तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर और 1000 वर्ष पुराना

तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर और 1000 वर्ष पुराना 

Tungnath Temple is the highest and 1000 years old temple of Lord Shiva
तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर 1000 वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोपता से ३ किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि पार्वती माता ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहां ब्याह से पहले तपस्या की थी ।यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे यात्रा बढ़ती जाती है। रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोडकर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिए चालक को गाड़ी चलाते हुए बहुत सावधानी बरतनी होती है। मार्ग अत्यंत लुभावना और सुंदर है। आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दर्शन होने लगते हैं।
तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर और 1000 वर्ष पुराना

पंचकेदार (पाँच केदार) हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है। ये मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं। इन मन्दिरों से जुड़ी कुछ किंवदन्तियाँ हैं जिनके अनुसार इन मन्दिरों का निर्माण पाण्डवों ने किया था।

 केदारनाथ 

केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3583 मीटर की ऊँचाई पर है। गंगोत्री यात्रा के बाद केदारनाथ यात्रा का विधान है जो गंगोत्री से लगभग 343 किलोमीटर दूरी पर जनपद रुद्रप्रयाग में स्थित है यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है

तुंगनाथ 

तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊँचाई पर है।

रुद्रनाथ 

रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर है।

मध्यमहेश्वर 

मध्यमहेश्वर मंदिर समुद्र तल से 3490 मीटर की ऊँचाई पर है।

कल्पेश्वर 

कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊँचाई पर है
मई से लेकर नवंबर तक यहां की यात्रा थोड़ी सरल है। यात्रा के लिए सप्ताह भर का समय पर्याप्त है। गर्म कपडे साथ में रहने चाहिए क्योंकि यहाँ पर वर्षभर ठंड रहती है।

उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहाँ टिम्बर रेखा (यानी पेडों की पंक्तियाँ) समाप्त हो जाती हैं, वहाँ से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं। आमतौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैम्पसाइट का। गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ़ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फ़ानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर इस प्रकार के बुग्याल मिल जाएंगे। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आप में पर्यटकों का आकर्षण बन चुके हैं। जब बर्फ़ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत और घाटियां भान्ति-भान्ति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुँचते हैं।

इनकी सुन्दरता यही है कि हर मौसम में इन पर नया रंग दिखता है। बरसात के बाद इन ढ़लुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे फूल

गढ़वाल की घाटियों में कई छोटे-बड़े बुग्याल पाये जाते हैं, लेकिन लोगों के बीच जो सबसे अधिक प्रसिद्द हैं उनमें बेदनी बुग्याल, पवालीकाण्ठा, चोपता, औली, गुरसों, बंशीनारायण और हर की दून प्रमुख हैं। इन बुग्यालों में रतनजोत, कलंक, वज्रदन्ती, अतीष, हत्थाजडी जैसी कई बहुमूल्य औषधि युक्त जडी-बू्टियाँ भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड़, हिरण, मोनाल, कस्तूरी मृग और धोरड जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं। पंचकेदार यानि केदारनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ जाने के रास्ते पर कई बुग्याल पडते हैं।

प्रसिद्ध बेदिनी बुग्याल रुपकुण्ड जाने के रास्ते पर पडता है। 3354 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस बुग्याल तक पहुँचने के लिए के लिए आपको ऋषिकेश से कर्णप्रयाग, ग्वालदम, मुन्दोली होते हुए वाँण पहुंचना होता है। वाँण से घने जंगलों के बीच गुजरते हुए लगभग 10 किलोमीटर की चढा़ई के बाद आप बेदनी के सौंदर्य का आंनद ले सकते हैं। इस बुग्याल के बीचों-बीच फैली झील यहां के सौंदर्य में चार चांद लगी देती है।
गढ़वाल का स्विट्जरलैंड कहा जाने वाला चोपता बुग्याल 2900 मीटर की ऊंचाई पर गोपेश्वर-ऊखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। चोपता से हिमालय की चोटियों के समीपता से दर्शन किए जा सकते हैं।

चोपता से ही आठ किलोमीटर की दूरी पर दुगलबिठ्ठा नामक बुग्याल है। यहाँ कोई भी पर्यटक सुगमता से पहुँच सकता है।
चमोली जिले के जोशीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर 2600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है औली बुग्याल। साहसिक खेल स्कीइंग का ये एक बड़ा केन्द्र है। सर्दियों में यहाँ के ढ़लानों पर स्कीइंग चलती हैं और गर्मियों में यहाँ खिले विभिन्न प्रकार के फूल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होते हैं।

औली से ही 15 किलोमीटर की दूरी पर एक और आकर्षक बुग्याल है क्वारी। यह भी अत्यंत दर्शनीय बुग्याल है।
चमोली और बागेश्वर के सीमा से लगा बगजी बुग्याल भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। समुद्रतल से 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल लगभग चार किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहां से हिमालय की सतोपंथ, चौखंभा, नंदादेवी और त्रिशूली जैसी चोटी के समीपता से दर्शन होते हैं।

टिहरी जिले में स्थित पवालीकांठा बुग्याल भी ट्रेकिंग के शौकीनों के बीच जाना जाता है। टिहरी से घनसाली और घुत्तू होते इस बुग्याल तक पहुँचा जा सकता है। 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल संभवतयः गढ़वाल का सबसे बडा़ बुग्याल है। यहाँ से केदारनाथ के लिए भी रास्ता जाता है।
कुछ ही दूरी पर मट्या बुग्याल है जो स्कीइंग के लिए बहुत उपयुक्त है। यहां पाई जाने वाली दुलर्भ प्रजाति की वनस्पतियां वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बनी रहती हैं।
उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर भटवाडी से रैथल या बारसू गाँव होते हुए आता है दयारा बुग्याल। 10400 फीट की ऊँचाईं पर स्थित यह बुग्याल भी धरती पर स्वर्ग की सैर करने जैसा ही है। ऐसे न जाने गढवाल में कितने ही बुग्याल हैं जिनके बारे में लोगों को अभी तक पता नहीं है। इनकी समूची सुंदरता को केवल वहाँ जाकर महसूस किया जा सकता है। हालाँकि हजारों फीट की ऊँचाई पर स्थित इन स्थानों तक पहुँचना हर किसी के लिए संभव नहीं है।

रुद्रप्रयाग में मौजूद चोपता बुग्याल, मोठ बुग्याल कुछ ऐसे बुग्याल हैं जिससे लोग अभी भी अंजान हैं।

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