उत्तराखंड के प्रयाग नंदप्रयाग के अधिक जानकारी

 उत्तराखंड के प्रयाग नंदप्रयाग के अधिक जानकारी

नन्दप्रयाग "पंचप्रयाग” में से दूसरा प्रयाग है | यह प्रयाग उत्तराखंड भूमि में स्थित पर्यटन स्थलों में से एक है | उत्तराखंड में नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर “नन्दप्रयाग” स्थित है। कर्णप्रयाग से उत्तर में बदरीनाथ मार्ग पर लगभग 21 किमी आगे नंदाकिनी एवं अलकनंदा नदियों का पावन संगम है। इस स्थान को द्वापर युग में “यदु साम्राज्य की राजधानी” माना जाता था ।
उत्तराखंड के प्रयाग नंदप्रयाग के अधिक जानकारी
उत्तराखंड के प्रयाग नंदप्रयाग 

यहां पर नंदादेवी का बड़ा सुंदर मन्दिर है। नंदादेवी का मंदिर, नंद की तपस्थली एवं नंदाकिनी का संगम आदि योगों से इस स्थान का नाम “नंदप्रयाग” पड़ा | नंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल “नंदादेवी पर्वत” का ग्लेशियर है और यह कहा जा सकता है कि पर्वत और वहां से निकली नदी के नाम पर इस जगह का नाम “नंदप्रयाग” पडा होगा लेकिन पौराणिक कथा में इसका सम्बन्ध भगवान कृष्ण से जोड़ा जाता है | नंदप्रयाग में विभिन्न क्षेत्रो एवम् धर्मो के लोग इस स्थान में एक साथ शांतिपूर्वक रहते है |यह जगह न केवल अपनी पवित्रता के लिए जाना जाता है, बल्कि इस स्थान में ट्रेकिंग भी कर सकते है और यह जगह दुनिया भर के हाइकर्स को आकर्षित करती है । यह जगह बद्रीनाथ धाम की तीर्थयात्रा के रास्ते पर स्थित है और यह पैदल तीर्थ यात्रियों के लिए ठहरने एवम आराम करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है | नंदप्रयाग शहर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के नगर पंचायत के रूप में भी कार्य करता है।

नंदप्रयाग की पौराणिक मान्यताये 

नंदप्रयाग की पौराणिक मान्यताये
नंदप्रयाग की पौराणिक मान्यताये 

1. नंदप्रयाग के बारे में पौराणिक कथा में ऐसा कहा जाता है कि स्कंद्पुराण में “नंदप्रयाग” को कण्व आश्रम कहा जाता था | जहाँ दुष्यंत एवम् शकुंतला की कहानी बनायीं गयी है| पूर्ण रूप से इस जगह का नाम इसलिए बदल गया क्यूंकि इस स्थान में नंद बाबा ने सालो तक तपस्या की थी | पौराणिक कथा के अनुसार इसी जगह पर नन्द महाराज ने भगवान नारायण की प्रसन्नता की और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी |

2. नंदप्रयाग के सम्बन्ध में एक कथा या रहस्य “चंडिका मंदिर” से जुड़ा है | यह कहा जाता है कि देवी की मूर्ति अलकनंदा नदी में तैर रही थी तथा वर्तमान पुजारी के एक पूर्वज को यह सपने में दिखा | इसी बीच कुछ चरवाहों ने मूर्ति को नदी के किनारे की गुफा में छुपा दिया | वे शाम तक जब घर वापस नहीं आये तो लोगो ने उनको बहुत देर तक ढूंढा | और जब मूर्ति मिली तो उस मूर्ति के बगल में उन्हें मूर्छितावस्था में पाया गया और एक दुसरे सपने के अनुसार पुजारी को “श्रीयंत्र” को मूर्ति के साथ रखने का आदेश दिया गया|

3. रथिन मित्रा के टेम्पल्स ऑफ गढ़वाल एंड अदर लैंडमार्क्स, गढ़वाल मंडल विकास निगम 2004 के अनुसार, कहावतानुसार भगवान कृष्ण के पिता राजा नंद अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में यहां अपना महायज्ञ पूरा करने आये तथा उन्हीं के नाम पर “नंदप्रयाग” का नाम पड़ा 

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