उत्तराखण्ड का राज्य प्राप्ति हेतु संघर्ष आन्दोलन The struggle for the attainment of the kingdom of Uttarakhand
उत्तराखंड राज्य प्राप्ति हेतु संघर्ष आंदोलन
The Struggle for the Attainment of Uttarakhand State
परिचय:
उत्तराखंड राज्य का गठन एक लंबे संघर्ष और जनांदोलन का परिणाम है। इस क्षेत्र के लोगों ने अपने अधिकार, संस्कृति और पहचान के लिए दशकों तक संघर्ष किया। यह आंदोलन न केवल एक अलग राज्य की मांग का प्रतीक है, बल्कि लोगों की राजनीतिक और सामाजिक चेतना का भी परिचायक है।
उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन के मुख्य पड़ाव:
1. प्रारंभिक चेतना (1938-1955)
- 1938: पं. जवाहरलाल नेहरू ने श्रीनगर (गढ़वाल) के कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र की स्वायत्तता की आवश्यकता पर जोर दिया।
- 1938: श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की, जो बाद में हिमालय सेवा संघ बना।
- 1946: हल्द्वानी सम्मेलन में बद्रीदत्त पाण्डे और अनसूया प्रसाद बहुगुणा ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा देने की मांग उठाई।
2. आंदोलन की जड़ें मजबूत होना (1950-1979)
- 1950: हिमाचल और उत्तराखंड के लिए पर्वतीय जन विकास समिति का गठन हुआ।
- 1952: मार्क्सवादी नेता पी.सी. जोशी ने पर्वतीय राज्य की मांग को आगे बढ़ाया।
- 1954: इन्द्र सिंह नयाल ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए विशेष विकास योजना बनाने का प्रस्ताव रखा।
- 1955: फजल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र के पुनर्गठन की सिफारिश की।
3. क्रांति की शुरुआत (1979-1993)
- 1979: उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना हुई।
- 1988: शोबन सिंह जीना ने उत्तरांचल उत्थान परिषद की स्थापना की।
- 1991: भाजपा सरकार ने केंद्र को उत्तरांचल राज्य गठन का प्रस्ताव भेजा।
- 1993: मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 'कौशिक समिति' का गठन किया।
4. निर्णायक संघर्ष (1994-2000)
- 1 सितंबर 1994: खटीमा में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी, जिसमें 25 लोग शहीद हुए।
- 2 सितंबर 1994: मसूरी में गोलीकांड, जिसमें 8 लोगों की मौत हुई।
- 2 अक्टूबर 1994: रामपुर तिराहा (मुजफ्फरनगर) में प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी, 8 लोगों की जान गई।
- 3 अक्टूबर 1994: देहरादून में भी प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी हुई।
उत्तराखंड राज्य का गठन:
वर्षों के संघर्ष और आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को भारत के 27वें राज्य के रूप में मान्यता मिली। यह राज्य उत्तर प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आया और अपनी सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक विशिष्टता के कारण एक ऐतिहासिक उपलब्धि बन गया।
निष्कर्ष:
उत्तराखंड राज्य का गठन संघर्ष, बलिदान और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। इस आंदोलन में जिन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें एकता, साहस और संघर्ष की प्रेरणा देता है।
FAQs: उत्तराखंड राज्य प्राप्ति हेतु संघर्ष आंदोलन
Q1: उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन कब शुरू हुआ?
Ans: आंदोलन की शुरुआत 1938 में पं. जवाहरलाल नेहरू के श्रीनगर (गढ़वाल) सम्मेलन से मानी जाती है, जब पर्वतीय क्षेत्र की स्वायत्तता की मांग उठी।
Q2: उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना कब हुई?
Ans: उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) की स्थापना 1979 में हुई, जिसने अलग राज्य की मांग को राजनीतिक मंच प्रदान किया।
Q3: खटीमा गोलीकांड कब हुआ और क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans: खटीमा गोलीकांड 1 सितंबर 1994 को हुआ, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में 25 आंदोलनकारी शहीद हुए। यह उत्तराखंड राज्य आंदोलन का निर्णायक मोड़ था।
Q4: उत्तराखंड राज्य कब और कैसे बना?
Ans: उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ, जब इसे उत्तर प्रदेश से अलग कर भारत का 27वां राज्य घोषित किया गया।
Q5: उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन में मुख्य घटनाएं कौन-कौन सी हैं?
Ans:
- 1938: पं. नेहरू का श्रीनगर सम्मेलन।
- 1955: फजल अली आयोग की सिफारिश।
- 1979: उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना।
- 1994: खटीमा, मसूरी, और रामपुर तिराहा गोलीकांड।
- 2000: राज्य का औपचारिक गठन।
Q6: ‘कौशिक समिति’ का गठन क्यों हुआ?
Ans: 1993 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अलग राज्य की मांग की जांच के लिए ‘कौशिक समिति’ गठित की।
Q7: रामपुर तिराहा कांड कब और क्यों हुआ?
Ans: रामपुर तिराहा कांड 2 अक्टूबर 1994 को हुआ, जब पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिसमें 8 लोग मारे गए।
Q8: उत्तराखंड आंदोलन में किस प्रमुख संगठन ने भाग लिया?
Ans: उत्तराखंड क्रांति दल (UKD), पर्वतीय जन विकास समिति, हिमालय सेवा संघ और कई सामाजिक संगठन आंदोलन में सक्रिय थे।
Q9: उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन का क्या महत्व है?
Ans: यह आंदोलन संघर्ष, बलिदान और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने की मिसाल है, जिसने पर्वतीय क्षेत्र को अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान दिलाई।
Q10: उत्तराखंड राज्य आंदोलन का सबसे कठिन दौर कौन-सा था?
Ans: 1994 का दौर सबसे कठिन था, जिसमें खटीमा, मसूरी, और रामपुर तिराहा जैसे कई भीषण गोलीकांड हुए, जिनमें कई आंदोलनकारी शहीद हुए।
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