान

हिमालय के सन्निकट होने के कारण यहॉं की जलवायु बहुत शीत्ण हैं। यहॉं का तापमान अकसर गर्मियों में 15 से 25 डिग्री तथा सर्दियों 5 से 19 डिग्री सैल्सियस के मध्य पाया जाता है। अन्य पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्र के पर्यटक के रूप आने वाले लोगों के लिये यहॉं पर मई से अक्टूबर के मध्य का समय उचित तथा स्वास्थ्यप्रद होता है।

हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा

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सभ्यता, संस्कृति व निवासी

नीती माणा दोनों गॉंव हिमालयी क्षेत्र की ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ गढ़वाली सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाने जाते हैं। यहॉं के मूल निवासियों को भोटिये रौन्गपा, मार्छा तथा तोलछा कहा जाता है। सभी हिन्दू धर्मी लोग हैं। यहॉं के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा पशु-पालन है, जिनमें अधिकॉंशत: हिमालयी भेड़ बकरियों का व्यवसाय है। समयापरिवर्तन के साथ-साथ अब व्यवसाय व नौकरी में भी पाये जाने लगे हैं। खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज तथा वेश-भूषा ठेठ हिमालयी गढ़वाल की परम्परागत विरासत है, जो आम भारतवासियों से भिन्न तथा यहॅं की स्थानीय धरोहर के रूप में विद्यमान है।

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