कुर्मांचल में चंदवंश का संस्थापक सोमचंद

कुर्मांचल में 'चंदवंश' का संस्थापक सोमचंद
सोमचंद

कुर्मांचल में 'चंदवंश' का संस्थापक सोमचंद को माना जाता है। सम्भवतः वह इलाहाबाद में गंगा पार 'झुंसी' के चन्द्रवंशी राजवंश से सम्बधित राजकुमार था। वह तीर्थयात्रा के लिए कुमाऊँ क्षेत्र में आया था। कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव की मृत्यु के पश्चात सोमचंद ने इस वंश की स्थापना की। उसने चंपावती देवी के नाम पर चम्पावत नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया। उसने अपने नवनिर्मित किले 'राजबंगा के आस-पास के क्षेत्रों में विद्वान ब्राह्मणों, गजकोली, बखरिया, विश्वकर्मा, तमोटा, बाजदार एवं बजनियां आदि को बसाया। यह सब राजकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए किया था। उसके शासन के प्रारम्भ में समुचे काली कुमाऊँ क्षेत्र पर खस, नाग, भेद, चाण्डाल आदि ठकुराईयाँ थी जो दो भागों में विभक्त थे जिनका नेतृत्व महरा और फर्त्याल कर रहे थे। सोमचंद ने राज्य विस्तार से पूर्व चार किलेदार नियुक्त किये-कार्की, बोरा, तड़ागी ओर चौधरी, ये सभी मूलतः नेपाल से थे। जिन किलों में ये रहते थे उन्हें 'चारआल' अथवा 'चाराल' कहते थे।

सोमचंद ने सर्वप्रथम द्रोणकोट के रावतों को परास्त किया। महरा व फर्त्याल को उसने मंत्री व सेनापति नियुक्त किया। राज्य की पूरी राजनीति की धुरी इन्हीं दोनो के इर्द-गिर्द घूमी थी। महरा कटोलगढ़ के वासी थे जबकि फर्त्याल सुई के किले के निकट 'डुंगरी' में रहते थे। जनसामान्य की राजभक्ति पाने के लिए उसने महरा तथा फर्त्यालों को सम्मानित किया।

ससांरचंद इस वंश का अगला शासक हुआ। इसके बाद क्रमशः सुधाचंद, हरिचंद, और बीनाचंद गद्दी पर बैठे। इनकी किसी भी विशेष उपलब्धि की जानकारी नहीं मिलती है। वीनाचंद एक विलासी प्रवृत्ति का शासक था। उसकी अयोग्यता का लाभ उठाकर आस-पास के खस राजाओं ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करनी शुरू की। सम्भवतः इस खस विद्रोह के कारण चंदवंश की मांडलिक स्थिति भी सामाप्त हो गई और वे स्वयं खस राजाओं के अधीनस्थ बनकर रह गए।

सम्भवतः सोमचंद एक मांडलिक राजा था जो डोटी के राजा के अधीनस्थ था। डोटी के राजा मल्लवंशी थे और 'रैका राजा'  कहलाते थे। सोमचंद के समकालीन डोटी राजा जयदेव मल्ल था। इस वंश की कुलदेवी चंपावती थी। सम्भवतः सोमदेव की मृत्यु एक मांडलिक राजा के रूप में ही हुई।

टिप्पणियाँ

upcoming to download post