गढ़वाली वैवाहिक गीतों में गाली का प्रयोग

गढ़वाली वैवाहिक गीतों में गाली  का प्रयोग  जो इस प्रकार किया जाता था हालांकि यहां अब रीति रिवाज खत्म हो चुका है हमारा इस पोस्ट का मतलब यह था कि जो हमारी संस्कृति से खत्म होता जा रहा है उसको आप लोगों तक पहुंचाने का  या जानकारी देने का मकसद था



हमारो गाऊँ कुकुर भुक्युं च
ब्योला क बुबा कूण्या लुक्युं च

हमार गाऊँ डाळ बैठो गूणी
ब्योला क बुबा टक्क लगिक सूणी

हमर गाऊँ बुखडी का खाम
ब्योला का बुबा का जुंग नी जाम

जमणो को जामी छयो जाम
ब्योला की फूफून मुछ्यळन डाम

हमर गाँव खिंनो को खाम
ब्योला का बुबा थ्वरड़ो सि राम

क्या करदी काय करदी ब्योला झरझरा भौं
तेरी बैणि बोलदी त्यरा घर औं

ब्योली हमारी बान्द मा की बांद
ब्योला च गूंगो ब्वलण बि नी आन्द

हमर गाँव खैणि जान्दर
ब्योला का दगड्या गुणि बांदर

सप्तपदी के वक्त 


भूक लगीं ब्योला फोड़ अखोड़
ब्योली नी माणदि द्वि हथ जोड़

फेरा लगान्द दें 


हमारि दगड्या हार नी खै
ब्योला बांदर तैं लत्य ड्या लगै

हमर गाँव छन सिल बट्टा
ब्योला का दगड्या उल्लू का पट्ठा

हमर गाँव बुशड़ो क खाम
ब्योला का बुबा ढीबरो सि राम
हमर गाँव बिरलु की मोच
ब्योला का बुबा किलै पोड़ी सोच

कंकड़ तोड्द दें 


तोड़ तोड़ ब्योला कंगण मंगण
तेरी बाय लीगीन देशा मंगण

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