भगवान श्री कृष्ण ने यहां बाणासुर नाम के एक दानव का वध किया था

 रहस्यमयी बाणासुर किला लोहाघाट 

बाणासुर का किला भगवान श्रीकृष्ण द्वारा संसार से बुराई का नाश करने की गवाही देता है

भगवान श्री कृष्ण ने यहां बाणासुर नाम के एक दानव का वध किया था

लोहाघाट  का बाणासुर का किला याद दिलाता है भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का जहां उन्होंने लोग हित के लिए अनाचारीयो का  नाश किया, श्री कृष्ण और बाणासुर के युद्ध की गवाही में खून से रंगी लोहाघाट की मिट्टी और लोहावती नदी, मान्यता है कि इसी स्थल पर  शिव भक्त बाणासुर नामक दैत्य और श्री कृष्ण का भयंकर संग्राम हुआ बाणासुर ने श्री कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध को बन्दी बनाया था जो बाणासुर की बेटी उषा के मोह में बाणासुर के किले तक आ पहुंचे थे , मध्यकालीन इस किले से एक ओर भव्य हिमालयी श्रृंखला तो दूसरी ओर लोहाघाट स्थित मायावती आश्रम की नैसर्गिक छटाओं का आनंद लिया जा सकता है - शुभ रात्रि

चलिये अब आपको कुमाऊँ गड़वाल की कुछ बेहतरीन हिल स्टेशन की सैर कराते हैं

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लोहाघाट भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चम्पावत जनपद में स्थित एक प्रसिद्ध शहर, नगर पंचायत और हिल स्टेशन है। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चारों ओर से छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा यह नगर पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जनपद मुख्यालय से 13 किमी उत्तर की ओर टनकपुर-तवाघाट राष्ट्रीय राजमार्ग में लोहावती नदी के किनारे देवीधार, फोर्ती, मायावती, एबटमाउंट, मानेश्वर, बाणासुर का किला, झूमाधूरी आदि विशेष धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के मध्य स्थित होने से इस नगर की सुन्दरता और बढ़ जाती है। जनपद का यह मुख्य शहर जहां से ग्रामीण क्षेत्रों को आवागमन होता है, प्रमुख व्यापारिक स्थल भी है। इसलिए इसे जनपद चम्पावत का हृदयस्थल कहा जाता है। देवदार वनों से घिरे इस नगर की समुद्रतल से ऊँचाई लगभग 4400 फ़ीट है।

कत्यूरी शासनकाल से ही लोहाघाट अच्छी स्थिति में रहा है। कत्यूरी राज में लोहाघाट सुई नाम से जाना जाता था, और यहाँ स्थानीय रौत राजा शासन करते थे।कुमाऊँ के राजा सोमचन्द (700-721) ने अपने फौजदार कालू तड़ागी की सहायता से स्थानीय रौत राजा को परास्त कर इस क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया। 12वीं शताब्दी में चन्द राजाओं ने यहाँ बाणासुर किले का निर्माण करवाया था।

सन् 1790 में अन्य क्षेत्रों की तरह यह क्षेत्र भी ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियंत्रण में आया और सन् 1947 तक ब्रिटिश शासकों के अधीन रहा। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता से अंग्रेज बहुत प्रभावित थे। अंग्रेजों ने लोहाघाट को अपना आवास बनाया। यहां पर सेना की एक टुकड़ी रखी। फर्नहिल और चनुवांखाल की भूमि चाय एवं फलोत्पादन के लिए हेन्सी एवं श्रीमती हौस्किन को लीज पर दी गई। पश्चात हेन्सी की भूमि को ‘टलक’ नामक अंग्रेज को हस्तान्तरित की गई जिसे ‘टलक स्टेट’ कहा जाने लगा।

लोहाघाट में कतिपय अंग्रेजों के बसने के पश्चात वर्तमान चिकित्सालय परिसर के निकट बैरकें बनाई गई, ब्रिटिश सेना को सन् 1939 में हवालबाग से लाकर लोहाघाट में स्थाई छावनी बनाई गई। उस स्थान पर वर्तमान में राजकीय इण्टर कालेज है चांदमारी नामक इस स्थान पर युद्धाभ्यास किया जाता था। सन् 1846 के जन विद्रोह के कारण यहां से सैनिक छावनी हटा दी गई।अंग्रेजों के आगमन के पश्चात लोहाघाट में विकास के युग का सूत्रपात हुआ। इस क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, राजस्व, कानूनी, भूमि बंदोबस्त, मार्ग निर्माण आदि के लिए प्रयास किये गये। लोहाघाट को काली कुमाऊँ सब डिविजन का मुख्यालय बनाया गया। उसी समय का बना कारागार जनपद चम्पावत की अस्थाई जेल है। सन् 1940 में टनकपुर-तवाघाट मार्ग के निर्माण से लोहाघाट के विकास में गति आई। अल्मोड़ा जनपद के इस परगने को सन् 1960 में पिथौरागढ़ जनपद सृजन के पश्चात् 1972 में पिथौरागढ़ में सम्मिलित कर लिया गया। सन् 1998 में चम्पावत जनपद की स्थापना के पश्चात यह जनपद का प्रमुख नगर है।

लोहाघाट नगर समुद्र तल से 1788 मीटर (5869 फ़ीट) की ऊंचाई पर लोहावती नदी के तट पर बसा हुआ है। यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग 9 पर चम्पावत से 13 किमी, और पिथौरागढ़ से 62 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

दिसम्बर 1949 को टाउन एरिया की मान्यता मिलने के बाद 12 जुलाई 1972 को इसे नोटिफाइड एरिया तथा 04 जून 1994  को नगर पंचायत की श्रेणी में आने तक निरन्तर यहाँ की जनसंख्या में वृद्धि होती रही। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग आकर यहां बसने लगे। 1872 में इस नगर की जनसंख्या मात्र 98 थी जो सन् 1960 में लगभग 1000 हो गई। यदि आधिकारिक नगर क्षेत्र के बाहर बसे उपनगरों को भी जोड़ दिया जाए, तो वर्तमान में लगभग 20 हजार की आबादी इस नगर में निवास करती है।

शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़कों की सुविधा होने से यह नगर जनसंख्या के साथ-साथ व्यापारिक मंडी के रूप में विकसित हो रहा है। व्यापारिक दृष्टि से नगर का महत्वपूर्ण स्थान है, ग्रामीण क्षेत्रों के स्थानीय उत्पाद यहां आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

यहां के स्थानीय मेलों का नजारा अद्भुत होता है। मंदिरों में मंदिरों में आयोजित मेलों में श्रद्धा, संस्कृति के साथ-साथ भाईचारे का भी समन्वय होता है। नगर के मध्य स्थित हथरंगिया में कालू सय्यद बाबा की मजार है, जो सामुदायिक सद्भावना की अनूठी मिसाल है; सभी धर्मों के लोग यहाँ गुड़-चना चढ़ाकर मनौतियां मांगते हैं। लोहावती नदी के संगम स्थल पर शिवालय की महिमा से आस्थावान नागरिक भलीभांति परिचित हैं। सांस्कृतिक धरोहर के रूप में यहां की रामलीला प्रसिद्ध है। खेलों के प्रति भी युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है; यहां का फुटबाॅल मैच इस नगर की पहचान है।

निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में स्थित है, जो सड़क मार्ग से लगभग 10 किमी दूर है। पिथौरागढ़ से करीब 5 किमी दूर नैनी सैनी हवाई अड्डा निर्माणाधीन है , जो बनने के बाद निकटतम हवाई अड्डा होगा।

पहाड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण बसें ही यहाँ आवागमन का मुख्य साधन हैं। लोहाघाट में उत्तराखण्ड परिवहन निगम का एक डिपो है, जिसमें 42 बसें हैं। इस डिपो की स्थापना 1983 में हुई थी। डिपो से प्रतिदिन 10 रूटों के लिए 17 बसों का संचालन होता है। इसमें दिल्ली के लिए पांच, देहरादून तीन, बरेली दो, टनकपुर से हरिद्वार के लिए दो और काशीपुर, हल्द्वानी, नैनीताल, ऋषिकेश व पोंटा साहिब के लिए एक-एक बस का संचालन होता है।

यह बाणासुर के किले के लिए प्रसिद्ध है, जिसे 12वीं शताब्दी में चंद राजाओं ने बनवाया था।

अपने अनूठे सौन्दर्य और सामुदायिक समरसता से परिपूर्ण यह शहर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। चारों ओर से मन्दिरों, ऐतिहासिक स्थलों से घिरे देवदार वृक्षों की छाया के मनोरम और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण दृश्यों का 'मासूक' सहित कई फिल्मों में फिल्मांकन हुआ है। नगर के सौन्दर्य को देवदार के जंगलों ने और भी सुन्दरता दी है।लोहाघाट नगर के निकट ही मायावती आश्रम नाम से एक छोटा सा पर्यटन स्थल है। जहां स्वामी विवेकानंद जी उत्तराखंड भ्रमण के समय आए थे। वर्तमान में भी यहां से प्रबुद्ध भारत नामक पत्रिका का प्रकाशन होता है।

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