गढ़देश, स्वर्गभूमि, समता, हादी-ए-आजम, हितैषी,उत्तर भारत,उत्थान,जागृत जनता,

गढ़देश, स्वर्गभूमि, समता, हादी-ए-आजम, हितैषी,उत्तर भारत,उत्थान,जागृत जनता, 

गढ़देश, (1929-34 ई0)

बीसवीं सदी के दूसरे व तीसरे दशक में गढ़वाल में कृपाराम मिश्र 'मनहर' का नाम अत्यधिक प्रसिद्ध था। उस समय 'मनहर' अपनी निस्वार्थ समाज सेवा, दानवीरता, पत्रकारिता, काव्य रचना तथा स्वतंत्रता प्रेम के लिए जाने जाते थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि गढ़वाल क्षेत्र से एक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित हो। अतः इस इच्छा के चलते वे 'गढ़वाली' के सम्पादक से मिले परन्तु वहाँ सहमति न बनने पर इन्होंने स्वयं ही पत्र निकालने का निश्चय किया। परिणामस्वरूप उनके सम्पादन में अप्रैल 1929ई0 में गढदेश का पहला अंक प्रकाशित हुआ। इस पत्र का मुद्रण कभी-कभी मुरादाबाद, कभी बिजनौर तो कभी मेरठ में होता था परन्तु प्रकाशन सदैव कोटद्वार से होता था। वर्षान्त में महेशानन्द थपलियाल द्वारा इन्हे सम्पादकीय सहयोग प्राप्त हुआ। 1930 के प्रारम्भ में नई व्यवस्था के तहत कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' द्वारा जिला देवबन्द, सहारनपुर, से इसका सम्पादन करना प्रारम्भ किया। अब इसका मुद्रण भी सहारनपुर में ही होने लगा। इसी बीच सत्याग्रह आन्दोलन में सहभागिता के चलते पत्र के सम्पादक व प्रकाशक दोनो के जेल हो जाने के कारण 13 जून, 1930 के अंक के साथ गढ़देश का प्रकाशन बंद हो गया। 1934 में 'मनहर' ने इसे पुनः प्रकाशित किया, अब इसका मुद्रण देहरादून से होने लगा। इस बार अपने कुछ लेखों के कारण गढ़देश के सम्पादक व मुद्रक दोनों से दो-दो हजार रूपये की जमानत मांगी गई। जमानत की व्यवस्था न होने के कारण इसका प्रकाशन बन्द कर दिया गया।

स्वर्गभूमि, (1934ई0)

देवकीनन्दन ध्यानी एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी व अच्छे पत्रकार थे। अल्मोड़ा निवासी देवकीनन्दन ध्यानी ने 1930 में मुरादाबाद से 'विजय' नामक साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। तभी सत्यागृह आन्दोलन शुरू हो गया इसके चलते इन्हें जेल जाना पड़ा। इस समय तक 'विजय' के मात्र 8-10 अंक ही प्रकाशित हुए थे कि इसका प्रकाशन बंद हो गया। जेल से छूटने के पश्चात् इन्होंने हल्द्वानी पहुँच कर एक बार फिर प्रकाशन के क्षेत्र में कदम रखा। 15 जनवरी, 1934 को इनके नये पाक्षिक 'स्वर्ग-भूमि का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। अभी 'स्वर्ग-भूमि' का सफर शुरू ही हुआ था, इसके 3-4 अंक ही निकले थे कि वे अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के आमंत्रण पर पौड़ी चले गये और स्वर्गभूमि का प्रकाशन बंद हो गया। सन् 1936 में इनका देहान्त हो गया।

समता, (1934 ई०)

हमारे देश में शिल्पकार वर्ग को पीढ़ियों से हीन दृष्टि से देखा जाता है। उत्तराखण्ड में भी इनकी स्थिति कुछ अलग नहीं थी। तीसरे दशक में जब सारा देश अंग्रेजो की दासता से मुक्त होने का प्रयास कर रहा था तब शिल्पकार वर्ग दोहरी दासता का जीवन व्यतीत कर रहा था। शिल्पी समाज सामाजिक उत्पीड़नों तथा रूढ़िवादी अभिशापों से त्रस्त था। तभी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने सदियों से उपेक्षित व दबे-कुचले इस वर्ग को समाज में उचित अधिकार दिलाने के उद्देश्य से अल्मोडा से सन् 1934 में समता नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। टम्टा अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी, दलितोद्धारक तथा पत्रकार रहे है। अपने पत्र के माध्यम से उन्होंने शिल्पी समाज की आवाज को बुलन्द किया। सदियों से सुप्त अवस्था में पड़े शिल्पी समाज में इन्होने अपने प्रेरणादायक लेखों से राजनीतिक व सामाजिक चेतना का प्रसार किया। सन् 1935 में श्रीमती लक्ष्मी देवी टम्टा ने, जो उत्तराखण्ड की पहली दलित महिला पत्रकार थी, इस साप्ताहिक पत्र के सम्पादकीय का दायित्व सम्भाला। इन्होंने 'समता' के माध्यम से सदैव शिल्पी समाज की दयनीय स्थिति को अपने लेखों के द्वारा उजागार किया। उनके लेख समाज व सरकार को शिल्पी वर्ग की ओर बरबस आकृष्ट करते रहे। उच्च वर्ग की आलोचनाओं का शिकार होते हुए भी लम्बे अन्तराल के बाद वर्तमान में दया शंकर टम्टा 'समता' का सम्पादन कर रहे है। यह उत्तराखण्ड का एक मात्र ऐसा समाचार पत्र है जो दलित समाज के उत्थान को प्रेरित करता है।

हादी-ए-आजम (मासिक), 1936 ई0-


हल्द्वानी निवासी मोहम्मद इकबाल सिद्दकी द्वारा लिखित व प्रकाशित की गई यह मासिक पत्रिका उत्तराखण्ड की पहली उर्दू धार्मिक पत्रिका थी। अत्यन्त अल्पावधि के लिए प्रकाशित हुई यह पत्रिका सन् 1936 में अपने प्रारम्भिक 2-3 अंको के प्रकाशन के बाद ही बंद हो गई थी।

हितैषी (पाक्षिक), 1936 ई०

पौड़ी गढ़वाल निवासी पीताम्बर दत्त पसबोला ने सन् 1936 में लैन्सडौन से 'हितैषी' नामक एक पाक्षिक समाचार पत्र का सम्पादन व प्रकाशन किया। यह पत्र औपनिवेशक सत्ता का समर्थक था। फलतः यह अल्पजीवी रहा। यह समाचार पत्र स्वयं तो अधिक समय तक न चल सका परन्तु अंग्रेज सत्ता को समर्थन के कारण पीताम्बर दत्त को 'रायबहादुर' की पदवी अवश्य दिला गया।

उत्तर भारत, (1936-37 ई0)

सन् 1936 में महेशानन्द थपलियाल, गढ़केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के निमंत्रण पर पौड़ी आये तथा यहाँ उनकी प्रेस स्वर्ग-भूमि का संचालन करने लगे। यहीं से महेशानन्द ने 'उत्तर भारत' नाम के समाचार पत्र का प्रकाशन व सम्पादन किया। प्रारम्भ में यह पत्र पुस्तक के साइज में निकला, किन्तु कुछ अंकों के पश्चात् इसका स्वरूप बदल दिया गया। कुछ समय तक नियमित चलने के पश्चात् सन् 1937 में यह पत्र बन्द हो गया।

उत्थान (सप्ता), 1937 ई0


ज्योति प्रसाद माहेश्वरी जो तीसरे दशक के प्रसिद्ध समाजसेवी तथा वकील थे, के द्वारा 'उत्थान' नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। यह समाचार पत्र अपने नाम के अनुरूप क्षेत्रीय आन्दोलन का मार्गदर्शन करने तथा अपनी निष्पक्ष, सतही व बेबाक पत्रकारिता के लिए प्रसिद्ध था।

जागृत जनता, 1938 ई0

ब्रिटिश सम्राज्य के विरूद्ध तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जनता को जागृत करने के उद्देश्य से देशभक्त पीताम्बर पाण्डे ने 'जागृत जनता' नाम से एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकालने का संकल्प लिया। यद्यपि उनकी स्कूली शिक्षा प्राइमरी तक ही हो पाई थी परन्तु फिर भी वे एक सच्चे पत्रकार थे। वे समाचार-पत्र सम्बन्धी प्रत्येक कार्य को स्वयं करते, फिर चाहे वे सारे शहर भर में घूम कर सूचना संकलन करना हो या उन्हें छापना हो या समाचार पत्रों का वितरण हो, वे सभी कार्य स्वयं पैदल किया करते थे। स्वयं में क्रान्तिकारी विचारों के व्यक्ति थे। "भारत छोड़ो आन्दोलन" के चलते उन्हें जेल जाना पड़ा जिससे कुछ समय तक यह पत्र अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ था। जेल से छूटने के पश्चात् आप हल्द्वानी आ गये तथा मृत्युपर्यन्त यहीं से 'जागृत जनता' का प्रकाशन करते रहे।

इस प्रकार उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि प्रथम चरण में उत्तराखण्ड में विधिवत् पत्रकारिता का अभ्युदय तो हुआ किन्तु उसकी गति में तीव्रता द्वितीय चरण में देखने को मिलती है। प्रथम चरण में अधिकांश प्रकाशित समाचार पत्र अंग्रेजी प्रशासन के समर्थकों द्वारा संचालित होते थे किन्तु दूसरे चरण में राष्ट्रीय आन्दोलनों की बाढ़ सी आ गई तथा सम्पूर्ण देश की पत्रकारिता राष्ट्रीयता में डूबती चली गई। फलतः द्वितीय चरण में प्रकाशित होने वाला प्रत्येक समाचार पत्र चाहे वह अल्पजीवी रहा हो या दीर्घ जीवी, सभी ने अपने-अपने स्तर से राष्ट्रीय आन्दोलनों में अपना-अपना सहयोग प्रदान किया। सन् 1918 में प्रकाशित 'शक्ति' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र ने इस युग में कान्तिकारी भूमिका निभाई। बद्रीदत्त पाण्डे के सम्पादन में 'शक्ति' ने पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नई परम्परा की नींव रखी। बाद के वर्षों में 'स्वाधीन प्रजा' 'कर्म भूमि' 'जागृत जनता' 'गढ़देश' तथा 'सन्देश' आदि अन्य समकालीन समाचार पत्र आजीवन इस परम्परा का भलि-भांति निर्वहन करते रहे।

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