इस कविता द्वारा घर #गाँव की #भूली #बिसरी #पुरानी यादो को स्मरण करने का प्रयास किया गया है।

 कविता का शीर्षक है "आपणी गौ की पुराणी याद"

इस कविता को एक बार जरूर पढ़े।

इस कविता द्वारा घर #गाँव की #भूली #बिसरी  #पुरानी यादो को स्मरण करने का प्रयास किया गया है।

कविता का शीर्षक है "आपणी गौ की पुराणी याद"

एक जमाना वह था जब हम ,आग मॉग कर लाते थे ।

उसी आग को फूँक-फूँक कर घर की  आग जलाते थे ।।


पढ़ने के लिए लंफू था सहारा , कभी लालटेन जलाते थे ।

उसकी बत्ती घुमा घुमा कर , मुश्किल से काम चलाते थे ।।


गेहूँ की रोटी बड़ी चीज थी , बड़े बुजुर्ग ही खाते थे ।

दाल भात मेहमान नवाजी , बाकी सब छछिया ही खाते थे ।।

मडुवा, कौणी और झूगरा , यही तो गाँव में होता था ।

गाजण , डूबुक और छछिया, हर घर में तब बनता था ।।


गौहथ के डुबुक, मास की दाव, बड़े दिनों में बनती थी ।

गजड़े का भात, दही की झोली, उसका स्वाद गजब था।।


पुतिंग की चटणी लूण मसाला , माँ सिलोटे में पिसती थी ।

जखिए और मिर्च की छोकाॅण , पास -पड़ोस तक जाती थी ।।


स्कूल से आकार पाणी लाते , फिर गाय बैल चराते थे ।

साँझ को माँ के पिछे जाकर , घास काट कर लाते थे ।।


जाॅनरे से मडुवे की पिसाई , आमा की याद कराती है ।

उखल में धान कुटाई , माँ की याद दिलाती है ।।


बेडू, हिसालू, किलमोड़ा, काफल थैला भर -भर लाते थे ।

व्रत त्योहारों में बण से , तैडू  खोद कर लाते थे ।।


राख, लिसा और छिलुका जलाकर दिवाली जलाते थे।

जो पटाखे रात को जलाते समय डर से गिर जाते थे , उन्हें सुबह फिर ढूंढते थे ।।


लघण,प्रसाद और भुड बनाकर , चावल का कसार बनाते थे ।

जब बेटी या बहू, ससुराल या मायका जाती थी, यही मिठाई होती थी।।


पटाल बिछाई गुठयार , कानस में रखे भूजिलो की याद आती है ।

बुबू की फरसी, नैरू और चिलम की गुड़ -गुड़ , कानो में आज भी बजती है ।।


कितनी खुशी रहती थी हमको , कौतिक में जाने की ।

पकौड़ी, आलू के गुटके और जलेबी खाकर , झूलों पर चढ़ने की।।


दूर बसें है गाँव से अपने ,अब जा भी नहीं सकते है ।

घर गुठयार की यादों से बस , अब केवल आँख भिगो सकते है ।।

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