ज्ञानचंद का गद्दी पर बैठते ही संघर्षों की शुरुआत
राजा ज्ञानचंद का शासन गढ़वाल और डोटी राज्य के बीच संघर्षों से भरा रहा। 1698 ई० में गद्दी पर बैठने के बाद उनका पहला महत्वपूर्ण कदम ताम्रपत्र जारी करना था, जो उस समय के राजनीतिक घटनाक्रम का हिस्सा था। उनके शासन के पहले वर्ष में ही पिंडर घाटी पर हमला करके उन्होंने थराली तक के उपजाऊ क्षेत्रों को रौंद डाला। उनका यह आक्रमण केवल सैन्य विजय नहीं था, बल्कि वह गढ़वाल और डोटी के समृद्ध क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे।
1699 में बधानगढ़ी का आक्रमण
1700 ई० में ज्ञानचंद का अगला कदम था बधानगढ़ी पर आक्रमण करना। इस आक्रमण में वह नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा लूटकर अपने साथ ले गए और इसे अल्मोडा स्थित नंदादेवी मन्दिर में पुनः स्थापित करवाया। यह घटना उनके साम्राज्य विस्तार और धार्मिक महत्व दोनों को दर्शाती है, क्योंकि नंदादेवी मन्दिर उस समय के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक था।
1700 ई० का अभियान
1700 ई० में ज्ञानचंद ने रामगंगा नदी पार किया और मल्ला सलाण स्थित साबलीगढ़, खाटलीगढ़, और सैंजधार ग्राम तक अपने अभियान को विस्तृत किया। यह क्षेत्र तीलु रौतेली की मृत्यु के बाद गढ़वाल राज्य का हिस्सा बन चुका था। ज्ञानचंद के आक्रमण ने इन क्षेत्रों में एक बार फिर उथल-पुथल मचाई। इसके बाद, गढ़नरेश फतेहशाह ने 1701 में चंद राज्य के पाली परगने के गिवाड और चौकोट क्षेत्रों को लगभग वीरान कर दिया।
डोटी पर आक्रमण
1704 ई० में ज्ञानचंद ने अपने पिता की हार का प्रतिशोध लेने के लिए डोटी राज्य पर आक्रमण किया। यह संघर्ष कुमाऊँ की सीमा पर स्थित मलेरिया ग्रस्त भाबर क्षेत्र में लड़ा गया। हालांकि, डोटी नरेश तो भागने में सफल हो गया, लेकिन ज्ञानचंद की सेना मलेरिया का शिकार हो गई। इसके कारण, ज्ञानचंद को इस अभियान को बीच में छोड़कर वापस लौटना पड़ा। यह घटना उनके सैन्य अभियानों के जटिलताओं और चुनौतियों को दर्शाती है।
धार्मिक दृष्टिकोण
ज्ञानचंद केवल एक सक्षम शासक ही नहीं, बल्कि एक धार्मिक प्रवृत्ति का राजा भी था। डोटी के अभियान के दौरान, उन्होंने अपने पिता उद्योतचंद के साथ मिलकर सोर और सीरा क्षेत्र में कई मन्दिरों का निर्माण कराया। इन मन्दिरों को 'देवल' अथवा 'द्यौल' कहा जाता था। चोपता, नकुलेश्वर, कासनी मर्सोली जैसे महत्वपूर्ण देवस्थल चंद शैली में निर्मित हैं, जो ज्ञानचंद और उनके पिता की धार्मिक सोच और कला के प्रति समर्पण को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
ज्ञानचंद का शासन एक साहसी और संघर्षपूर्ण यात्रा का प्रतीक था। उन्होंने न केवल सैन्य दृष्टिकोण से अपने साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा किए गए आक्रमण और निर्माण कार्य आज भी गढ़वाल और कुमाऊं के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जीवन संघर्षों, साहस, और धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक बन गया है।
FQCs (Frequently Asked Questions) तैयार किए गए हैं:
1. ज्ञानचंद कौन थे और उनका शासन किस प्रकार था?
- उत्तर: ज्ञानचंद गढ़वाल और डोटी राज्य के बीच संघर्षों के प्रसिद्ध शासक थे। उनका शासन साहसिक सैन्य अभियानों और धार्मिक कार्यों से भरा हुआ था। उन्होंने कई आक्रमण किए और साम्राज्य का विस्तार किया। साथ ही, उन्होंने कई मन्दिरों का निर्माण भी किया, जिससे उनकी धार्मिक प्रवृत्ति भी स्पष्ट होती है।
2. ज्ञानचंद का पहला आक्रमण कहां हुआ था?
- उत्तर: ज्ञानचंद का पहला आक्रमण पिंडर घाटी पर हुआ था, जहाँ उन्होंने थराली तक के उपजाऊ क्षेत्रों को रौंद डाला था।
3. 1699 ई० में ज्ञानचंद ने क्या किया था?
- उत्तर: 1699 ई० में ज्ञानचंद ने बधानगढ़ी पर आक्रमण किया, जहाँ से उन्होंने नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा लूटी और उसे अल्मोडा स्थित नंदादेवी मन्दिर में पुनः स्थापित करवाया।
4. 1700 ई० में ज्ञानचंद का अगला अभियान कहां हुआ था?
- उत्तर: 1700 ई० में ज्ञानचंद ने रामगंगा नदी पार करके मल्ला सलाण स्थित साबलीगढ़, खाटलीगढ़ और सैंजधार ग्राम तक अपना अभियान बढ़ाया। यह क्षेत्र पहले गढ़राज्य का हिस्सा था, लेकिन तीलु रौतेली की मृत्यु के बाद यह पुनः गढ़वाल राज्य के तहत आ गया।
5. 1701 में गढ़नरेश फतेहशाह ने क्या किया था?
- उत्तर: 1701 में गढ़नरेश फतेहशाह ने ज्ञानचंद के आक्रमण के प्रतिउत्तर में चंद राज्य के पाली परगने के गिवाड और चौकोट क्षेत्रों को वीरान कर दिया।
6. ज्ञानचंद ने डोटी पर आक्रमण क्यों किया था?
- उत्तर: ज्ञानचंद ने अपने पिता की हार का प्रतिशोध लेने के लिए 1704 ई० में डोटी पर आक्रमण किया था, लेकिन मलेरिया के कारण उनकी सेना को नुकसान उठाना पड़ा, और उन्हें वापस लौटना पड़ा।
7. ज्ञानचंद का धार्मिक दृष्टिकोण क्या था?
- उत्तर: ज्ञानचंद धार्मिक प्रवृत्ति के राजा थे। उन्होंने अपने अभियान के दौरान कई मन्दिरों का निर्माण करवाया, जैसे सोर और सीरा क्षेत्र के मन्दिर, जिन्हें 'देवल' अथवा 'द्यौल' कहा जाता था।
8. ज्ञानचंद ने कौन से प्रमुख मन्दिरों का निर्माण किया?
- उत्तर: ज्ञानचंद ने चोपता, नकुलेश्वर, कासनी मर्सोली जैसे प्रमुख देवस्थल चंद शैली में निर्मित किए। ये मन्दिर उनके धार्मिक योगदान को दर्शाते हैं।
9. ज्ञानचंद का सबसे महत्वपूर्ण सैन्य अभियान कौन सा था?
- उत्तर: ज्ञानचंद का सबसे महत्वपूर्ण सैन्य अभियान बधानगढ़ी पर आक्रमण था, जिसमें उन्होंने नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा लूटी और उसे अल्मोडा स्थित नंदादेवी मन्दिर में पुनः स्थापित किया।
10. ज्ञानचंद के संघर्षों का क्या असर पड़ा?
- उत्तर: ज्ञानचंद के संघर्षों ने गढ़वाल और डोटी राज्य के बीच की राजनीति को प्रभावित किया। उनके आक्रमणों ने इन क्षेत्रों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न की, जबकि उनके धार्मिक कार्यों ने स्थानीय संस्कृति और धार्मिक जीवन को प्रभावित किया।
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