कर्णप्रयाग उत्तराखंड स्थानीय आकर्षण प्रयाग/संगम कर्ण प्रयाग उमा देवी मंदिर मुख्य शहर

 कर्णप्रयाग उत्तराखंड

 स्थानीय आकर्षण प्रयाग/संगम कर्ण प्रयाग उमा देवी मंदिर मुख्य शहर 

कर्णप्रयाग Karnprayag Uttarakhand Local Attractions Prayag / Sangam Karna Prayag Uma Devi Temple Main City


अलकनंदा एवं पिंडर नदियों के संगम पर बसा कर्णप्रयाग एक सुसुप्त शहर है जहां जाड़ों में अलसाये भाव से लोग धूप सेकते नजर आते हैं। गर्मियों में यात्रा मौसम के दौरान अकस्मात यह एक जाग्रत कार्यकलापों का दृश्य उपस्थित करता है क्योंकि यात्रियों से भरी बसें यहां लगातार आती रहती है और यात्री या तो विश्राम करते या रात्रि में ठहरते हैं। पर्यटक सुविधाओं के अलावा इस शहर में यात्रियों को देखने एवं करने को बहुत कुछ उपलब्ध है।

मुख्य शहर 

कर्णप्रयाग छोटा होते हुए भी काफी बड़े क्षेत्र में फैला है क्योंकि आस-पास के कई गांव नगर पंचायत क्षेत्र में शामिल कर लिये गये है। आप ऋषिकेश से जब कर्णप्रयाग में प्रवेश करते है तो पुराना शहर पिंडर नदी के दाहिने तट पर स्थित है। नदी पर पुल को पार कर आप उमा देवी मंदिर तथा प्रयाग के घाट पहुंच जाते हैं। यह सड़क आगे बद्रीनाथ की ओर चली जाती है। शहर में कई बाजार, होटल, लॉज एवं भोजनालय हैं, जो बद्रीनाथ जाते हुए यात्रियों एवं तीर्थयात्रियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यहां से 7 किलोमीटर दूर रानीखेत सड़क पर सिमली एक औद्योगिक केंद्र विकसित हो रहा है। उपकरणों, रसायनों, औषधियों, टायर-मरम्मत, मुर्गी पालन केंद्र तथा दुग्धोत्पादन जैसे उद्योगों को यहां प्रोत्साहित किया जा रहा है।

Karnprayag Uttarakhand  Local Attractions Prayag / Sangam Karna Prayag Uma Devi Temple Main City

प्रयाग/संगम कर्ण प्रयाग

उमा देवी मंदिर के समीप सीढ़ियों से नीचे उतरकर पिंडर एवं अलकनंदा नदियों के संगम घाट पर पहुंचा जा सकता है। आप जब संगम पर उतरते है तो आप के सम्मुख एक शिव मंदिर आता है, मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है जबकि मंदिर का पुनरूद्धार हाल ही में हुआ है। मंदिर के आर-पार एक विशाल पीपल का पेड़ है जिसका धड़ रक्षा सूत्र से लपेटा हुआ हैं जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिये भक्तों ने बांधे हैं। और नीचे गंगा मंदिर है जो गंगा मंदिर संगम तट अन्नक्षेत्र द्वारा संचालित है। 10-12 वर्षों पहले इस मंदिर का निर्माण एक भक्त द्वारा कराया गया जबकि अन्नक्षेत्र की स्थापना 20 वर्षों पहले की गयी।

गंगा आरती प्रतिदिन शाम में गर्मियों में 7.30 बजे अन्नक्षेत्र के सदस्यों द्वारा संगम पर आयोजित होती है, जिसे 6 वर्ष पहले आरंभ किया गया।


कर्ण_मंदिर,

किंबदंती अनुसार आज जहां मंदिर है वह स्थान कभी जल के अंदर था और कर्णशिला नामक चट्टान की नोक ही जल के ऊपर उदित थी। कुरूक्षेत्र की युद्ध समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार अपनी हथेली पर किया था जिसे उन्होंने संतुलन के लिये कर्णशिला की नोंक पर रखा था। एक अन्य कहावतानुसार कर्ण अपने पिता सूर्य की यहां आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि देवी गंगा और भगवान शिव व्यक्तिगत रूप से कर्ण के सम्मुख प्रकट हुए थे।

यह मंदिर संगम के बायें किनारे अवस्थित है जो कर्ण के नाम पर ही है। पुराने मंदिर का हाल ही जीर्णोद्धार हुआ है तथा मानवाकृति से भी बड़े आकार की कर्ण एवं भगवान कृष्ण की प्रतिमाएं यहां स्थापिक है। परिसर में अन्य छोटे मंदिरों में भूमियाल देवता, राम, सीता एवं लक्ष्मण, भगवान शिव एवं पार्वती को समर्पित मंदिर शामिल हैं।

उमा_देवी_मंदिर

मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा हुई जबकि उमा देवी की मूर्ति इसके बहुत पहले ही स्थापित थी। कहा जाता है कि संक्रसेरा के एक खेत में उमा का जन्म हुआ। एक डिमरी ब्राह्मण को देवी ने स्वप्न में आकर अलकनंदा एवं पिंडर नदियों के संगम पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया। डिमरियों को उमा देवी का मायके माना जाता है जबकि कापरिपट्टी के शिव मंदिर को उनकी ससुराल समझा जाता है। हर कुछ वर्षों बाद देवी 6 महीने की जोशीमठ तक गांवों के दौरे पर निकलती है। देवी जब इस क्षेत्र से गुजरती है तो प्रत्येक गांव के भक्तों द्वारा पूजा, मडान तथा जाग्गरों का आयोजन किया जाता है जहां से वह गुजरती है। जब वह अपने मंदिर लौटती है तो एक भगवती पूजा कर उन्हें मंदिर में पुनर्स्थापित कर दिया जाता है। इस मंदिर पर नवरात्री समारोह धूम-धाम से मनाया जाता है।

यहां पूजित प्रतिमाओं में उमा देवी, पार्वती, गणेश, भगवान शिव तथा भगवान विष्णु शामिल हैं। वास्तव में, उमा देवी की मूर्ति का दर्शन ठीक से नहीं हो पाता क्योंकि इनकी प्रतिमा दाहिने कोने में स्थापित है जो गर्भगृह के प्रवेश द्वार के सामने नहीं पड़ता। वर्ष 1803 की बाढ़ में पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया तथा गर्भगृह ही मौलिक है। इसके सामने का निर्माण वर्ष 1972 में किया गया।

मंदिर के पुजारी, आर पी पुजारी, पुजारियों की चतुर्थ पीढ़ी के हैं जो पीढ़ियों से मंदिर के प्रभारी पुजारी रहे हैं। यहां पुजारियों के दस परिवार हैं जो रोस्टर प्रणाली के अनुसार बारी-बारी से कार्यभार संभालते हैं। ये परिवार ही सरकार की सहायता के बिना ही मंदिर की देखभाल एवं रख-रखाव करते हैं।


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