रीठा साहिब गुरुद्वारा जिसे मीठा रीठा साहिब भी कहा जाता है ,
इसे गुरुद्वारे को सिखों द्वारा अत्यधिक पवित्र माना जाता है
उत्तराखण्ड के चंपावत जिले में ड्युरी नामक एक छोटे गांव में स्थित है । इसे गुरुद्वारे को सिखों द्वारा अत्यधिक पवित्र माना जाता है और यह पवित्र स्थान चम्पावत से लगभग 72 कि.मी. की दुरी पर स्थित है । इस गुरुद्वारा का निर्माण 1960 में गुरु साहिबान ने करवाया था और यह ड्युरी गांव के निकट स्थित लोदिया और रतिया नदी के संगम पर स्थित है । गुरूद्वारा रीठा साहिब उत्तराखण्ड राज्य के समुद्री तल से 7000 फुट की ऊच्चाई पर स्थित है | इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने इस जगह का दौरा किया था और ऐसी मान्यता है कि गुरू नानक जी गोरखपंथी जोगी से धार्मिक और अध्यात्मिक चर्चा के लिए यहां आए थे | यह जगह एक खास तरह के मीठे रीठा फल (कटुआ – साबुन का फल) पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है । इस गुरुद्वारे के निकट ढ़ेरनाथ का मंदिर स्थित है |
बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर इस मंदिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है | शान्ति का केन्द्र होने के साथ-साथ यह गुरूद्वारा सदीयों से आपसी भाईचारक-सांझ का भी प्रतीक है ।
पौराणिक कथा – रीठा साहिब गुरुद्वारा का नाम “रीठा साहिब या रीठा मीठा साहिब गुरुद्वारा” कैसे पड़ा !
श्री रीठा मीठा साहिब गुरुद्वारा सभी सिख लोगों के लिए आकर्षण का स्थान है और वे श्री रीठा मीठा साहिब के इस पवित्र तीर्थ को विशेष श्रद्धांजलि देते हैं । एक इतिहास है कि श्री गुरु नानक जी ने इस जगह का दौरा किया था । इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा है जो कि कुछ इस प्रकार है |

इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि सन् 1501 में श्री गुरु नानक देव अपने शिष्य “बाला” और “मरदाना” के साथ रीठा साहिब आए थे | इस दौरान गुरु नानक देव जी की उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत “गुरु गोरखनाथ” के चेले “ढ़ेरनाथ” के साथ हुई | इस मुलाकत के बाद दोनों सिद्ध प्राप्त गुरु “गुरु नानक” और “ढ़ेरनाथ बाबा” आपस में संवाद कर रहे थे | दोनों गुरुओं के इस संवाद के दौरान मरदाना को भूख लगी और उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा | तभी गुरु नानक देव जी ने पास में खड़े रीठा के पेड़ से फल तोड़ कर खाने को कहा , लेकिन रीठा का फल आम तौर पर स्वाद में कड़वा होता हैं , लेकिन जो रीठा का फल गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना जी को खाने के लिए दिया था वो कड़वा “रीठा फल” गुरु नानक की दिव्य दृष्टि से मीठा हो गया | जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम इस फल के कारण “रीठा साहिब” पड़ गया |

साथ ही रीठा साहिब गुरुद्वारे की यह मान्यता है कि रीठा साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु ढ़ेरनाथ के दर्शन कर अपनी इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते है | आज भी रीठा का फल खाने में मीठा होता है और प्रसाद में वितरित किया जाता है । वर्तमान समय में वृक्ष अभी भी गुरुद्वारा के परिसर में खड़ा है ।
गुरुद्वारा रीठा साहिब के अल्वा आप चम्पावत जिले में नागनाथ मंदिर , बालेश्वर मंदिर , क्रांतेश्वर महादेव मंदिर , पंचेश्वर महादेव मंदिर और आदित्य मंदिर आदि के भी दर्शन कर सकते है
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