उत्तराखण्ड की अगस्त क्रांति
आंदोलन की पृष्ठभूमि एक लम्बे समय से तैयार हो रही थी। क्षेत्रीय समस्याओं की अनदेखी और विकास की अव्यवाहारिक नीतियाँ असंतोष के बारूद का ढेर लगा रही थी। इस पर एकदम भिन्न भौगोलिक समाजिक स्थिति के बावजूद ग्राम सभाओं का जनसंख्या के आधार पर परिसीमन और मात्र 3 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या वाले क्षेत्र में 27 प्रतिशत ओ०बी०सी० आरक्षण ने असंतोष के ढेर को सुलगा दिया। यद्यपि हिल कैडर, ग्राम सभाओं के स्वरूप को यथावत् रखने और 27 प्रतिशत ओ०बी०सी आरक्षण के विरूद्ध जुलाई से ही विरोध प्रारम्भ हो गया था। किन्तु 2 अगस्त 1994 ई0 को पौड़ी गढ़वाल प्रेक्षागृह के बाहर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने आमरण अनशन शुरू कर पृथक राज्य निर्माण आंदोलन को ऐसी व्यापकता प्रदान की कि यह उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन के इतिहास की अगस्त क्रान्ति सिद्ध हुई।
उत्तराखण्ड की अगस्त क्रांति |
उत्तराखण्ड की इस अगस्त क्रान्ति के शुभारम्भ पर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के वयोवृद्ध नेता इन्द्रमणि बडोनी, रत्नमणी भट्ट, डा० वासुवानन्द पुरोहित, प्रेमदत्त नौटियाल, पान सिंह रावत, विष्णुदत्त बिंजोला इत्यादि ने तीन मुद्दों को लेकर आमरण अनशन प्रारम्भ किया। इसी दिन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गढवाल मण्डल में आन्दोलन की बागडोर दिवाकर भट्ट और कुमाऊँ मण्डल में पूरन सिंह डंगवाल को सौंपी गया। लगातार बढ़ रहा जनसर्मथन एवं छात्रों का 27 प्रतिशत आरक्षण मुद्दे पर आंदोलन में कूद पड़ने से इसे गति मिली। आन्दोलनकारियों के अनशन को तुड़वाने के सरकारी एवं गैरसरकारी प्रयास भी हुए। अब आन्दोलन को सभी दलो का समर्थन मिल रहा था, इससे उत्साहित होकर उक्रांद ने पौड़ी जनपद में धारा 144 के बावजूद विशाल जनसभा की। 7, अगस्त को प्रशासन ने अनशनकारियों को बलपूर्वक उठाने का प्रयत्न किया। जनता के विरोध के बावजूद बलपूर्वक अनशनकारियों को उठा लिया गया।
रत्नमणि भट्ट और इन्द्रमणि को मेडिकल कालेज, मेरठ एवं शेष को जिला चिकित्सालय में भर्ती कर लिया गया। रात की इस कार्यवाही की खबर पूरे शहर में फैल गयी और भोर की पहली किरण के साथ ही विशाल जन सैलाब सडक पर उतर आया। पुलिस के दमन के विरोध में घर-घर की चोखट लांघ कर महिलाएँ आदोलन में कूद पड़ी, सरकारी कार्यालय, व्यापारिक प्रतिष्ठान बन्द हो गए, वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार आरम्भ कर दिया। 7, अगस्त की प्रशासन की इस कार्यवाही ने हिल कैडर व 27 प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे को सीधे उत्तराखण्ड राज्य की मांग में बदल दिया।
प्रथम पंक्ति के नेताओं को जबरन उठाने के तुरन्त बाद रामसिंह पंवार, केदार सिंह बिष्ट, विशाल डिमरी इत्यादि लोग आमरण अनशन पर बैठ गए। देहरादून में भी उक्रांद की महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष के नेतृत्व में कचहरी में अनिश्चितकालीन धरना प्रारम्भ हो गया। कोटद्वार में भी 11 अगस्त से क्रमिक अनशन प्रारम्भ हुआ। धीरे-धीरे आंदोलन की गति तीव्र हुई। सम्पूर्ण पहाड़ में क्रमिक अनशनों का दौर प्रारम्भ हुआ। उत्तराखण्ड क्रांति दल द्वारा प्रारम्भ किये गए इस आंदोलन को वृहद् आकार और स्वरूप प्रदान करने का श्रेय यहाँ की महिलाओं और छात्रों को जाता है।
कुमाऊँ मण्डल में 15, अगस्त से काशी सिंह ऐरी के नेतृत्व में नैनीताल में आमरण अनशन प्रारम्भ हुआ। दूसरे दिन से ही अनशनकारियों की स्थिति खराब होने से आंदोलन के हिसंक होने की संभावनाए बढ़ी। छात्र नेताओं ने अपील जारी की कि वे लाठी-डण्डों से लैस होकर आंदोलन में शिरकत करे ताकि किसी भी पुलिस कार्यवाही का प्रतिउत्तर दिया जा सके। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्र नेता आंदोलन के समर्थन में आ चुके थे। सहित्यकार प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह बमरोही ने तो दुख व्यक्त करते हए कहा कि उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति को बचाने के लिए अब यह महसूस होने लगा है कि पृथक राज्य हमें क्यों न मिले ?" सम्पूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में आंदोलन की व्यापकता को देखते हुए राजधानी दिल्ली में भी गतिविधियां तेज हुई। युवा वर्ग ने केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली में जनसम्पर्क आरम्भ किया। उक्रांद की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष खिमानन्द खुलवे के नेतृत्व में जन्तर-मन्तर पर धरना शुरू हुआ। मुलायम सिंह के बयान के पश्चात् छात्रों ने बड़े पैमाने पर तोड़-फोड़ की, यातायात व्यवस्था चरमरा गई। प्रशासन ने स्थिति देखते हुए पी०ए०सी० बुला ली। विधानसभा के मानसून सत्र में तरूण पंत एवं मोहन पाठक ने दर्शक दीर्घा से उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन एवं ओ०बी०सी० आरक्षण विरोधी नारे लगाए और पर्चे फेंके। इसी क्रम में पहाड़ के सभी नौ विधायकों ने आरक्षण विरोधी आंदोलन के समर्थन में उनकी माँग न माने जाने पर विधानसभा की सदस्यता त्यागने की धमकी दी।
उत्तराखण्ड की तत्कालीन स्थिति की गूंज जब लखनऊ और दिल्ली में गूंजी तो आरक्षण विरोधी और पृथक् राज्य के सर्मथक सांसद गोलबन्द होने लगे। इस बीच दिल्ली में उक्राँद के दिल्ली प्रदेश महासचिव पी०सी० भट्ट की अनशन के दौरान ही मृत्यु ने प्रशासन की नीद उड़ा दी। इस बीच 26 अगस्त को इन्द्रमणि बडोनी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया। 27 अगस्त को ऐरी ने पी०सी० भट्ट का अनशन समाप्त कराया किन्तु उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। बहरहाल अनशनकारियों का अनशन तो समाप्त हुआ किन्तु यह पहाड़ की जनता में क्रान्ति की मशाल जला चूका था। ऐसा जुनून तो इस क्षेत्र में स्वतन्त्रता आंदोलन के दौर में भी देखने को नहीं मिला।
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