गोरखों का सैन्य प्रशासन

गोरखों का सैन्य प्रशासन

गोरखों की सम्पूर्ण शासन व्यवस्था सेना पर आधारित थी। उनके साम्राज्य की स्थापना और विस्तार में सेना की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण रही। गोरखा साम्राज्य का निर्माण गोरखा शहर से हुआ, जिसने नेपाल के अलावा कुमाऊँ, गढ़वाल, और कांगड़ा घाटी तक के क्षेत्र को शामिल किया। गोरखा सेना ने चीन, तिब्बत, और ब्रिटिश साम्राज्य से मुकाबला किया, और गोरखपुर के लगभग 200 गांवों पर विजय प्राप्त की।

गोरखा सेना की संरचना और प्रशिक्षण के बारे में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि गोरखा सेना अत्यधिक शौर्य और बल से लैस थी। गोरखा सैनिकों का युद्ध कौशल मलाऊ, जैठक और अल्मोड़ा की लड़ाइयों में स्पष्ट रूप से देखा गया। 1815-16 में गोरखों और ब्रिटिशों के बीच खंलगा की लड़ाई में गोरखा वीरों की बहादुरी को अंग्रेजों ने भी सराहा था।

गोरखा समाज और उसकी व्यवस्था

गोरखा समाज एक मिश्रित समाज था, जिसमें विभिन्न जातियों और नस्लों का समावेश था। गोरखा समाज का हिन्दू जाति व्यवस्था से कोई सीधा संबंध नहीं था और ये समाज अपने आप में एक विशेष पहचान रखता था। गोरखों की शारीरिक विशेषताएँ हूनों से मिलती थीं, जैसे कि छोटे कद, गोल चेहरा, छोटी और धंसी हुई आँखें, और बिना दाढ़ी-मूछ के चेहरे। गोरखा समाज में राई, मगर, लिंबु, थापा, सुनवार, और खनका जैसे विभिन्न समूह थे।

गोरखाली लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी थे, लेकिन उनका हिन्दू समाज से कोई विशेष संबंध नहीं था। वे देवी-देवताओं, शस्त्रों, ब्राह्मणों और गाय को पूजते थे, लेकिन अन्य हिन्दू समाज से उनका व्यवहार कभी भी बहुत अच्छे नहीं रहे। गोरखा समाज में उच्च और निम्न जाति का भेद था, और खान-पान में कोई परहेज नहीं था।

गोरखा सेना का संगठन और उसके अस्त्र

गोरखा सेना में सैनिकों को प्रतिवर्ष बदला जाता था और उन्हें 'जागचा' और 'ढाकचा' जैसे नामों से पुकारा जाता था। गोरखा सेना का मुख्य अस्त्र 'खुकरी' था, जो एक प्रकार की छोटी तलवार होती थी। इसके अलावा, गोरखा सेना के पास तलवार, छुरी, लमछड़, बंदूक, ढाल, तीर-कमान और छोटी तोपें भी होती थीं। गोरखा सेना के हथियारों की गुणवत्ता और उनके युद्ध कौशल की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में थी।

गोरखा सैनिकों का वेतन युद्धकाल में 8 रुपये और सामान्य समय में 6 रुपये प्रतिमाह था। बाद में ब्रिटिश साम्राज्य ने गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती किया और उन्हें भाड़े के सैनिकों के रूप में 11 से 16 रुपये प्रतिमाह देने का प्रस्ताव दिया।

गोरखा समाज की धार्मिक व्यवस्था और संस्कृति

गोरखा समाज में दशहरा या 'दशाई' सबसे प्रमुख त्योहार था। इस दिन गोरखा लोग अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते थे और बकरा, भैंस, मुर्गा आदि की बलि देते थे। इसके अलावा, गोरखाली लोग शराब का भी विशेष उपयोग करते थे। गोरखा समाज में धर्म के प्रति रूचि थी, लेकिन वे भारतीय हिन्दू समाज से अलग रहते हुए अपने धार्मिक कृत्य करते थे।

गोरखों का योगदान उत्तराखण्ड के मंदिरों में

गोरखों ने उत्तराखण्ड के कई प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्वार किया। जैसे कि रघुनाथ मंदिर (देवप्रयाग), कसंमर्दिनी मंदिर (श्रीनगर गढ़वाल), और बालेश्वर मंदिर (चंपावत)। उन्होंने तीर्थयात्रियों के लिए 'सदावर्त' की व्यवस्था की, जिससे यात्रियों को भोजन और सहायता मिल सके।

निष्कर्ष

गोरखा साम्राज्य और उनकी सेना की शौर्य गाथाएँ आज भी इतिहास में जीवित हैं। गोरखा समाज की विशेषताएँ, उनके युद्ध कौशल, और उनके धार्मिक कृत्य उनकी समृद्ध और अद्वितीय संस्कृति का प्रतीक हैं। गोरखों का इतिहास और उनकी शौर्य गाथाएँ आज भी उनकी महानता को दर्शाती हैं।

Frequently Asked Questions (FQCs)

1. गोरखा सेना के गठन और प्रशिक्षण के बारे में क्या जानकारी मिलती है?

गोरखा सेना के गठन और प्रशिक्षण के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती, लेकिन यह माना जाता है कि गोरखे अपनी नस्लीय विशेषताओं, जैसे कि शौर्य और बल, के कारण अत्यधिक ताकतवर थे। इसके अलावा, उनका सामाजिक और भौगोलिक परिवेश भी उनकी सैन्य ताकत में योगदान करता था।

2. गोरखा सेना के वेतन और भुगतान प्रणाली कैसी थी?

गोरखा सैनिकों को उनका वेतन निर्धारित गाँव की मालगुजारी से दिया जाता था। इस व्यवस्था को 'ठाकुरिया' कहा जाता था। सैनिकों के वेतन का भुगतान उनके स्थान की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता था।

3. गोरखा सेना के मुख्य अस्त्र क्या थे?

गोरखा सेना का मुख्य अस्त्र 'खुकरी' था, जो एक प्रकार की छुरी होती है। इसके अलावा, तलवार, छुरी, लमछड़, बंदूक, ढाल और तीर-कमान का भी उपयोग किया जाता था। गोरखा सेना के पास छोटी-छोटी तोपें भी होती थीं।

4. गोरखा समाज की सामाजिक व्यवस्था कैसी थी?

गोरखा समाज एक मिश्रित समाज था और यह हिन्दू जाति व्यवस्था से संबंधित नहीं था। गोरखे अपनी अलग जाति और नस्ल के थे, जिसमें राई, मगर, गुरूड़, लिंबु, सुनवार, पुन, सर्की, थापा और खनका आदि जातियाँ शामिल थीं। गोरखों का शारीरिक गठन आमतौर पर छोटा, गोल चेहरा और छोटी, धंसी हुई आँखें होती थीं।

5. गोरखा सैनिकों और हिन्दू समाज के बीच संबंध कैसे थे?

गोरखा सैनिकों और हिन्दू समाज के बीच सामाजिक दूरी थी। वे हिन्दू ब्राह्मणों और राजपूतों से अलग थे और उनके साथ खानपान और सामाजिक संबंध नहीं थे। 1857 के विद्रोह के समय, जब हिन्दू सैनिकों ने सुअर और गाय के चर्बी वाले कारतूसों का विरोध किया, गोरखों ने इन्हें स्वीकार किया।

6. गोरखा सेना की प्रमुख लड़ाईयों में से कौन सी प्रमुख थीं?

गोरखा सेना ने कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया, जिनमें मलाऊ, जैठक और अल्मोड़ा की लड़ाईयाँ शामिल हैं। 1815-16 में खंलगा की लड़ाई में गोरखों को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनकी वीरता को अंग्रेजों द्वारा सम्मानित किया गया था। खंलगा स्मृति स्तंभ, जो देहरादून में स्थित है, गोरखा वीरता की गवाही देता है।

7. गोरखा समाज के धार्मिक विश्वास क्या थे?

गोरखा समाज बौद्ध और हिन्दू धर्म दोनों का पालन करता था। उनका प्रिय त्योहार 'दशाई' था, जिसमें वे अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते थे और बकरों, भैंसों, मुर्गों की बलि देते थे। गोरखा समाज में कुछ हिन्दू धार्मिक कृत्य होते थे, लेकिन उनकी हिन्दू समाज से निकटता कभी पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाई।

8. गोरखा समाज में खान-पान की व्यवस्था कैसी थी?

गोरखा समाज में खानपान में कोई विशेष परहेज नहीं था। वे सुअर का मांस, बकरों और मुर्गों की बलि देना पसंद करते थे। वे विशेष रूप से शराब (जाण या चकती) का सेवन करते थे और इस बारे में हिन्दू समाज से भिन्न थे। उनका खानपान और सामाजिक व्यवहार हिन्दू समाज से अलग था, जिसके कारण उनके साथ सामाजिक दूरी बनी रही।

9. गोरखा सेना का ब्रिटिश सेना से क्या संबंध था?

गोरखा सेना ने ब्रिटिश सेना से कई युद्धों में भाग लिया और उनका सैन्य संगठन धीरे-धीरे ब्रिटिश सेना की प्रणाली को अपनाने लगा। गोरखा सैनिकों ने ब्रिटिश सैन्य पोशाक को भी अपनाया और सेना के पदों जैसे कर्नल, मेजर, कैप्टन आदि का प्रयोग किया। बाद में, गोरखा सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भाड़े के सैनिक के रूप में नियुक्त किया गया।

10. गोरखा सेना के लिए 'खुकरी' का क्या महत्व था?

'खुकरी' गोरखा सेना का प्रमुख अस्त्र था। इसे एक प्रकार की छोटी छुरी माना जाता है, जिसकी लंबाई एक फुट से कम होती थी। यह गोरखा सैनिकों द्वारा अपने कमरपट्टी से बांध कर रखा जाता था और उनका प्रतीक बन चुका था। गढ़ी नगर, जो वर्तमान नेपाल में स्थित है, इस अस्त्र का निर्माण केंद्र था।

टिप्पणियाँ