फूलों की घाटी
विश्व की सबसे खूबसूरत स्थान फूलों की घाटी उत्तराखंड चमोली मैं है
1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने दुनिया को फूलों की घाटी के विषय में बताया. फूलों की घाटी हर दिन 15 रंग बदलती है. साल 2005 में यूनेस्को ने फूलों की घाटी को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था.फ्रेंक सिडनी और होल्ड्स वर्थ कामथ ने अपने देश लौटकर वैली ऑफ़ फ्लावर्स नाम से एक किताब लिखी और फूलों की घाटी दुनिया भर में मशहूर हो गयी. 1982 में इसे संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया.1939 में ब्रिटिश महिला जॉन मार्गरेट भी फूलों की घाटी देखने यहाँ पहुंची. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने यहाँ से कई प्रजाति के फूलों को भी लन्दन भेजा अगस्त 1939 में ही उनकी यहाँ एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, इसे फूलों की घाटी के एक शिलालेख में अंकित किया गया है.समुद्र तल से 3352 से 3658 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस लम्बी-चौड़ी घाटी में सैंकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल पाए जाते हैं. इस घाटी का क्षेत्रफल 90 वर्ग किमी के आस-पास है. यूँ तो फूलों की घाटी साल के बारहों महीने बेहद खूबसूरत दिखाई देती है लेकिन बरसात का मौसम इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है. बरसात के बाद यह हरी घाs से तो लकदक हो ही जाती है, इसी जुलाई अगस्त और सितम्बर के महीने में यहाँ 600 से अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल खिला करते हैं
गोविन्द धाम और गोविन्द घाट दोनों में ही सिखों का गुरुद्वारा है जहाँ रहने-खाने के पर्याप्त बंदोबस्त हैं. यात्रा काल में यहाँ लगभग दिन के 20 घंटे लंगर का आयोजन किया जाता है.
गोविन्द धाम से एक किमी आगे चलने के बाद एक दोराहा मिलता है, जहाँ से दो पगडंडियां अलग-अलग चल पड़ती हैं. बायीं ओर वाली पगडण्डी पकड़कर आप 3 किमी का चढ़ाई उतार वाला आसान सा रास्ता तय करके फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता 4 किमी की खड़ी चढ़ाई में आपकी परीक्षा लेता हुआ हेमकुंड साहिब छोड़ देता है.
उत्तराखंड फूलों की घाटी में विश्व की दुर्लभ प्रजातियां मिलती के फूल भी मिलते हैं
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