108 सिद्धपीठों में पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखण्ड राज्य
काली नदी के दांये किनारे पर स्थित
Poornagiri temple in 108 Siddhapeeths located on the right bank of Kali river in Uttarakhand state |
पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना :-
पूर्णागिरी मंदिर की यह मान्यता है कि जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे | तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग के टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरी |
कथा के अनुसार जहा जहा देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए | माता सती का “नाभि” अंग चम्पावत जिले के “पूर्णा” पर्वत पर गिरने से माँ “पूर्णागिरी मंदिर” की स्थापना हुई |
तब से देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि , कालिका गिरि , हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ |
पौराणिक कथा पूर्णागिरी मंदिर :-
पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया । सन् 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से पहुंचे श्रीचन्द्र तिवारी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहा मूर्ति स्थापित कर इसे संस्थागत रूप दिया।
देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। आसपास जंगल और बीच में पर्वत पर विराजमान हैं ” भगवती दुर्गा “ । इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है । इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं | चैत्र मास की नवरात्र में यहां मां के दर्शन का विशेष महत्व बढ जाता है
#टनकपुर शहर से पूर्णागिरी मंदिर के आधार तल की दूरी 21 किलोमीटर है। मंदिर के आधार तल से श्रद्धालुओं को तीन किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। सिर्फ पैदल चलने में सक्षम लोग ही मंदिर तक पहुंच सकते हैं। पार्किंग से लेकर अगले दो किलोमीटर तक मंदिर के पैदल यात्रा मार्ग में दोनों तरफ दुकानें, खाने-पीने के रेस्टोरेंट और रहने के लिए छोटी-छोटी धर्मशालाएं बनी हैं।
पदयात्रा की शुरुआत करते ही सबसे पहले भैरव मंदिर आता है। काफी श्रद्धालु भैरव मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद आगे की यात्रा शुरू करते हैं। अच्छा होगा कि आप छाता, टॉर्च, रेनकोट आदि लेकर माता के दरबार तक पदयात्रा करें। तकरीबन एक किलोमीटर चलने के बाद एक मंदिर आता है, उसका नाम है झूठे का मंदिर। कहा जाता है कि एक श्रद्धालु ने माता का मंदिर यहां निर्मित कराया, पर उसने सोने की जगह नकली सुनहले रंगों का इस्तेमाल किया। लोग इस मंदिर के प्रति आस्था रखते हैं, पर यह झूठे के मंदिर के नाम से ही जाना जाता है।
#तकरीबन दो किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मां काली का मंदिर आता है। वापसी में काफी श्रद्धालु इस मंदिर में भी आस्था से पूजन करते हैं। तकरीबन तीन किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलते हुए आप मां पूर्णागिरी के दरबार में पहुंच जाते हैं। होली के बाद आने वाली नवरात्रि से माता पूर्णागिरी का मेला शुरू हो जाता है।
यह मेला तीन महीने तक चलता है। यानी अप्रैल, मई और जून महीने में। तब माता पूर्णागिरी के दरबार में श्रद्धालओं की भीड़ उमड़ती है।
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