गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: संस्कार गीत-मुण्डन

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 गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: संस्कार गीत-मुण्डन 

मुण्डन: चूड़ाकर्म गढ़वाल में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। गणेश पूजा के बाद नवग्रहों का पूजन किया जता है। पूजन के समय पुत्र, मां की गोद में रहता है। नाई जब लड़के का मुण्डन करने के लिए तैयार होता है तो मंगल गीत गाने वाली सुहागिनें मां की ओर से नाई को कहती हैं कि शिशु को पीड़ा न हो, इसका ध्यान रखना—
नाई रे नाई तू मेरो धर्म को भाई
मेरा लाडा पीड़ा न लाई पीड़ा न लाई,
त्वै द्यूलो नाई मैं कानो कुण्डल शाल दुशाला,
त्वै द्यूलो नाई मैं जारिद कपीड़े रेशमी पगड़ी
मेरा लाडा तू पीड़ा न लाई नाई रे नाई।

हे नाई भाई! तुम मेरे धर्म के भाई हो। मेरे लाडले (पुत्र) को पीड़ा न हो, इसका ध्यान रखना। यदि तुम मुण्डन करते समय उसे पीड़ा न पहुंचाओगे तो तुम्हें सोने के कुण्डल, शाल—दुशाला, जरी के कपड़े और रेशमी पगड़ी भेंट में दूंगी। मेरी नाई भाई! मेरे लाडले को पीड़ा न पहुंचाना।

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