शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं सकता कोई सच्चा भगत ही हिला सकता हैं

उत्तराखंड स्पेशल: एक ऐसा मंदिर जहां त्रिशूल को छूने पर होता है कंपन्न, क्या है इसका रहस्य? 
उत्तराखंड स्पेशल: एक ऐसा मंदिर जहां त्रिशूल को छूने पर होता है कंपन्न, क्या है इसका रहस्य?

 उत्तराखंड देवों की भूमि है। यहां दूसरे प्रदेशों की तुलना में कहीं ज्यादा मंदिर है और हर मंदिर की अपनी खासियत है। कुछ के अपने रहस्य भी। इसी तरह का एक मंदिर चमोली जिले में है। इसे गोपेश्वर मंदिर कहते हैं। इसे गोस्थल के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि पश्वीश्वर महादेव देवी पार्वती के साथ मंदिर में वास करते हैं। बद्रीनाथ के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के मुताबिक स्कंदपुराण के केदारखंड में इस तीर्थ के बारे में बताया गया है। इस मंदिर में एक त्रिशूल वो हैरान करने वाला है। अगर ताकत के साथ इस त्रिशूल को हिलाने की कोशिश की जाए तो वो बिल्कुल भी कंपित नहीं होगा, लेकिन भक्ति के साथ कनिष्ठ उंगली (हाथ की सबसे छोटी उंगली) से छुआ जाए तो त्रिशूल में बार-बार कंपन होता है। ऐसा कहा जाता है कि महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को इसी जगह पर भस्म कर दिया था। इसीलिए शिवजी को इस क्षेत्र में झषकेतुहर भी कहा जाता है। इसी जगह पर भगवान शिवजी का नाम रतीश्वर भी पड़ा, क्योंकि कामदेव के भस्म होने के बाद कामदेव की पत्नी रति ने यहां एक कुंड के निकट घोर तप किया और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि कामदेव प्रद्युम्न के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र बनकर जन्म लेंगे और वही तुम्हारी उनसे भेंट होगी। जहां रति ने तप किया, उस कुंड का नाम रतिकुंड पड़ा। जिसे वैतरणीकुंड भी कहा जाता है। द्वारिका में प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का जन्म होता हैं और मायावती के रूप में रति का भी पुनर्जन्म होता है।


🌸 भारत के प्रसिद्ध मंदिर 🌸

गोपीनाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित है। गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर ग्राम में है जो अब गोपेश्वर कस्बे का भाग है।गोपीनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपने वास्तु के कारण अलग से पहचाना जाता है; इसका एक शीर्ष गुम्बद और 30 वर्ग फुट का गर्भगृह है, जिस तक 24 द्वारों से पहुँचा जा सकता है।मंदिर के आसपास टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष इस बात का संकेत करते हैं कि प्राचीन समय में यहाँ अन्य भी बहुत से मंदिर थे। मंदिर के आंगन में एक ५ मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो 12 वीं शताब्दी का है और अष्ट धातु का बना है। इस पर नेपाल के राजा अनेकमल्ल, जो 13 वीं शताब्दी में यहाँ शासन करता था, का गुणगान करते अभिलेख हैं। उत्तरकाल में देवनागरी में लिखे चार अभिलेखों में से तीन की गूढ़लिपि का पढ़ा जाना शेष है।दन्तकथा है कि जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया। त्रिशूल की धातु अभी भी सही स्थित में है जिस पर मौसम प्रभावहीन है और यह एक आश्वर्य है। यह माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता, जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है।





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