मेफिसलाइट, 1850, समय विनोद,मंसूरी एक्सचेंज,अल्मोड़ा अखबार

मेफिसलाइट, 1850, समय विनोद,मंसूरी एक्सचेंज,अल्मोड़ा अखबार 

मेफिसलाइट, 1850

'मेफिसलाइट' के प्रकाशन व बन्द होने के सम्बन्ध में प्रायः विभिन्न इतिहासकार एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकार इसका प्रकाशन वर्ष सन् 1845 बताते है तो कुछ इसके लगभग एक दशक बाद बताते है। आंग्ल भाषी यह समाचार-पत्र उत्तर भारत का एक प्रमुख तथा अंग्रेज प्रशासन विरोधी क्रांन्तिकारी पत्र था। पेशे से वकील मि० जान लेंग इस पत्र के प्रकाशक व सम्पादक थे।

समय विनोद (1868-78)


उत्तराखण्ड से प्रकाशित होने वाला हिन्दी का यह पहला समाचार पत्र था। इससे पूर्व यहाँ से प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्र आंग्ल भाषी थे। यद्यपि भारत में हिन्दी पत्रकारिता की शुरूआत सन् 1826 में 'उद्न्ड मार्तण्ड' से हो चुकी थी, जो कलकता से प्रकाशित होता था। उत्तराखण्ड में हिन्दी-उर्दू पत्रकारिता सन् 1868 में इसी समाचार-पत्र के साथ प्रारम्भ हुई। सम्भवतः यह पत्र सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र से देशी अथवा हिन्दी भाषा का पहला समाचार पत्र था। लगभग एक दशक तक नियमित प्रकाशित होने वाले 'समय विनोद' ने सन् 1871 में 'अल्मोड़ा अखबार' के प्रकाशित होने तक उत्तराखण्ड की हिन्दी पत्रकारिता पर एकछत्र राज किया। इसके पश्चात् बन्द होने तक यह पत्र, पत्रकारिता की राह में अल्मोड़ा अखबार के सहयात्री की भूमिका बखूबी निभाता रहा।

नैनीताल प्रेस से छपने वाले 'समय विनोद' के संस्थापक व सम्पादक जयदत्त जोशी थे, जो पेशे से वकील थे। यह एक पाक्षिक पत्र था। सन् 1868 में जब इसका प्रकाशन हुआ तब इसके कुल 32 ग्राहक थे, जिनमें लगभग आधे यूरोपीय व आधे भारतीय पाठक थे। इस समाचार पत्र में अंग्रेजीराज की नीतियों की समीक्षा के साथ-साथ सामाजिक मुददों को भी स्थान दिया जाता था।

मंसूरी एक्सचेंज, 1870

1870 में प्रकाशित इस समाचार पत्र के सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं मिलती। इसके विषय में कहा जाता है कि यह पत्र विज्ञापनों तक ही सीमित रहा। अतः अधिक न चल पाने के कारण कुछ ही महीनों में बंद हो गया।

अल्मोड़ा अखबार, (1871-1918)

उन्नीसवीं सदी के 7वें दशक के प्रारम्भ (1879) में पहली बार अल्मोड़ा के कुछ शिक्षित व जागृत व्याक्तियों ने तत्कालिक समाज में व्याप्त राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक समस्याओं के सम्यक् समाधान हेतु पृथक-पृथक प्रयास करने की बजाय एकजुट हो कर कार्य करने के उद्देश्य से एक छोटी सी संस्था की स्थापना की। यद्यपि 'डिबेटिग क्लब' नामक इस संस्था का संरक्षक, चंद राजवंश से सम्बन्धित राजा भीमसिंह को चुना गया। किन्तु इसकी स्थापना व उद्देश्यों के पीछे मूलरूप से बुद्धिबल्ल्भ पंत के विचार व आकांक्षा जुड़ी हुई थी। बुद्धिबल्लभ पंत उस समय के प्रसिद्ध शिक्षाविद्ध थे। इसी वर्ष अल्मोड़ा में तत्कालीन प्रान्तीय लॉट 'सर विलियम क्यूअर' का आना हुआ। जब वे प्रथम बार क्लब में आये तो उन्होंने जनता और प्रशासन से सम्पर्क करने के लिए एक समाचार-पत्र निकालने का सुझाव दिया। जिसे क्लब के सदस्यों द्वारा सहर्ष ही स्वीकार कर लिया गया तथा सन् 1871 में बुद्धि बल्लभ पंत के सम्पादन में 'अल्मोड़ा अखबार' नाम के समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।

अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अधिकांश समय तक यह पत्र अंग्रेजी प्रशासन की ओर ही झुका हुआ नजर आता है। अपने जीवनकाल के प्रारम्भिक तीन दशकों के कुछ अपवादों को छोड़ दे तो इस पत्र द्वारा कोई भी अंग्रेजी विरोधी व सशक्त सम्पादकीय अथवा लेख प्रकाशित नहीं किया गया। बंग-भंग की घटना के पश्चात सही मायनों में यह पत्र आम जनता की ओर उन्मुख हुआ तथा धीरे-धीरे इसकी कमान अंग्रेजो के हाथ से निकलने लगी थी।

सन् 1918 में पत्र के बन्द होने तक इसमें कुलीबेगार, वन सम्बन्धी समस्या तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता सम्बन्धी अनेक लेख प्रकाशित हो चुके थे। 
बुद्धिबल्ल्भ पंत के सम्पादन में प्रकाशित हुए इस समाचार पत्र का जीवन काल लगभग पांच दशक का रहा। उनके पश्चात् सन् 1909 तक क्रमशः मुंशी इम्तियाज अली, जीवानन्द जोशी तथा मुंशी सदानन्द सनवाल द्वारा 'अल्मोड़ा अखबार' का सम्पादन किया गया। सन् 1909 से 1913 तक विष्णु दत्त जोशी इसके सम्पादक रहे तथा इनके पश्चात् सन् 1918 में अल्मोड़ा अखबार के बंद होने तक बद्रीदत्त पांडे द्वारा इसका सम्पादन किया जाता रहा।

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