पिथौरागढ़ जनपद का ( गंगोलीहाट महाकाली मंदिर )

 पिथौरागढ़ जनपद का ( गंगोलीहाट महाकाली मंदिर )

देवभूमि स्थित माता भगवती महाकालिका का यह दरबार अनगिनत, असंख्य अलौकिक दिव्य चमत्कारों से भरा पड़ा है।
पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित लोगों की आस्था का केंद्र महाकाली मंदिर अनेक रहस्यमयी कथाओं को अपने आप में समेटे हुये है।
कहा जाता है कि जो भी भक्तजन श्रद्वापूर्वक महाकाली के चरणों में आराधना के पुष्प अर्पित करता है 
स्‍थानीय लोग बताते हैं यहां श्रद्वा एवं विनयता से की गयी पूजा का विशेष महत्व हैं। इसलिये वर्ष भर यहां बडी संख्या में श्रद्वालु पहुंचते हैं।
महाकाली के संदर्भ में एक प्रसिद्व किवदन्ति है कि कालिका का जब रात में डोला चलता है तो इस डोले के साथ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती हैं।
कहते हैं यदि कोई व्यक्ति इस डोले को छू ले तो दिव्य वरदान प्राप्त होता है 
इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि महाआरती के बाद मंदिर में शक्ति के पास महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है और प्रातः काल बिस्तर पर सिलवटे दिखाई देती हैं। जिसे देखकर यह माना जाता है कि कालिका विश्राम करके गयी हों।
मां काली के प्रति उनके तमाम किस्से आज भी क्षेत्र में सुने जाते है भगवती महाकाली का यह दरबार असंख्य चमत्कार व किवदन्तियों से भरा पडा है।
भारतीय सेना के कुमाऊं रेजीमेंट के हाट कालिका से जुड़ाव के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। “द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के समय एक बार भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा। तब सैन्य अधिकारियों ने जवानों से अपने-अपने ईश्वर को याद करने का कहा, कुमाऊं के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया वैसे ही जहाज किनारे आ गया।” तभी से कुमाऊं रेजीमेंट ने मां काली को आराध्य देवी के रूप मे मानता हैं।जब भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए जाते हैं तो काली मां के दर्शन के बिना नहीं जाते हैं। हर वर्ष माघ माह में यहां पर सैनिकों और अधिकारी बड़ी संख्या मे दर्शन के लिए आते हैं, यहाँ बने कई धर्मशाले, मंदिर और रास्ते के  निर्माण मे स्थानीय लोगों, श्रीडालुओं के साथ भारतीय सेना से जुड़े लोगो का भी योगदान हैं।
गंगोलिहाट से करीब 24 किलोमीटर दूर विश्व विख्यात पाताल भुवनेश्वर गुफा हैं, यहाँ कुछ अन्य गुफाये भी देखी जा सकती हैं – जिनमे हैं – शैलेश्वर गुफा “मुक्तेश्वर गुफा” भी प्रसिद्ध हैं और कुछ समय पूर्व जानकारी मे आई  गुफा – भोलेश्वर गुफा।  

गंगोलिहाट के समीपवर्ती  दर्शनीय स्थलों मे चौकोडी, पिथोरागढ़ , बेरीनाग, धौलछीना, जागेश्वर आदि हैं, कुछ दर्शनीय स्थलों  की  दूरी स्क्रीन मे देखी जा सकती हैं। 

गंगोलिहाट से नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर 162 किलोमीटर और काठगोदाम रेलवे 190 किलोमीटर हैं। नजदीकी  नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथोरागढ़  84 किमी और पंतनगर हवाई अड्डा 223 किलोमीटर हैं। 

दिल्ली, देहारादून, लखनऊ और दूसरे बड़े शहरो से फिलहाल को सीधी बस सर्विस नहीं हैं,  यहाँ से गगोलिहाट आने के लिए  पहले हल्द्वानी पहुचना होगा, से 197 किलोमीटर दूर हैं, पहाड़ी मार्ग होने के कारण इस दूरी को तय करने मे 6 से 7 घंटे लगते हैं।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में गंगोलीहाट में माँ कालिका का मंदिर, देवदार के खूबसूरत वृक्षों से घिरा है। इस सुविख्यात मंदिर में स्थानीय लोगो के अलावा दूर- दूर से शृदालू  माँ काली के दर्शन को आते हैं, और मनोकामनाओं की सिद्धि के साथ यहाँ आध्यात्मिक शांति पाते हैं। 

नवरात्रियों में माँ हाट कालिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में आगमन, मंदिर के दिव्य वातावरण को और भी उल्लसित करता है और आगंतुकों को ऊर्जा से सरोबोर कर देता है।

माँ हाट कालिका मंदिर-, उत्तराखंड मे पिथोरगढ़ जिले मे, जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर  गंगोलीहाट नाम के खूबसूरत पहाड़ी नगर मे हैं। गंगोलिहाट की बाज़ार बहुत बड़ी नहीं हैं, यहाँ थोड़ी सी दूरी मे बस स्टॉप, टॅक्सी स्टैंड है।

ठहरने के लिए KMVN के टुरिस्ट रेस्ट हाउस सहित –  कुछ होटेल्स, lodges है।  मंदिर के अलग से रोड ढलान की ओर जाती हैं, इस जगह नाम गंगोलीहाट पड़ने का कारण और यहाँ का संक्षित इतिहास इस तरह हैं। 

सरयू गंगा तथा राम गंगा नदियों के मध्य स्थित होने के कारण इस क्षेत्र को पूर्वकाल में गंगावली कहा जाता था, जो धीरे धीरे बदलकर गंगोली हो गया। तेरहवीं शताब्दी से पहले इस क्षेत्र पर कत्यूरी राजवंश का शासन था। गंगोलीहाट इस गंगोली क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, बाज़ार को जिसे स्थानीय बोली मे हाट कहते हैं। गंगोली के साथ साथ हाट –  जुड़कर इस क्षेत्र को नाम मिला गंगोलीहाट। 
तेरहवीं शताब्दी के बाद यहाँ मनकोटी राजाओं का शासन रहा, जिनकी राजधानी मनकोट में थी। सोलहवीं शताब्दी में कुमाऊँ के राजा बालो कल्याण चन्द ने मनकोट पर आक्रमण कर गंगोली क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। 

गंगोलीहाट की मुख्य सड़क से आधे से एक किलोमीटर की दूरी पर  रोड के बाद सड़क के किनारे वहाँ पार्क किए जा सकते हैं,यहाँ पर कई दुकाने हैं, जहां से मंदिर के लिए प्रसाद पुष्प आदि खरीदे जा सकते हैं। 
यहाँ से कुछ सीढ़िया उतर मंदिर तक पहुचा जा सकता हैं। पैदल मार्ग का एक बड़ा में टिन की चादरों से कवर्ड हैं और हाट कालिका मंदिर घिरा है, देवदार के छायादार और घने वृक्षों से। 

हजारों वर्ष पूर्व आदि गुरू शंकराचार्य बद्रीनाथ, केदारनाथ होते हुए, यहां पर आए तो उन्हें आभास हुआ कि यहां पर कोई शक्ति है, यहाँ मां ने कन्या के रूप में दर्शन दिया और कहाँ की उन्हे ज्वाला रूप से शांत रूप में ले आओ।  तब इस जगह माँ हाट कालिका – शक्तिपीठ की स्थापना इस जगह आदि गुरु शंकरायचार्य जी द्वारा हुई।

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