बॉक्सिंग के भीष्म पितामह कैप्टन हरि सिंह थापा (Bhishma Pitamah of Boxing Captain Hari Singh Thapa)

उत्तराखंड: बॉक्सिंग के भीष्म पितामह कैप्टन हरी सिंह थापा का निधन, खेलों में ही नहीं रणभूमि में भी दिखाया था पराक्रम


उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के नैनीसैनी निवासी देवभूमि उत्तराखंड द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज कैप्टन हरी सिंह थापा का निधन हो गया है। उनके बेटे चंद्र सिंह थापा ने बताया कि कैप्टन थापा पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। रविवार दिन में करीब 12:40 बजे उन्होंने अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार सोमवार को रामेश्वरघाट पर किया जाएगा। कै. थापा ने 1958 में आयोजित तृतीय एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था। रक्षा पदक, संग्राम पदक और सेना मेडल सहित विभिन्न पुरस्कार जीतने वाले कैप्टन थापा को उत्तराखंड सरकार ने 2013 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया था। उनके निधन पर जिले में शोक की लहर है। 

पिथौरागढ़ और देश का नाम रोशन करने वाले कै. हरी सिंह थापा का जन्म 14 अगस्त 1932 को हुआ था। वे 14 अगस्त 1947 को सिग्नल ट्रेनिंग सेंटर की ब्वॉय रेजीमेंट में भर्ती हुए। खेलों की ओर रुझान होने के कारण उन्होंने बॉक्सिंग को अपना मुख्य खेल बना लिया। दिन-रात मेहनत करने के बाद हरी सिंह अपनी बटालियन के चैंपियन बन गए। कै. हरी वर्ष 1950 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में व्यक्तिगत चैंपियन रहे। 1954 में राष्ट्रीय मुक्केबाजी में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। 16 अक्तूबर 1957 में रंगून में आयोजित दक्षिण पूर्व एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में थापा ने बर्मा के तिन यू को पहले ही राउंड में धूल चटाकर स्वर्ण पदक जीता था। 

उन्हें 1958 में टोक्यो (जापान) में आयोजित तृतीय एशियाई खेलों में रजत पदक मिला। 1958 में ही ब्रिटिश अंपायर एंड कॉमनवेल्थ गेम्स कार्डिक लंदन में उन्होंने प्रतिभाग किया था। उन्होंने पहले ही मुकाबले में वेल्स के मुक्केबाज ग्लेन वाटर्स को नाकआउट कर दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभ्यास के दौरान उन्हें गंभीर चोट लगने से वह आगे नहीं खेल सके। उन्होंने 1959 में मिडिल वेट की अखिल भारतीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 1961 में उन्हें बॉक्सिंग सर्विसेज टीम का कोच नियुक्त किया गया।  

उनके निधन का समाचार सुनने के बाद पूर्व सांसद महेंद्र सिंह माहरा और पूर्व प्रदेश महामंत्री जगत सिंह खाती सहित तमाम जनप्रतिनिधियों ने नैनीसैनी पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। पिथौरागढ़ की विधायक चंद्रा पंत, विधायक बिशन सिंह चुफाल, धारचूला विधायक हरीश धामी, जिला पंचायत अध्यक्ष दीपिका बोहरा, अंजू लुंठी, महेंद्र सिंह लुंठी, भाजपा जिलाध्यक्ष विरेंद्र वल्दिया, सहकारी बैंक अध्यक्ष मनोज सामंत, जिला खेल अधिकारी संजीव कुमार पौरी सहित तमाम जनप्रतिनिधियों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। 

खेलों में ही नहीं रणभूमि में भी दिखाया था पराक्रम

अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज कैप्टन हरी सिंह थापा ने खेलों में ही नहीं बल्कि रणभूमि में भी पराक्रम दिखाया था। 1971 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। देश के प्रति समर्पण को देखते हुए सेना ने उन्हें विभिन्न सम्मान दिए। जिनमें रक्षा पदक, संग्राम पदक, सेना मेडल, इंडियन इंडिपेंडेंट पदक और नाइन ईयर लौंग सेवा पदक भी शामिल है। 
रेफरी के गलत निर्णय से करना पड़ा था रजत पदक से संतोष
कैप्टन हरी सिंह थापा को 1958 में टोक्यो जापान में आयोजित तृतीय एशियाई खेलों में रेफरी के गलत निर्णय का शिकार होना पड़ा था। रेफरी के गलत निर्णय के कारण उन्हें स्वर्ण पदक के बजाय रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। धरोहर पुस्तक के लेखक राजेश मोहन उप्रेती बताते हैं कि उस प्रतियोगिता के फाइनल में कैप्टन थापा का मुकाबला ताइवान के चाइंग लोपो के साथ हुआ। रेफरी ने अपने विवादास्पद निर्णय में ताइवान के खिलाड़ी को विजयी घोषित कर दिया। वह कहते हैं कि रेफरी के उस निर्णय की तब काफी आलोचनाएं हुई थीं। तत्कालीन भारतीय टीम मैनेजर सत्यनाथन के अनुसार थापा उस मुकाबले में हर तरह से स्वर्ण पदक के हकदार थे। तब समाचार पत्रों ने भी इस निर्णय की कड़ी आलोचना की थी। 

कैप्टन थापा को कहा जाता है बॉक्सिंग का भीष्म पितामह

द्रोणाचार्य पुरस्कार सहित तमाम सम्मान पाने वाले कैप्टन हरी सिंह थापा को पिथौरागढ़ जिले में मुक्केबाजी खेल का जनक और भीष्म पितामह कहा जाता है। श्रेष्ठ मुक्केबाजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले कैप्टन थापा राष्ट्रीय कोच भी रहे। उनके मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेने वाले देश के कई बॉक्सर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमके। उनके शिष्यों में शामिल पदम बहादुर मल ने जकार्ता एशियन खेलों में स्वर्ण पदक के साथ ही सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज का पदक जीता था। हवा सिंह एशियन स्वर्ण पदक विजेता होने के साथ ही द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित हुए। इसके अलावा ओम प्रकाश भारद्वाज, एमके राय, एसके राय, सात बार राष्ट्रीय चैंपियन रहे मूल सिंह, एमएल विश्वकर्मा, धर्मेंद्र प्रकाश भट्ट, भाष्कर भट्ट, राजेंद्र सिंह सहित तमाम ऐसे खिलाड़ी हैं जो कैप्टन थापा के प्रतिभाशाली शिष्यों में शामिल रहे हैं। पिथौरागढ़ के वर्तमान जिला क्रीड़ा अधिकारी संजीव कुमार पौरी भी उनके शिष्यों में शामिल रहे हैं। उनके निधन पर उनके तमाम शिष्यों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। 

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