मद्यमहेश्वर प्रसिद्ध द्वितीय केदार

Madhyamaheshwar प्रसिद्ध द्वितीय केदार 

पंचकेदारों में श्री मद्यमहेश्वर जी को द्वितीय केदार के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अनंत आलाहदक रमणीक स्थान पर समुद्र तल से 3497मी०(11473. 1फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। 
यहाँ भगवान शिव की नाभि भाग की पूजा की जाती है, मान्यता है कि मद्यमहेश्वर जी का भव्य मन्दिर पाण्डवों द्वारा स्वर्गारोहण के समय बनवाया गया था, यह भी मान्यता है कि भगवान शिव और माँ पार्वती द्वारा विवाह के बाद का समय इसी तीर्थ में यापन किया गया, यह मंदिर भी काष्ठ छत्र युक्त देवालय है।
श्री मद्यमहेश्वर जी मंदिर गर्भगृह में स्वयंभूलिङ्गं तथा सभामण्डप में बायीं ओर गणेश जी तथा दायीं ओर भैरवनाथ जी विराजमान हैं तथा गर्भगृह प्रवेश द्वार के सम्मुख सभामण्डप में नन्दी जी और वीरभद्र जी महाराज विराजमान हैं। मंदिर परिसर में पँचनाम देवता, बूढ़ा मध्यमहेश्वर लिङ्गं, गौमुखी जलधार, सरस्वती कुण्ड, गौरीशंकर मंदिर,पार्वती मंदिर, उदक कुण्ड, धर्मशिला(गाय के खुर) विराजमान हैं।

उत्तराखण्ड देव दर्शन
मंदिर परिसर के बाहर यक्षराज, शनिमहाराज, उत्तर क्षेत्रपाल, दक्षिण क्षेत्रपाल,पूरब क्षेत्रपाल और मद्महेश्वर धाम से 3 किमी आगे धौला क्षेत्रपाल जी मद्यमहेश्वर क्षेत्ररक्षक के रूप में विराजमान हैं। लगभग 1.5 किमी ऊपर की ओर बुग्याल में श्री बूढ़ामद्यमहेश्वर जी का मंदिर है। यहाँ से चौखम्भा पर्वत के दर्शन इस प्रकार हैं कि जैसे अभी छूः लें, यहाँ से बड़ी हिमालय शृंखला को बड़े सुगमता से देखा जा सकता है। देवदर्शनी से 1.5 किमी औदिशा (पश्चिम और दक्षिण दिशा के बीच की दिशा) में बसकुडा़ देवी माता विराजमान हैं। 

द्वितीय केदार के नाम से प्रसिद्ध मध्यमहेश्वर धाम का सीजन की पहली बर्फबारी के बाद सुंदर दृश्य। जय बाबा केदार🙏❤️



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