नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

Nandprayag - Confluence of Nandakini or Alaknanda
नंदप्रयाग एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल एवम् हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध पर्वतीय तीर्थों में से एक है।

नदियों के संगम प्रयाग

पंच प्रयाग तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। नदियों का संगम सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है, उन्हें प्रयाग कहा जाता है और इन्हें प्रमुख तीर्थ मानकर पूजा जाता है। आइए जानते हैं इनके महत्त्व के बारे में।
नंदप्रयाग – नंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के संगम पर नंदप्रयाग स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर नंद महाराज ने भगवान नारायण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया था। यहां पर नंदादेवी का भी बड़ा सुंदर मंदिर है। नंदादेवी का मंदिर,नंद की तपस्थली और नंदाकिनी का संगम आदि योगों से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा। यहां पर भगवान लक्ष्मीनारायण और गोपाल जी के मंदिर भी दर्शनीय हैं। विष्णु प्रयाग-पंच प्रयागों में आखिरी प्रयाग विष्णु प्रयाग है, जो बद्रीनाथ से बिलकुल नजदीक है। यहां पर अलकनंदा और विष्णुगंगा नदी का मिलन होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। इस स्थल पर भी भगवान विष्णु का मंदिर है। जिसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। स्कंदपुराण में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से किया गया है। यहां विष्णु गंगा में 5 और अलकनंदा में 5 कुंडों का वर्णन आया है। इस स्थल पर दाएं-बाएं दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है। दाएं में जय और बाएं में विजय है।
नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

नंदाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है।

नंदप्रयाग पवित्र संगम स्थल, चंडिका मंदिर, गोपाल जी मंदिर एवम् शिव मंदिर आदि दर्शनीय है। धार्मिक पंच प्रयागों में से दूसरा नंदप्रयाग अलकनंदा नदी पर वह जगह है जहां अलकनंदा एवं नंदाकिनी नदियों का मिलन होता है। ऐतिहासिक रूप से शहर का महत्व इस बात में है कि यह बद्रीनाथ मंदिर जाते तीर्थयात्रियों का मुख्य पड़ाव स्थान होता है साथ ही यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल भी है। वर्ष 1803 में आई बाढ़, शहर का सब कुछ बहा ले गयी जिसे एक ऊंची जगह पर पुनर्स्थापित किया गया। नंदप्रयाग का महत्व इस तथ्य से भी है यह स्वाधीनता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन के विरोध का स्थानीय केंद्र रहा था। यहां के सपूत अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का योगदान इसमें तथा कुली बेगार प्रथा की समाप्ति में, सबको हमेशा याद रहेगा।

नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

नंदप्रयाग का इतिहास:-

अलकनंदा एवं नंदाकिनी के संगम पर बसा पंच प्रयागों में से एक नंदप्रयाग का मूल नाम कंदासु था जो वास्तव में अब भी राजस्व रिकार्ड में यही है। यह शहर बद्रीनाथ धाम के पुराने तीर्थयात्रा मार्ग पर स्थित है तथा यह पैदल तीर्थ यात्रियों के ठहरने एवं विश्राम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चट्टी था। यह एक व्यस्त बाजार भी था तथा वाणिज्य के अच्छे अवसर होने के कारण देश के अन्य भागों से आकर लोग यहाँ बस गये। जाड़े के दौरान भोटियां लोग यहां आकर ऊनी कपड़े एवं वस्तुएं, नमक तथा बोरेक्स बेचा करते तथा गर्मियों के लिये गुड़ जैसे आवश्यक सामान खरीद ले जाते। कुमाऊंनी लोग यहाँ व्यापार में परिवहन की सुविधा जुटाने (खच्चरों एवं घोड़ों की आपूर्ति) में शामिल हो गये जो बद्रीनाथ तक सामान पहुंचाने तथा तीर्थयात्रियों की आवश्यकता पूर्ति में जुटकर राजस्थान, महाराष्ट्र तथा गुजरात के लोगों ने अच्छा व्यवसाय किया।


नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

पौराणिक संदर्भ:-

ऐसा कहा जाता है कि स्कंदपुराण में नंदप्रयाग को कण्व आश्रम कहा गया है जहां दुष्यंत एवं शकुंतला की कहानी गढ़ी गयी। स्पष्ट रूप से इसका नाम इसलिये बदल गया क्योंकि यहां नंद बाबा ने वर्षों तक तप किया था। नंदप्रयाग से संबद्ध एक दूसरा रहस्य चंडिका मंदिर से जुड़ा है। कहा जाता है कि देवी की प्रतिमा अलकनंदा नदी में तैर रही थी तथा वर्तमान पुजारी के एक पूर्वज को यह स्वप्न में दिखा। इस बीच कुछ चरवाहों ने मूर्ति को नदी के किनारे एक गुफा में छिपा दिया। वे शाम तक जब घर वापस नहीं आये तो लोगों ने उनकी खोज की तथा उन्हें मूर्ति के बगल में मूर्छितावस्था में पाया। एक दूसरे स्वप्न में पुजारी को श्रीयंत्र को प्रतिमा के साथ रखने का आदेश मिला। रथिन मित्रा के टेम्पल्स ऑफ गढ़वाल एंड अदर लैंडमार्क्स, गढ़वाल मंडल विकास निगम 2004 के अनुसार, कहावतानुसार भगवान कृष्ण के पिता राजा नंद अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में यहां अपना महायज्ञ पूरा करने आये तथा उन्हीं के नाम पर नंदप्रयाग का नाम पड़ा।


नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम

समाज व सभ्यता:-

नंदप्रयाग में एक धर्म-निरपेक्ष एवं भेद-भाव रहित संस्कृति है। विभिन्न क्षेत्रों एवं धर्मों के लोग यहां एक साथ शांतिपूर्वक रहते आये हैं और आज भी रहते हैं। हिंदु और मुसलमानों और भोटिया लोगों के बीच ऐसा बंधन है जो उन्हें एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल कराता है तथा एक मिश्रित संस्कृति को जन्म देता है जो नंदप्रयाग के लिये अद्भुत है। भारत के शेष भागों में मान्यता प्राप्त करने से बहुत पहले से ही संप्रदायों में यहां अंतर्जातीय तथा अंतरक्षेत्रीय विवाह होते रहे हैं। वास्तव में एक गौड़ ब्राह्मण तथा एक मुसलमान महिला से उत्पन्न नंदप्रयाग के मुसलमान नागरिक ने भी संहारण आरती को लिखा जिसका अभी भी बद्रीनाथ मंदिर में पाठ होता है। सामुदायिक जीवन में गीत एवं नृत्य का महत्त्वपूर्ण अंश रहता है जो कृषि, प्रकृति एवं धर्म के चक्रों से गहरे जुड़े हैं। शहरों से हटकर अब जाग्गर का आयोजन गांवों में होने लगा है।

नंदप्रयाग - नंदाकिनी वा अलकनंदा का संगम
 ऐसे अवसरों पर गीत एवं नृत्य द्वारा देवी-देवताओं का आवाहन किया जाता है जिसका समापन तब होता है जब भीड़ के किसी सदस्य के ऊपर देवी-देवता आ जाते हैं। महाभारत की कुछ घटनाओं पर आधारित पांडव नृत्य भी एक आयोजित कला है।

आवागमन
जाने के लिये वर्षभर एक अच्छा स्थान बना रहता है, यद्यपि जून के अंत से सितंबर के बीच बरसात में न जाना ही अच्छा है क्योंकि भू-स्खलन के कारण सड़क अवरूद्ध होने का खतरा रहता है।

हवाई मार्ग
नंदप्रयाग से 218 किलोमीटर दूर निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है। इसके अतरिक्त 27 किलोमीटर दूर पर स्थित गोचर नामक स्थान पर छोटा हवाई अड्डा भी मौजूद है

रेल मार्ग
190 किलोमीटर दूर ऋषिकेश निकटतम रेल स्टेशन है। भविष्य में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन बनने से यह सुविधा अत्यधिक आसान एवं सुलभ हो जाएगी

सड़क मार्ग
नंदप्रयाग नगर के मध्य से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 गुजरता है जिस पर हरिद्बार, ऋषिकेश तथा देहरादून,दिल्ली एवं सभी नगरों के लिए बस एवं टैक्सी सहज उपलब्ध होती हैं। चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के पूरा होने के बाद नंदप्रयाग देश के विभिन्न महानगरों से बहुत आसानी , अल्प समय,और सुगमता से पहुंचा जा सकेगा

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