यह कविता बदलते ज़माने के परती "ओ जमाना य कसि जै हाव चलि भाई आब् भैनू हैबे ठूल है गयीं साव और साई"
ओ जमाना य कसि जै हाव चलि भाई
आब् भैनू हैबे ठूल है गयीं साव और साई
ओ जमाना..
घरघरु में, मै बाप छन चाख़ म नसाई
चुल क अख़तियारि हैरईं सासू और साई
ओ जमाना..
कसजै बखत देखी कस जै देखुंल भाई
गोरु बाछ नसाई ध्याव कुकूर पहरु ल्याई
ओ जमाना..
बिनबाज निसांण हराय नागर दमुआ हराई
ब्या कौतीकूं में जडीजे ल धुर च्येलि मचाई
ओ जमाना..
तौल बंड पंगत छूटी कूकर मे खांण पकाई
छप्पन परग्यार छिया सबै ठाढ़ ठाढै खाई
ओ जमाना..
गौं क सरपंच पधान छ्वाढ़ सभापति बंढ़ाई
दूदक पहरु कतू सरकारि ढ़ेणू लगायीं
कतुकै पुराणसुंणा रामज्यूकि कांथ लै सुणाई
घरू घरू भै बैंणियां में महाभारतकि लड़ाई
ओ जमाना..
कांथ हबै आब ठुलि है रै नाच गांण कि माई
व्यासज्यूल् जोगि जस छाजि सैंणियां भजाई
ओ जमाना..
©दिनेश कांडपाल
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