इंद्रमणि बडोनी :- का उत्तराखंड के लिए बलिदान किस तरह उनका कार्य कल रहा उत्तराखंड के लिए

 उत्तराखंड का गांधी इंद्रमणि बडोनी जी को कहा जाता है

इंद्रमणि बडोनी :- का उत्तराखंड के लिए बलिदान किस तरह उनका कार्य कल रहा उत्तराखंड के लिए

indramani badonee :- ka uttaraakhand ke lie balidaan kis tarah unaka kaary kol raha uttaraakhand ke lie


बहुप्रतिभा के धनी पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जयंती पर उनको शत शत नमन! शत शत अभिनंदन!

पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी रंगकर्मी, पंडो नृत्य के कुशल नाट्यकार थे यह बहुत कम लोगों को ज्ञात है।

पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी ने तीन तीन बार देवप्रयाग विधानसभा से उत्तर प्रदेश में प्रतिनिधित्व किया था।

पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे थे।

पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन के संपर्क में आए तो उन्होंने गाँधीवादी विचारधारा और शैली को आत्मसात कर लिया था।

पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म अखोड़ी गाँव (जखोली ब्लाक) टिहरी गढ़वाल में हुआ था।

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पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी के पौड़ी मुख्यालय में चल रहे 30 दिवस के अनशन पर किए गए लाठीचार्ज से संपूर्ण उत्तराखंड में सन् 1994 में पृथक राज्य प्राप्ति की ज्वाला धधक गई थी। और उनका सपना अंततोगत्वा सन् 2000 में साकार हुआ।

उनका एक सपना आज भी अधुरा है कि उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण में बने। आइए पर्वतीय गाँधी इंद्रमणि बडोनी जी के सपने को साकार करने के संकल्प के साथ उन्हें उनकी पावन जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करें। -

आज उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी जी का जन्मदिन है। उनके विचारों को आत्मसात कर हम एक बेहतर उत्तराखंड की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। 

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1994 का वर्ष था, तारीख थी 2 अगस्त. लम्बी दाढ़ी वाला एक दुबला पतला एक बूढा पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने अनशन पर बैठा था. उसकी मांग थी पृथक उत्तराखंड की. 7 अगस्त के दिन उसे जबरदस्ती उठाकर मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया और बाद में दिल्ली के एम्स में भर्ती किया गया. 69 बरस के इस बूढ़े व्यक्ति ने 30 दिनों तक अनशन किया और तीसवें दिन जनता के दबाव के कारण अपना अनशन वापस ले लिया.


बीबीसी ने उत्तराखंड आन्दोलन पर अपनी एक रिपोर्ट छापी जिसमें उसने लिखा- "अगर आपने जीवित और चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड चले जायें. वहां गांधी आज भी विराट जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है."


इस व्यक्ति का नाम था इन्द्रमणि बडोनी. उत्तराखंड राज्य की मांग करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख और बड़ा नाम है इन्द्रमणि बडोनी. आज उनका जन्मदिन है.


आजादी के बाद गांधीजी की शिष्या मीरा बेन 1953 में टिहरी की यात्रा पर गयी. जब वह अखोड़ी गाँव पहुंची तो उन्होंने गाँव के विकास के लिये गांव के किसी शिक्षित व्यक्ति से बात करनी चाही. अखोड़ी गांव में बडोनी ही एकमात्र शिक्षित व्यक्ति थे. मीरा बेन की प्रेरणा से ही बडोनी सामाजिक कार्यों में जुट गए.


24 दिसम्बर 1924 को टिहरी के ओखड़ी गांव में जन्मे बडोनी मूलतः एक संस्कृति कर्मी थे. 1956 की गणतंत्र दिवस परेड को कौन भूल सकता है. 1956 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग, गिराज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बंधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे.


सुरेशानंद बडोनी के पुत्र इन्द्रमणि बडोनी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वह नैनीताल और देहरादून रहे. इसके बाद नौकरी के लिए बंबई गये जहाँ से वह स्वास्थ्य कारणों से वापस अपने गांव लौट आये. उनका विवाह 19 साल की उम्र में सुरजी देवी से हुआ था. 


1961 में वो गाँव के प्रधान बने. इसके बाद जखोली विकास खंड के प्रमुख बने. बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग विधानसाभ सीट से जीतकर प्रतिनिधित्व किया. 1977 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़ा और जीता भी. 1980 में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल का हाथ थामा और जीवन भर उसके एक्टिव सदस्य रहे. उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे. बडोनी ने 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा. यह चुनाव बडोनी दस हजार वोटो से हार गये, कहते हैं कि पर्चा भरते समय बडोनी की जेब में मात्र एक रुपया था जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ब्रह्मदत्त ने लाखों रुपया खर्च किया.


1988 में उत्तराखंड क्रांतिदल के बैनर तले बडोनी ने 105 दिन की पदयात्रा की. यह पदपात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली. उन्होंने गांव के घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताये. 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण घोषित कर दी.


कला और संस्कृति से बेहद लगाव रखने वाले बडोनी ने ही पहली बार माधो सिंह भंडारी नाटक का मंचन किया था. उन्होंने दिल्ली और मुम्बई जैसे बड़े शहरों में भी इसका मंचन कराया. शिक्षा क्षेत्र में काम करते हुये उन्होंने गढ़वाल में कई स्कूल खोले, जिनमें इंटरमीडियेट कॉलेज कठूड, मैगाधार, धूतू एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय बुगालीधार प्रमुख हैं.


माना जाता है कि सहस्त्रताल, खतलिंग ग्लेशियर, पंवालीकांठा ट्रेक की पहली यात्रा इन्द्रमणि बडोनी द्वारा ही की गयी. 18 अगस्त, 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका निधन हो गया. वाशिंगटन पोस्ट ने इन्द्रमणि बडोली को ‘पहाड़ का गांधी’ कहा है.

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