बालेश्वर मन्दिर चम्पावत नगर उत्तराखंड
बालेश्वर मंदिर परिसर उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों में से एक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देहरादून मण्डल द्वारा इसकी देख-रेख के लिए कर्मचारी नियुक्त किये गये हैं। पुरातत्व विभाग की देख-रेख में बालेश्वर मंदिर परिसर की स्वच्छता एवं प्रसिद्ध बालेश्वर नौले के निर्मल जल को संरक्षित किया गया है।
उपलब्ध ताम्र पत्रों में अंकित विवरणों के अनुसार इसका निर्माण काल सन् 1272 ईसवी माना जाता है। लोकमान्यता है कि महाभारत काल में बाली द्वारा यहां पर असुरों से सुख शान्ति के लिए शिव पूजन किया गया जिस कारण इसे बाली + ईश्वर - बालेश्वर नाम दिया गया। बालेश्वर मन्दिर का निर्माण चन्द शासन काल में माना जाता है। कालांतर में सन् 1420 में राजा ध्यानचन्द ने अपने पिता ज्ञान चन्द के पापों से प्रायश्चित के लिए बालेश्वर मंदिर का जीर्णाेद्वार कराया। मंदिर समूह के निर्माण में बलुवा तथा ग्रेनाइट की तरह के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। मूलतः शिखर शैली पर निर्मित बालेश्वर मंदिर ठोस चिनाई के जगत पर आधारित है। गर्भगृह तथा मंडप की छतों पर कालिया मर्दन अंकित हैं, और बाहरी दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा अन्य देवी-देवताओं का अंकन किया गया है।
उसकी मृत्यु के पश्चात चंद राजाओं ने उसकी स्मृति में एक सुंदर प्रस्तर मूर्ति बनाकर 'बालेश्वर' मंदिर के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थापित की। मूर्ति स्थापना का काल चैदहवीं, पंद्रहवी शताब्दी के मध्य बताया जाता है। चम्पावती देवी की प्रतिमा के हाथ में कटार तथा त्रिशूल है। उसके समीप ही एक सिंह बैठा हुआ है। चम्पावती को अपनी कुलदेवी मानते हुए, साह लागे उसकी पूजा करते थे। नेपाली श्रद्धालु भी इनके दर्शनों के लिए आते हैं। चम्पावती देवी की पूजा, दुर्गापूजा के समान ही की जाती है। जिसमें दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है। भेंट के रूप में घाघरा, पिछौड़ा तथा सुहाग की सामग्री भेंट की जाती है।
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